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विश्व जल दिवस: अभी से नहीं बचाया पानी तो उठानी पडेगी परेशानी

लखनऊ। शहर में जिस तेजी के साथ भूजल (Water) का दोहन हो रहा है, अनुमान है कि 2031 तक मध्य लखनऊ के भूजल स्तर में तेज गिरावट आएगी। यह 2020 के भूजल स्तर से 20-25 मीटर तक नीचे जा सकता है। हर साल एक मीटर जलस्तर नीचे खिसक रहा है, जिसकी वजह से जल संकट गहराने लगा है। राजधानी की 40 फीसदी आबादी भू जल पर निर्भर है। 110 वार्डों में से 41 वार्ड ग्राउंड वाटर का पानी पी रहे हैं। वर्ष 2031 तक शहर को प्यास बुझाने के लिए करीब 975 एमएलडी पानी की जरूरत होगी। वर्ष 2050 तक यही डिमांड 1254 एमएलडी तक पहुंच जाएगी। अभी जलकल विभाग 610 एमएलडी पानी ही उपलब्ध करा पा रहा है। गिरते भू-जलस्तर व पानी की बर्बादी को रोके बिना इस डिमांड को पूरा करना मुश्किल होगा।

बरसात का पानी नालियों से होते हुए नदियों में बह जाता है। वहीं घर-घर पानी की टंकियां भरने के बाद काफी पानी बहकर बर्बाद हो जाता है। शहर में रेन वाटर हार्वेस्ट सिस्टम की कमी होने की वजह से बरसाती पानी का जल संचयन नहीं हो पा रहा है, जिसका नतीजा भूजल स्तर में कमी के रूप में सामने आ रहा है। भूजल विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार प्री मानसून सीजन में गोमती नदी और बारिश के पानी से जितना भूजल रिचार्ज होता है, उसका 17 गुना ज्यादा भूजल का उपयोग लखनऊ के लोग इसी दौरान कर लेते हैं। एलडीए ने सिटी डेवलपमेंट प्लान तैयार किया है। इसमें पेजयल आपूर्ति पर भी फोकस किया गया है।
होटलों, अपार्टमेंटों में भूजल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल

भूजल का सबसे ज्यादा उपयोग होटलों, रेस्टोरेंट्स, अस्पताल, मॉल और बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले लोग कर रहे हैंै। जिन सोसाइटीज में भूजल का दोहन किया जा रहा है, उनमें से 60 प्रतिशत में जलस्तर 200 फीट या इससे अधिक पहुंच चुका है। भारी जलदोहन से यह स्तर लगातार गिर रहा है।

75 फीसदी तक घटी प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता

आजाद भारत की पहली जनगणना के समय प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता लगभग 6000 घन मीटर थी। 2001 की जनगणना में यह औसत घटकर 2000 घनमीटर और 2011 में 1500 घन मीटर ही रह गया। यानी 75 फीसदी तक उपलब्धता घट गई। उन्होंने कहा कि जिस रफ्तार से जनसंख्या बढ़ रही है और हम पानी का उपयोग व दोहन कर रहे हैं, इसमें यदि जल संचयन के सभी विकल्पों को अपना भी लें तो भी उपयोग व दोहन के मुकाबले 40 प्रतिशत ही संचयन कर पाएंगे। इससे स्थिति की गंभीरता का सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि आने वाले कितने वर्षों बाद पानी की उपलब्धता एक गंभीर समस्या बनकर सामने होगी।

एक हजार वर्ग फुट छत से बचाएंगे जमलाखों लीटर पानी

राजधानी में गिरते भू जलस्तर को संरक्षित करने के लिए शासन के निर्देश पर एलडीए ग्राउंड मास्टर प्लान बना रहा है। जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गौहर महमूद की मदद से लखनऊ विकास प्राधिकरण यह प्लान तैयार करेगा। इसके अंतर्गत एक हजार वर्ग फुट के मकान से सालाना एक लाख लीटर बारिश का पानी बचाने की योजना पर काम होगा। ग्राउंड वॉटर मास्टर प्लान तैयार करने के लिए करीब एक करोड़ रुपये खर्च होंगे। अनुभवी विशेषज्ञों के सहयोग से प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार किया गया है। इसमेंं 1000 वर्ग फुट की छत से सालाना एक लाख लीटर पानी बचाने की बात कही गई है। एलडीए की रिपोर्ट के मुताबिक एक लाख लीटर पानी 4 सदस्यीय परिवार पूरे 200 दिन तक इस्तेमाल कर सकते हैं। इतना पानी 90 सेंटीमीटर औसत बारिश होने पर बचाया जा सकेगा। इसके अलावा सुझाव दिया गया है कि 10 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल की योजनाओं के ले आउट प्लान में पार्क एवं खुले क्षेत्र के साथ जलाशय भी बनाना होगा।

कुल क्षेत्रफल का न्यूनतम 1% जलाशय होगा। इसमें बारिश के पानी का संचयन किया जाएगा। इसी योजना का पानी इसमें रिस्टोर होगा। पार्क एवं खुले क्षेत्र में मानकों के अनुसार एक कोने में रिचार्ज पिट व साफ्ट बनाए जाये। इसे भूगर्भ जल विभाग के सहयोग से बनाना जाएगा। पार्कों में 5% से अधिक पक्का निर्माण नहीं हो पाएगा। फुटपाथ पर विशेष प्रकार के ब्लॉक लगेंगे। सड़कों के किनारे तथा पार्कों और खुले स्थानों पर ऐसे पेड़ पौधों का रोपण होगा जिनको जल की न्यूनतम आवश्यकता होगी। ईडब्ल्यूएस तथा एलआईजी की कॉलोनी बनाने वाले बिल्डरों को ड्रेनेज सिस्टम के साथ रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी बनाना होगा। राजधानी के सभी तालाब, झील, जलाशय से अतिक्रमण हटाने की भी कार्यवाही होगी। उनकी सूची भी मास्टर प्लान में लगाई जाएगी।

पीजो मीटर लगाकर नापेंगे जलस्तर

मुख्य अभियंता इंदु शेखर सिंह ने बताया कि गोमती नगर के 18 खंडों में पीजो मीटर (जल स्तर नापने का यंत्र) लगेंगे और यहां अगर जल स्तर कम होता है तो पार्क व सड़कों पर खराब होने वाली बरसाती पानी को फिर से ग्राउंड रिचार्ज को लेकर काम किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस पूरे काम को करने में अधिकतम छह माह लगेंगे। प्रयास रहेगा कि राजधानी में पेयजल के लिए कभी संकट की स्थिति न उत्पन्न हो। जितना पानी हम भू जल से लेंगे, उतना हम बरसाती पानी से पूरा करेंगे। वाटर लेवल की जानकारी पिजो मीटर देता रहेगा, इस प्रयास से जल स्तर बना रहेगा।

नहीं बने रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

भूगर्भ जलस्तर को सुधारने और पानी की बबार्दी रोकने के लिए सरकारी कार्यालयों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की स्थापना करने का प्रावधान स्मार्ट सिटी योजना के तहत किया गया था, लेकिन यह कवायद अभी कागजों तक ही सीमित है जिसकी वजह से सरकारी कार्यालयों में सिस्टम तैयार नहीं हो सके। लखनऊ स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने वर्षा जल संचयन के साथ ही हर रोज नालों में बेकार बह जाने वाले जल को बचाने के लिए यह योजना तैयार की थी। इसके लिए एबीडी क्षेत्र यानी कैसरबाग के आस पास के 24 सरकारी इमारतों को चिह्नित किया गया है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद सालाना करीब डेढ़ सौ एमएलडी बरसाती पानी को बचाने का दावा किया गया था।

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