गोरखपुर। गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) पर बतौर गोरक्ष पीठाधीश्वर सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) परंपरागत ढंग से गोरखनाथ मंदिर में भक्तों को आशीर्वाद देंगे। इस मौके पर गुरु शिष्य परंपरा की एक से बढ़कर एक मिसाल दी जाती है, लेकिन मौजूदा वक्त में सीएम योगी और उनके गुरु ब्रह्मलीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जैसी मिसाल मिलना मुश्किल है।
गुरु ने एक कॉलेज से निकले 22 साल के नौजवान अजय सिंह बिष्ट को नाथपंथ की दीक्षा दी, गोरक्षपीठ का उत्तराधिकार सौंपा और उनकी रगों को हिंदुत्व से सींचा तो शिष्य ने भी गुरु की हर इच्छा को भगवान का आदेश मन और उन्हें पूरा किया। शिष्य ही नहीं, बल्कि एक श्रेष्ठ पुत्र की तरह भी अपने गुरु का ख्याल रखा।
फायर ब्रांड नेता की छवि, गुरु के समक्ष हमेशा दंडवत
फायर ब्रांड नेता की छवि से अलग योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) अपने गुरु के सामने सदैव दंडवत रहे। उन्होंने एक साथ शिष्य और पुत्र दोनों के दायित्वों को पूरा करने का भरसक प्रयास किया। गुरु के सानिध्य में रहकर कठिन प्रशिक्षण से गुजरते हुए योगी आदित्यनाथ ने नाथपंथ की हर परंपरा और पद्धति को जाना तो एक विशाल पीठ का प्रशासन और राजनीतिक उत्तराधिकार संभालने में पूरी तरह सक्षम भी बने। कहते हैं महंत अवैद्यनाथ ने पहली ही नजर में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की क्षमताओं को पहचान लिया था।
पहली मुलाकात में ही योगी (Yogi) के मुरीद हो गए थे महंत अवैद्यनाथ
बताते हैं कि वर्ष 1990 में पहली बार दोनों की मुलाकात हुई थी। महंत अवैद्यनाथ जब श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के सिलसिले में भारत भ्रमण पर थे, उस समय ही इनकी मुलाकात युवा अजय सिंह बिष्ट से हुई थी। उस समय अजय सिंह बिष्ट (योगी आदित्यनाथ) तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर से बहुत प्रभावित हुए थे। इसके बाद वर्ष 1993 की शुरुआत में दोनों की एक बार फिर मुलाकात हुई। इस मुलाकात में महंत अवैद्यनाथ ने कह दिया था कि वह (Yogi Adityanath) एक जन्मजात योगी हैं और एक दिन उनका गोरक्षपीठ आना निश्चित है। नवंबर 1993 में अपना परिवार, गांव और दोस्त मित्रों को छोड़कर अजय सिंह बिष्ट गोरखपुर चले आए। महंत अवैद्यनाथ ने 15 फरवरी 1994 को बतौर उत्तराधिकारी अजय सिंह बिष्ट का अभिषेक कर दिया। अब वे योगी आदित्यनाथ हो गये। इसके बाद गुरु ने धीरे-धीरे अपना राजनैतिक उत्तराधिकार भी शिष्य को सौंप दिया।
1998 में बने सांसद
वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath), महंत अवैद्यनाथ के चुनाव का प्रबंधन संभाल रहे थे। वर्ष 1998 में महंत अवैद्यनाथ के सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। योगी आदित्यनाथ पांच बार लगातार गोरखपुर से संसद के सदस्य चुने जाते रहे।
पहले ही चुनाव में गुरु से मिली बड़ी सीख
बात वर्ष 1998 के चुनाव की है। इस चुनाव में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जमुना निषाद के बीच कड़ा मुकाबला था। योगी की उम्र उस समय महज 26 साल थी। बताते हैं कि चुनाव के दिन वह एक मतदान केंद्र पर पहुंचे तो वहां उन्हें गोरक्षपीठ की ओर से संचालित एक कालेज का कर्मचारी समाजवादी पार्टी का एजेंट बना सबसे आगे दिखाई पड़ा। कुछ दिनों बाद संयोग से उस कर्मचारी के खिलाफ प्रधानाचार्य स्तर से कार्यवाही हो गई। चपरासी ने इसे चुनाव से अपनी भूमिका को जोड़कर देखा। शिकायत लेकर सीधे महंत अवैद्यनाथ के पास पहुंचा। महंत अवैद्यनाथ को उसने पूरी बात बताई तो उन्होंने अपने शिष्य योगी आदित्यनाथ से कहा कि यह ठीक नहीं है। लोकतंत्र में जिसे जहां और जिसके साथ रहने की इच्छा होगी वह वहां और उसके साथ रहेगा। बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने इसके तत्काल बाद प्राचार्य से मामले की जानकारी ली और कर्मचारी को बहाल करा दिया।
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एक पुत्र की तरह गुरु को उम्र का अहसास न होने दिया
योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) , एक श्रेष्ठ पुत्र की तरह यह हमेशा कोशिश करते रहे कि महंत वैद्यनाथ को उनकी बढ़ती उम्र यह स्मृतियों के कमजोर पड़ते जाने का एहसास न हो। इसका एक संस्मरण सुनाते हुए गुरु गोरक्षनाथ विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ। प्रदीप राव बताते हैं कि वर्ष 2012 में गोरखनाथ मंदिर का एक कैटलॉग तैयार किया जा रहा था। कई पुराने फोटो में कुछ ऐसे चेहरे थे, जिन्हें हम पहचान नहीं पा रहे थे। योगी आदित्यनाथ जी महाराज के साथ हम लोग बड़े महाराज जी (महंत अवैद्यनाथ) के पास उन फोटोग्राफ्स के साथ पहुंचे। बड़े महाराज जी ने पहली फोटो देखकर कहा कि हां मैं पहचान रहा हूं, लेकिन उन्होंने नाम नहीं बताया। 10 सेकंड बाद हमने दूसरी फोटो उनके सामने रख दी। इस बार भी उन्होंने कहा कि पहचान रहा हूं, लेकिन नाम नहीं बताया। स्मरण शक्ति पर जोर देते हुए अपने गुरु को देख छोटे महाराज जी (योगी आदित्यनाथ) ने एक जिम्मेदार पुत्र की तरह फोटो दिखाने का यह क्रम यहीं रोक दिया। लेकिन बातचीत का सिलसिला कुछ इस तरह जारी रखा कि बड़े महाराज जी को इस बात का थोड़ा भी आभास नहीं हुआ कि उन्होंने फोटो में दिखाए गये लोगो के नाम नहीं बताये हैं।