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शी जिनपिंग को तख्तापलट का डर, पार्टी में विरोधी खेमे को लेकर हैं परेशान

नई दिल्ली। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पूरी दुनिया पर प्रभुत्व कायम कर देश को सुपरपावर बनाने का सपने देख रहे हैं, लेकिन शी जिनपिंग की रातों की नींद उड़ी हुई है। कहने को तो जिनपिंग चीन के सर्वशक्तिशाली, सर्वमान्य नेता हैं लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें एक डर खाए जा रही है। जिनपिंग ने 2012 में सत्ता हासिल करने के बाद कैसे अपनी ताकत बढ़ाई दुनिया जानती है, लेकिन जिनपिंग की तानाशाही अब उनपर भारी पड़ रही है।

शी जिनपिंग का काउंटडाउन शुरू!

ब्रिटिश अखबार एक्सप्रेस ने दावा किया है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है। कम्युनिस्ट पार्टी के दबाव की वजह से जिनपिंग की कुर्सी खतरे में है। दरअसल कम्युनिस्ट पार्टी का आरोप जिनपिंग कोरोना को सही तरीके से संभाल नहीं पाए। ऐसे में जिनपिंग को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

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बता दें, जिनपिंग के इशारों पर ही चीन ने कोरोना का सच पूरी दुनिया से छिपाया, पिछले साल सितम्बर से ही कोरोना फैलना शुरू हो गया था, लेकिन जिनपिंग ने इस सच को दुनिया से छिपाया और पूरी दुनिया को कोरोना के मुंह में झोंक दिया है।

दुनिया को डराने वाला खुद क्यों डरा हुआ है?

चीन में बिना जिनपिंग की मर्ज़ी के पत्ता भी नहीं हिल सकता, लेकिन सत्ता का यही केंद्रीकरण अब जिनपिंग की सत्ता हिलाने वाला है। चीनी जनता हो या चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सब जिनपिंग की डिक्टेटरशिप से आजिज़ आ चुके हैं।

जिनपिंग को भी इस सच्चाई का एहसास है और यही वजह है कि जिनपिंग डरे हुए हैं, आतंकित हैं, क्योंकि सत्ता से चिपके रहने के लिए जिस जिनपिंग ने संविधान में बदलाव करवा लिया और आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का प्रावधान करा लिया वह उसी सत्ता से बेदखल होने के डर से विचलित हैं।

क्या जिनपिंग को है बगावत का डर?

खुद कम्युनिस्ट पार्टी में जिनपिंग के खिलाफ बगावत की चिंगारी सुलग रही है। 2022 में होने वाले नेता के चुनाव में जिनपिंग को डर है कि पार्टी से उन्हें कितना समर्थन मिलेगा। जिनपिंग को लेकर जनता में जिस तरह का सेंटीमेंट है वो कम्युनिस्ट पार्टी का रवैया तय करेगा, क्योंकि भले ही जनता सीधे राष्ट्रपति के चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी लेकिन उसका मूड काफी हद तक पार्टी का रुख तय करेगा और जनता का मौजूदा मूड जिनपिंग के कत्तई खिलाफ है।

13 करोड़ से ज़्यादा लोग बेरोज़गार हो चुके हैं। बेरोज़गारी की दर 12 फीसदी से ज़्यादा है। 1990 के बाद चीन ने ऐसी बेरोज़गारी नहीं देखी। कोरोना को लेकर जनता में भारी नाराज़गी है। उसकी बानगी वुहान के आसपास विरोध प्रदर्शनों में दिखी। इसलिए शी जिनपिंग को डर है कि उनकी कुर्सी कभी भी खिसक सकती है।

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