बिकरू कांड की जांच के लिए गठित 3 सदस्य जांच आयोग ने भले ही विकास दुबे का एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम को क्लीन चिट दे दी हो, लेकिन आयोग की रिपोर्ट ने गैंगस्टर विकास दुबे और अफसरों की मिलीभगत का कच्चा चिट्ठा जरूर सामने ला दिया है।
जांच आयोग 5 महीने तक विकास दुबे से जुड़ी 21 मुकदमों की फाइल मांगता रह गया। लेकिन फाइल नहीं मिली। बताया जा रहा है कि विकास दुबे के 21 मुकदमों की फाइलें ही गायब हो गई हैं।
रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान, शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता के जांच आयोग ने 5 महीने तक विकास दुबे के एनकाउंटर और विकास दुबे से जुड़े मामलों की जांच की तो पता चला विकास दुबे पर दर्ज 21 मुकदमों की तो फाइल ही गायब है। जिन 21 मुकदमों की फाइलें 5 महीने तक अधिकारी जांच आयोग के सामने पेश नहीं कर पाए उनमें 11 मामले शिवली थाने के, 4 कल्याणपुर थाने के, 5 मामले चौबेपुर और 1 मामला बिल्हौर का है। जिन मुकदमों की फाइलें गायब हैं उनमें गुंडा एक्ट, हत्या का प्रयास, पुलिस पर हमला, मारपीट जैसे गंभीर धाराओं के मुकदमे शामिल हैं जिनकी फाइलें ही जांच आयोग को नहीं मिलीं।
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दरअसल, जांच आयोग ने विकास दुबे पर दर्ज सभी मुकदमों से जुड़ी एफआईआर, चार्जशीट, गवाहों की सूची और उनके दिए बयान की फाइल मांगी थी। विभिन्न थानों में दर्ज 43 मामलों की तो फाइल जांच आयोग को मिली, लेकिन 21 मुकदमों की फाइलें नहीं मिल सकी। जांच आयोग ने गंभीर अपराधों की फाइल गायब होने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की सिफारिश की है।
जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में साल 2001 में दर्ज हत्या के एक मामले का जिक्र करते हुए साफ लिखा है कि कानपुर देहात के सत्र न्यायालय से 14 जून 2004 को विकास दुबे को सजा सुनाई गई, 15 जून को विकास दुबे की तरफ से हाईकोर्ट में अपील हुई। अगले ही दिन, 16 जून को मामले की सुनवाई करते हुए विकास दुबे को जमानत मिल गई। इस मामले में सरकारी वकील को सुना ही नहीं गया। राज्य सरकार की तरफ से भी विकास दुबे की हिस्ट्रीशीट के आधार पर उसकी जमानत अर्जी खारिज कराने के लिए भी कोई कोशिश नहीं हुई।
जांच आयोग ने बिकरु कांड की रात 2 जुलाई 2020 में पुलिस की लापरवाही का भी जिक्र करते हुए कहा कि इस पुलिस पूरी छापेमारी की अगुवाई कर रहे दिवंगत डिप्टी एसपी देवेंद्र मिश्रा समेत कोई भी पुलिस वाला बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहने था। 40 में से सिर्फ 18 पुलिस वालों के पास हथियार थे, बाकी पुलिसकर्मी या तो खाली हाथ थे या उनके पास सिर्फ डंडा था। स्थानीय पुलिस और एलआईयू को भी नहीं पता था कि विकास दुबे के पास कौन-कौन से हथियार हैं। उसके सहयोगियों और विकास दुबे की फायर पावर क्या है।
स्थानीय एसओ चौबेपुर विनय तिवारी इस पूरी छापेमारी में खुद पीछे चल रहा था। देवेंद्र मिश्रा अपना मोबाइल गाड़ी में छोड़ गए थे जिसके चलते गैंग ने जब हमला किया तो वह अपनी पुलिस टीम से संपर्क नहीं कर पाए। फिलहाल, जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद अब उन पुलिसकर्मियों और अफसर पर कार्रवाई की तैयारी की जा रही है जो विकास दुबे के सहयोगी थे, जिनकी लापरवाही से विकास दुबे पर दर्ज 21 मुकदमों की फाइलें गायब हुई।