आरती (Aarti) अत्यंत प्राचीन शब्द है। आरती (Aarti) के महत्व की चर्चा सबसे पहले “स्कन्द पुराण” में की गयी है। इसका मतलब होता है किसी भी देवी-देवता की पूजा करने के बाद लयबद्ध तरीके से भगवान के आशीर्वाद का गान करना, उनका बखान करना और उनका धन्यवाद करना। आरती (Aarti) की प्रक्रिया में, एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के सामने दाएं हाथ की तरफ घुमाते हैं। आरती की थाली में रखी हर एक सामग्री का अपना एक अलग महत्व होता है। सभी भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
मान्यता है कि जिस घर में दोनों समय आरती होती है, वहां भगवान का वास होता है और भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं। आज हम जानेंगे भगवान की आरती करने का सही तरीका और महत्व।
आरती करने के नियम
– भगवान की पूजा बिना आरती के पूरी नहीं मानी जाती।
– बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के केवल आरती भी नहीं कर सकते।
-आरती करने से पहले थाल तैयार करना होता है।
– जिसमें कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है।
– ध्यान रहे कि अगर दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी होना चाहिए।
– इसके साथ ही थाली में पूजा के फूल, रोली, अक्षत, प्रसाद आदि रखें।
– ॐ की आकृति में आरती की थाली को घुमाना चाहिए।
– आरती करते समय ध्यान रहे कि आरती भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाएं।
– आरती होने के बाद जल से आरती का आचमन करें और उस जल का अन्य लोगों पर छिड़काव करें।
– दोनों हाथों को दीपक की लौ के आसपास लाकर मस्तक पर लगाएं।
– इस तरह से आरती की जाए तो घर में नकारात्मकता नहीं रहती और वास्तुदोष भी समाप्त हो जाता है।
आरती का महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने कहा है कि जो व्यक्ति घी के दीपक से आरती करता है वो कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में निवास करता है। साथ ही कहा गया है कि जो व्यक्ति मेरे समक्ष हो रही आरती के दर्शन करता है उसे परमपद की प्राप्ति होती है। वर्णन मिलता है कि अगर कोई व्यक्ति कपूर से आरती करता है तो उसे अनंत में प्रवेश मिलता है।