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इस जिले में मिला विश्व का पहला आप्टिक न्यूराइटिस बीमारी का मरीज !

optic neuritis

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वैश्विक महामारी कोरोना से अब नये—नये रोग सामने आ रहे हैं। कोरोना से जहां लोगों का भय कम होने लगा तो ब्लैक फंगस आ गया और लोगों में फिर भय व्याप्त हो गया। हालांकि ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या कोरोना की अपेक्षा नगण्य है। ब्लैक फंगस को लेकर अभी सही से सभी लोग जान भी नहीं पाये कि अब एक और बीमारी ब्लैक फंगस से भी आगे निकल चुकी है।

खास बात यह है कि यह बीमारी भी कोरोना से जुड़ी है और तीसरे चरण की है, यानी ब्लैक फंगस से ग्रसित मरीज को ही नई बीमारी आप्टिक न्यूराइटिस हुई है और इसका पहला मरीज कानपुर के मेडिकल कालेज में पाया गया। इस नई बीमारी को लेकर जहां मेडिकल कालेज के विशेषज्ञ शोध कर रहे हैं तो वहीं अन्तरराष्ट्रीय जनरल में भी इस बीमारी को प्रकाशित करने की कागजी प्रक्रिया पूरी कर ली गई है, ताकि दुनियाभर के विशेषज्ञ डाक्टर अपनी राय दे सकें। मेडिकल कालेज के नेत्र विभाग के विभागाध्यक्ष डा. परवीन खान का दावा है कि इस बीमारी का विश्व का पहला मरीज कानपुर में पाया गया, जिस पर शोध कार्य चल रहा है।

गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कालेज से संबद्ध लाला लाजपत राय अस्पताल (हैलट) में 20 दिन पहले 37 साल के आशीष को एडमिट किया गया था। वह पहले कोरोना पॉजिटिव मरीज था और आंखो में तकलीफ होने पर उसे ब्लैक फंगस की आशंका हुई। नेत्र रोग विभाग के विभागध्यक्ष डा. परवीन खान की देखरेख में ब्लैक फंगस वार्ड में भर्ती मरीज को जब डाक्टरों ने देखा तो उन्हे ब्लैक फंगस से भी आगे कुछ समझ में आया।

इस पर डा. परवीन खान ने स्टडी की और नई बीमारी का नाम ऑप्टिक न्यूराइटिस दिया। फिलहाल उसकी आंखों की रोशनी प्रभावित हुई है, डा. खान का दावा है कि यह ऑप्टिक न्यूराइटिस का विश्व में पहला मरीज है। बताया कि आशीष के केस में ब्लैक फंगस के एक नए प्रभाव को उजागर किया है, जिसमें फंगल संक्रमण से नसों में सूजन आ जाती है और रोशनी जा सकती है। इस केस से यह भी पता चला है कि ब्लैक फंगस ब्लड से ही नहीं नस के जरिए भी दिमाग तक पहुंच सकता है।

स्टेरॉयड देने से बढ़ेगा खतरा

विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान ने बताया ब्लैक फंगस की वजह से आर्टरी ब्लॉकेज के तो कई मरीज आए और उनका इलाज भी हमने किया, लेकिन ऑप्टिक न्यूराइटिस का यह पहला मरीज है। फिलहाल उसकी दोनों आंखों की रोशनी काफी प्रभावित हुई है। खान के मुताबिक इस फंगल संक्रमण से नसों में सूजन आ जाती है और खून के थक्के जम जाते है जिसकी वजह से मरीज की आंखों की रोशनी चली जाती है।

बताया कि इस नये रोग का इलाज करने में सबसे बड़ी बाधा आ रही है कि ऐसे मरीज को स्टेरॉयड नहीं दिया जा सकता है, जबकि ब्लैक फंगस और कोरोना में स्टेरॉयड दिया जाता है। इस नये रोग से ग्रसित रोगी को अगर स्टेरॉयड दिया जाय तो खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में रोगी का इलाज करना चुनौती बना हुआ है, फिलहाल पूरा प्रयास किया जा रहा है कि पहले रोगी को किसी भी तरह से बिना किसी क्षति के सही किया जाये।

बताया इस रोग को अन्तरराष्ट्री जनरल में प्रकाशित करने के लिए पूरे कागजात तैयार कर लिये गये हैं। अन्तरराष्ट्रीय जनरल में प्रकाशित होने के बाद दुनिया भर के डाक्टर्स अपनी—अपनी राय दे सकेंगे, जिससे शोध करने में सहायता मिलेगी।

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