नई दिल्ली। सावन का महीने के साथ शुरू हो गई है पवित्र कांवड़ यात्रा। गगरियों में गंगाजल लिए श्रद्धालुओं की लाइनें सड़कों पर आज से नजर आने लगेंगी। शिव भक्ति में लीन इन श्रद्धालुओं को लोग ‘भोले’ कहते हैं। सावन महीने के पहले दिन नेमप्लेट (Nameplates) आदेश पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भी तमाम दुकानदारों और ठेलेवालों में खुशी की लहर है।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों को अनिवार्य रूप से नेमप्लेट लगाने के फैसले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक के बाद दुकानदारों में खुशी की लहर है। दुकानों से अब नेमप्लेट (Nameplates) हटने लगी हैं। सर्वोच्च अदालत ने यूपी, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है। इस मामले में अब 26 जुलाई को अगली सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चर्चा के बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए हम उपरोक्त निर्देशों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश पारित करना उचित समझते हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ढाबा मालिकों, फल विक्रेताओं, फेरीवालों समेत खाद्य विक्रेताओं को भोजन या सामग्री का प्रकार प्रदर्शित करने की जरूरत हो सकती है, लेकिन उन्हें मालिकों की पहचान उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।
Kanwar Yatra: ‘नेमप्लेट’ के फैसले पर लगी रोक, समेत अन्य राज्य सरकारों को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल यूपी, उत्तराखंड की सरकार को नोटिस भी जारी किया है। कोर्ट का कहना था कि यदि याचिकाकर्ता अन्य राज्यों को जोड़ते हैं तो उन राज्यों को भी नोटिस जारी किया जाएगा।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, पिछले हफ्ते मुजफ्फरनगर पुलिस ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों को अपने मालिकों की नेमप्लेट (Nameplates) लगाने के निर्देश दिए थे। बाद में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे राज्य में इस आदेश को लागू कर दिया। उत्तराखंड सरकार ने भी इस संबंध में आदेश जारी किया। योगी सरकार के इस कदम की ना सिर्फ विपक्ष, बल्कि एनडीए के सहयोगी जेडी(यू) और आरएलडी समेत अन्य पार्टियों ने भी आलोचना की।
विपक्ष ने आरोप लगाया कि ये आदेश सांप्रदायिक और विभाजनकारी है और इसका उद्देश्य मुसलमानों और अनुसूचित जातियों (एससी) को उनकी पहचान बताने के लिए मजबूर करके उन्हें निशाना बनाना है। हालांकि, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की सत्ता में मौजूद बीजेपी ने कहा कि यह कदम कानून-व्यवस्था के मुद्दों और तीर्थयात्रियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।