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आमेर किले पर बिजली गिरने से 11 की मौत, रात भर चला रेसक्यू ऑपरेशन

Amer Fort

11 killed in lightning strike at Amer Fort

जयपुर में मानसून की पहली बारिश काल बनकर आई। रविवार शाम करीब सात बजे मूसलाधार बारिश के बीच गिरी आकाशीय बिजली से 11 लोगों की मौत हो गई। 10 से ज्यादा झुलस गए।

बिजली आमेर किले के ठीक सामने 500 मीटर ऊंचाई पर बने वॉच टावर पर गिरी। यहां लोग बारिश का लुत्फ लेने पहुंचे थे। हादसे के बाद करीब आधे घंटे तक लाशों के बीच घायल भी बेसुध पड़े रहे, जिसमें से कुछ को रेस्क्यू टीम ने मौके पर ही सीपीआर देकर बचा लिया।

घायलों में से जब एक व्यक्ति ने फोन लगाकर पुलिस को सूचना दी, तब बचाव दल मौके पर पहुंचा। आमेर ACP सौरभ तिवाड़ी मौके पर पहुंचे। वहां SDRF की टीम भी बुला ली गई। स्थानीय लोग भी उनकी मदद में जुट गए।

रेस्क्यू टीम के पहाड़ी पर पहुंचने तक काफी अंधेरा हो चुका था। मोबाइल की फ्लैश लाइट की रोशनी में रात करीब आठ बजे रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ। इस बीच ड्रैगन टॉर्च भी मंगवाई गई। इससे अंधेरी पहाड़ियों पर सर्च करना थोड़ा आसान रहा। रातभर चले ऑपरेशन में एक भी घायल पहाड़ियों पर नहीं मिला। यह रेस्क्यू ऑपरेशन सोमवार सुबह 7 बजे खत्म हुआ।

इसके बाद जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के जवानों ने ड्रोन कैमरे से चप्पे-चप्पे पर सर्च करना शुरू किया। इस बीच SDRF की दो बटालियनों में मौजूद जवान भी अंतिम सर्च ऑपरेशन में जुट गए।

सिविल डिफेंस के डिप्टी कंट्रोलर जगदीश रावत ने बताया कि शाम 7 बजकर 29 मिनट पर आमेर में बिजली गिरने की सूचना मिली थी। इसके बाद महल में तैनात सिविल डिफेंस के जवान बबलू सैन, शाहबाज, हंसराज और गौरीशंकर ऊपर गए। करीब आधे घंटे की चढ़ाई पूरी करने के बाद सिविल डिफेंस के जवान मौके पर पहुंचे। वहां मलबे के बीच कई लोगों को अचेत पड़े देखा तो उनके होश उड़ गए। तब कलेक्ट्रेट कंट्रोल रूम को बताया कि हादसा बड़ा है। यहां काफी ज्यादा कैजुअल्टी है।

इसके बाद जगदीश प्रसाद रावत टीम के साथ मौके पर पहुंचे और रेस्क्यू ऑपरेशन में तेजी आई। बचाव के लिए 23-23 जवानों की तीन टीमें बनाई गई। इनमें पहली टीम ने बेसुध पड़े लोगों को CPR (कृत्रिम सांस) देना शुरू किया। यह पता लगाना शुरू किया कि घटनास्थल पर कौन जिंदा है और कौन जान खो बैठा है। इसी तरह, दूसरी टीम ने घायलों को स्ट्रेचर और कंधों पर बैठाकर स्थानीय लोगों के साथ नीचे एंबुलेंस तक लाना शुरू कर दिया। घटनास्थल पर 108 एंबुलेंस की 10 गाड़ियां मंगवाई गईं।

देर रात तक 27 लोगों को पहाड़ी से नीचे लाया गया। इनमें एक लड़का और दो लड़कियों समेत 11 लोग जान गवां चुके थे। बाकी लोग घायल थे, जिन्हें एसएमएस अस्पताल में भर्ती किया गया। इस बीच पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और कलेक्टर अंतर नेहरा सहित पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर मौजूद रहे।

रात करीब 1 बजे वॉच टावर के आसपास रेस्क्यू और तलाश का काम रोक दिया गया। इसके बाद सिविल डिफेंस के लीडर महेंद्र सेवदा और बाकी टीमें नीचे उतरकर हांडीपुरा की तरफ पहुंचीं। वहां से पहाड़ी पर वॉच टावर के पिछले हिस्से में सर्च ऑपरेशन चला। सुबह 7 बजे तक यह लगातार जारी रहा, लेकिन इस ऑपरेशन में कोई भी घायल या शव नजर नहीं आया।

सिविल डिफेंसकर्मी महेंद्र सेवदा, बबूल सैन, अशोक गुर्जर और अन्य लोगों ने बताया कि हादसे के बाद तेज बारिश से पहाड़ी पर चट्‌टानें फिसलन भरी हो गई थीं। यहां से 27 लोगों को रेस्क्यू कर नीचे उतारना बहुत चुनौती वाला काम था। सीढ़ियों पर भी फिसलन थी। इनकी ऊंचाई करीब डेढ़ फीट थी। ऐसे में टीम के साथियों ने एक दूसरे का हौसला बनाए रखा और घायलों और मृतकों को लेकर नीचे आए।

सबसे बड़ा सवाल था हादसे में बचे लोगों की जिंदगी बचाने का, किसी भी तरह से और कैसे भी। अचानक वहां पड़े कुछ लोगों की सांसें चलती महसूस हुईं। हमने लाशों के बीच धड़कनें सुन CPR देना शुरू किया और घायलों को अलग करना शुरू कर दिया। तब तक एंबुलेंस नीचे आ चुकी थी। मदद के लिए भी स्थानीय लोगों के हाथ जुट गए थे।

सिविल डिफेंस के वॉलंटियर बबलू सैन ने बताया कि शाम को करीब 7 बजकर 40 मिनट हो रहे थे। कलेक्ट्रेट के कंट्रोल रूम के वायरलेस सेट पर मैसेज आया कि आमेर के वॉच टावर में बिजली गिरने से आठ लोगों की मौत हो गई है। टीम जल्दी वहां पहुंचे…ओवर। बस फिर क्या था, आपदा प्रबंधन टीम के उपनियंत्रक नागरिक सुरक्षा जगदीश रावत ने तत्काल हमको मोबाइल पर सूचना दी और जल्द से जल्द घटनास्थल पर पहुंचने के लिए कहा। साथ ही, जगदीश रावत खुद 30 वॉलंटियर्स की टीम को लेकर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए। 15-20 मिनट में वॉलंटियर्स मौके पर पहुंचे और बचाव कार्य शुरू कर दिया।

बबलू बताते हैं कि कई लाशें और घायल पड़े थे। ड्रैगन लाइटों से देखा तो छतरी के आसपास पहाड़ी पर एक के बाद एक चारों तरफ खून से लथपथ घायल और लाशें मिलती गईं। ये सब देख एक बार तो टीम के पसीने छूट गए, लेकिन सवाल था जिंदगी बचाने का? किसी भी तरह से और कैसे भी? अचानक वहां पड़े कुछ लोगों की सांसें चलती महसूस हुईं। हमने लाशों के बीच धड़कने सुन सीपीआर देना शुरू किया और घायलों को बचा लिया। पूरी टीम तीन हिस्से में बांट दी गई। एक टीम ने घायलों को सीपीआर देना शुरू किया और दूसरी टीम ने घायलों की मरहम पट्‌टी शुरू की।

तीसरी टीम घायलों और मरने वालों को अलग करने में जुट गई। इतने में शहर से 12 एंबुलेंस पहुंच गईं। पहाड़ी की चोटी से स्ट्रेचर पर घायलों व मृतकों को नीचे उतारना बड़ा चैलेंज था। स्थानीय लोगों की मदद से एक के बाद एक रात 10 बजे तक 27 लोगों को स्ट्रेचर पर नीचे उतारा। इनमें कई मृतक भी शामिल थे। इसके बाद फिर छतरी के आसपास पहाड़ी पर ड्रैगन लाइटों से सर्च ऑपरेशन शुरू किया। सिविल डिफेंस के राहुल, महेंद्र कुमार, यूनुस खान, राजेश कुमार ने बताया कि वॉच टावर पर लोग फोटोग्राफी के लिए चढ़े थे, इसी दौरान हादसा हो गया।

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