हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है, जो इस वर्ष 16 जून को है। बता दें स्कंद षष्ठी पूरे साल में 12 और महीने में एक बार आती है। इस त्योहार को दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र कार्तिकेय अर्थात स्कंद देव की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।
स्कंद षष्ठी व्रत करने का लाभ
इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि इस तिथि को कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था। स्कंद षष्ठी व्रत करने से नि:संतानों को संतान की प्राप्ति होती है, सफलता, सुख-समृद्धि प्राप्त होता है। साथ ही इस दिन व्रत करने से हर दु:ख का निवारण हो जाता है और दरिद्रता मिट जाती है। इस व्रत को करने से क्रोध, लोभ, अहंकार, काम जैसी बुराइयां भी खत्म हो जाती हैं।
चंपा षष्ठी भी कहा जाता है
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है। वैसे तो उनकी पूजा नवरात्रि के 5वें दिन करने का विधान है। लेकिन इस दिन भी कार्तिकेय भगवान और स्कंदमाता की पूजा की जाती है। भगवान कार्तिकेय को चंपा के फूल पसंद होने के कारण ही इस दिन को स्कंद षष्ठी के अलावा चंपा षष्ठी भी कहते हैं।
पूजा विधि और नियम
सुबह जल्दी स्नान कर भगवान कार्तिकेय की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
कार्तिकेय भगवान के साथ-साथ उनके माता-पिता भगवान शिव और देवी पार्वती की भी पूजा करें।
उन्हें अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, कलावा, दीपक, गाय का घी, इत्र, पुष्प आदि अर्पित करें।
फिर उन्हें बादाम और नारियल से बनीं मिठाइयां भी अर्पित करें।
भगवान कार्तिकेय की पूजा दीपक, गहनों, कपड़ों और खिलौनों से की जाती है। यह शक्ति, ऊर्जा और युद्ध के प्रतीक हैं।
पूजा के दौरान अखंड दीपक जलाएं।
फिर स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करें और अंत में आरती के बाद प्रसाद वितरण करें।
इस दिन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए।
पूरे दिन संयम से भी रहना होता है।