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सिर्फ टीका उत्सव से ही नहीं चलता काम

Tika Utsav

Tika Utsav

सियाराम पांडे शांत

देश भर में टीका उत्सव का आगाज कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ बड़े जंग का ऐलान कर दिया है लेकिन जिस तरह  कोरोना के टीके को लेकर राजनीतिक जंग चल रही है, उसे बहुत उचित नहीं ठहराया जा सकता। सिर्फ टीका उत्सव से ही काम नहीं चलता। भीड़ को रोकने वाले सारे इंतजाम किए जाने चाहिए। केंद्र सरकार को भी सोचना होगा कि कोई भी राज्य कोरोना टीके की किल्लत महसूस न करे। इसके लिए जरूरी हो तो उसे पड़ोसी देशों को टीके की कुछ हद तक  आपूर्ति रोकनी  भी चाहिए। आप भलातोसब भला की रीति नीति पर अमल ही मौजूदा समय की मांग है।

कोविड-19 के नये स्ट्रेन से विश्व का कोई क्षेत्र बच नहीं पा रहा है। हद तो यह है कि थाईलैंड, जिसने कोरोनावायरस महामारी को बहुत से देशों से बेहतर नियंत्रित किया था, भी अब कोविड-19 की नई लहर को नियंत्रित करने में संघर्ष कर रहा है। अपने को कोविड-19 मुक्त घोषित करने वाले न्यूजीलैंड ने भी भारत व अन्य जगहों से फ्लाइट्स के आने पर पाबंदी लगा दी है। भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के अनुसार संक्रमण के एक्टिव केस लगभग दस लाख हो गये हैं और कुछ दिनों से तो रोजाना ही संक्रमण के एक लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं। जिन देशों में टीकाकरण ने कुछ गति पकड़ी है, उनमें भी संक्रमण, अस्पतालों में भर्ती होने और मौतों का ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है, इसलिए उन देशों में स्थितियां और चिंताजनक हैं जिनमें टीकाकरण अभी दूर का स्वप्न है।

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कोविड-19 संक्रमितों से अस्पताल इतने भर गये हैं कि अन्य रोगियों को जगह नहीं मिल पा रही है। एक अन्य समस्या यह है कि बहुत सी जगहों से वैक्सीन की कमी की खबरें आ रही हैं और यह भी कि टीकाकरण के बाद भी लोग संक्रमित हुए हैं व साइडइफेक्ट्स का सामना करना पड़ा है। भारत में 31 मार्च को नेशनल एईएफआई (एडवर्स इवेंट फोलोइंग इम्यूनाइजेश्न) कमेटी के समक्ष दिए गये प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि उस समय तक टीकाकरण के बाद 180 मौतें हुईं, जिनमें से तीन-चौथाई मौतें शॉट लेने के तीन दिन के भीतर हुईं।

बहरहाल, इस बढ़ती लहर को रोकने के लिए तीन टी (टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट), सावधानी (मास्क, देह से दूरी व नियमित हाथ धोने) और टीकाकरण के अतिरिक्त जो तरीके अपनाये जा रहे हैं, उनमें धारा 144 (सार्वजनिक स्थलों पर चार या उससे अधिक व्यक्तियों का एकत्र न होना), नाईट कफर्यू, सप्ताहांत पर लॉकडाउन, विवाह व मय्यतों में निर्धारित संख्या में लोगों की उपस्थिति, स्कूल व कलेजों को बंद करना आदि शामिल है। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का बयान है कि नाईट कफर्यू से कोरोनावायरस नियंत्रित नहीं होता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे ‘कोरोना कर्फ्यू का नाम दे रहे हैं ताकि लोग कोरोना से डरें व लापरवाह होना बंद करें (यह खैर अलग बहस है कि यही बात चुनावी रैलियों व रोड शो पर लागू नहीं है)।

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इसके अलावा पूर्ण लकडाउन की भी तलवार लटक रही है। महाराष्ट के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है कि राज्य का स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने के लिए दो या तीन सप्ताह का ‘पूर्ण लकडाउन आवश्यक है। जबकि डब्लूएचओ की प्रवक्ता डा. मार्गरेट हैरिस का कहना है कि कोविड-19 के नये वैरिएंटस और देशों व लोगों के लकडाउन से जल्द निकल आने की वजह से संक्रमण दर में वृद्घि हो रही है। दरअसल, नाईट कफर््यू व लकडाउन का भय ही प्रवासी मजदूरों को फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है। नया कोरोनावायरस महामारी को बेहतर स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर और मंत्रियों से लेकर आम नागरिक तक कोविड प्रोटोकल्स का पालन करने से ही नियंत्रित किया जा सकता है।

लेकिन सरकारें लोगों के मूवमेंट पर पाबंदी लगाकर इसे रोकना चाहती हैं, जोकि संभव नहीं है जैसा कि पिछले साल के असफल अनुभव से जाहिर है। अतार्किक पाबंदियों से कोविड तो नियंत्रित होता नहीं है, उल्टे गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाते हैं, खासकर गरीब व मयवर्ग के लिए। लकडाउन के पाखंड तो प्रवासी मजदूरों के लिए जुल्म हैं, क्रूर हैं। कार्यस्थलों के बंद हो जाने से गरीब प्रवासी मजदूरों का शहरों में रहना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाता है, खासकर इसलिए कि उनकी आय के स्रोत बंद हो जाते हैं (मालिकों के लिए मजदूरों का मेहनताना अदा न करने के लिए लकडाउन अच्छा बहाना बन जाता है) और जिन ढाबों पर वह भोजन करते हैं उनके बंद होने से वह दाल-रोटी के लिए भी तरसने लगते हैं। पिछले साल के राष्टव्यापी लकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों का जबरदस्त पलायन देखने को मिला था, उसकी तुलना में वर्तमान स्थिति काफी छोटी है। लेकिन सरकारों के लिए आवश्यक है कि वह इस स्थिति पर बारीक निगाह रखें ताकि पुनरावृत्ति को रोका जा सके।

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ध्यान रहे कि प्रवासी मजदूरों में इस समय विश्वास की स्थिति बहुत कमजोर है और भ्रमित करने वाली सूचनाओं का तूफान भी उफान पर है। कोविड को नियंत्रित करने के लिए आर्थिक गतिविाियों को तो बांधने का प्रयास है, लेकिन सियासी भीड़ को हरी झंडी दिखा दी गई है। तमिलनाडु व केरल में मतदान के समाप्त होते ही कड़ी पाबंदियों की घोषणाएं की गई हैं, जबकि चुनाव प्रचार के दौरान नेता व उनके कार्यकर्ता बिना मास्क के भीड़ लेकर सड़कों पर घूम रहे थे। बंगाल में आठ चरणों का मतदान कराकर चुनाव आयोग ने एक अन्य स्वास्थ्य समस्या को आमंत्रित किया है। गैर जिम्मेदाराना राजनीति की कीमत अब आम आदमियों को चुकानी पड़ेगी। अगर लॉकडाउन लगाया गया तो इसका सबसे ज्यादा शिकार प्रवासी मजदूर होंगे। पिछले साल के कड़वे अनुभव के बाद नीति आयोग ने प्रवासी मजदूरों को सामाजिक व अधिकारिक सोच में सम्मलित करने के लिए राष्टीय नीति ड्राफ्ट की थी, लेकिन इस बारे में अभी तक कुछ नहीं हुआ है।

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