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शीतला अष्टमी पर इस विधि से करें पूजा, जानें महत्व

Sheetla Ashtami

Sheetla Ashtami

हर साल चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी (Sheetla Ashtami ) का पावन पर्व मनाया जाता है। शीतला अष्टमी को बसौड़ा नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। शास्त्रों में शीतला माता को आरोग्य प्रदान करने वाली देवी बताया गया है। इस साल 21 मार्च को शीतला अष्टमी है।

शीतला अष्टमी (Sheetla Ashtami ) का महत्व-

इस दिन जो महिला, माता का श्रद्धापूर्वक पूजन करती है, उनका परिवार और बच्चे निरोगी रहते हैं। मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है। गर्मी में होने वाले चेचक जैसे संक्रामक रोगों से मां रक्षा करती हैं। माता शीतला को शीतलता प्रदान करने वाली माता कहा गया है। इसलिए उनको समर्पित भोजन पूरी तरह शीतल रहे। माता के भक्त भी प्रसाद स्वरूप ठंडा भोजन ही अष्टमी के दिन ग्रहण करते हैं।

बासी भोजन का प्रसाद चढ़ाते हैं

माता शीतला को बासी भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है। सप्तमी की शाम में ही लोग पुआ, पकवान, खीर समेत अन्य व्यंजन तैयार किये जाते हैं और अगले दिन महाअष्टमी के दिन बासी व्यंजन माता शीतला को चढ़ा कर प्रसाद के रूप में लोग ग्रहण करते हैं।

कब है शीतला अष्टमी (Sheetla Ashtami ) 

चैत्र मास की अष्टमी तिथि को बसौड़ा पूजा की जाती है। कई जगह इसे शीतला सप्तमी, अष्टमी और बसिऔरा भी कहते हैं। इस साल सप्तमी तिथि की पूजा 21 मार्च को और अष्टमी तिथि की पूजा 22 मार्च को होगी।

शीतला अष्टमी (Sheetla Ashtami ) व्रत के दिन न करें ये काम-

इस दिन घरों में चूल्हा जलाना वर्जित होता है।

शीतला अष्टमी (Sheetla Ashtami ) पूजा-विधि

-सबसे पहले शीतला अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नहा लें।

-पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें।

-दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें।

-दोनों थालियों के साथ में ठंडे पानी का लोटा भी रख दें।

-अब शीतला माता की पूजा करें।

-माता को सभी चीज़े चढ़ाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं।

-मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाकर रोली और हल्दी का टीका करें।

-माता को मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें।

-आटे के दीपक को बिना जलाए माता को अर्पित करें।

-अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाकर उसे घर के सभी सदस्यों को आंखों पर लगाने को दें। बाकी बचा हुआ जल घर के हर हिस्से में छिड़क दें।

-इसके बाद होलिका दहन वाली जगह पर भी जाकर पूजा करें। वहां थोड़ा जल और पूजन सामग्री चढ़ाएं।

-घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें।

-अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय या ब्राह्मण को दे दें।

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