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इस मंदिर में माता को चढ़ाए जाते थे अंग्रेजों के कटे सिर, बाबू बंधू सिंह से जुड़ी है कहानी

Writer D by Writer D
31/03/2025
in धर्म, Main Slider, फैशन/शैली
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Tarkulha Devi Temple

Tarkulha Devi Temple

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गोरखपुर सिटी से 15-17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तरकुलहा देवी मंदिर (Tarkulha Devi Temple) एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहां पर दूर दराज से लोग मां तरकुलहा का दर्शन करने के लिए आते हैं। चैत्र नवरात्र में यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां का दर्शन करने के लिए आते हैं। तरकुलहा देवी मंदिर (Tarkulha Devi Temple) का इतिहास बाबू बंधू सिंह नामक स्वतंत्रता सेनानी से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि बाबू बंधू सिंह ने यहां तरकुल के पेड़ के नीचे पिंड स्थापित कर देवी की उपासना की थी।

बाबू बंधू सिंह का भारत के स्वतंत्रता में काफी सहयोग रहा है। अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने गोरिल्ला युद्ध में भाग लिया था। डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह तरकुलहा देवी को अपनी इष्ट देवी मानते थे। वह गोरिल्ला युद्ध में काफी माहिर थे। उन्होंने इस युद्ध से अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिया था।

सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले इस इलाके में जंगल हुआ करता था। यहां से गर्रा नदी होकर गुजरती थी। और यहीं नदी तट पर तरकुलक पेड़ के नीचे बाबू बंधू सिंह पिंडी स्थापित कर देवी की उपासना किया करते थे। जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता तो बाबू बंधू सिंह उसे मार कर उसका सिर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते थे। पहले अंग्रेजों को यह लगा कि उनके सिपाही जंगल में जाकर लापता हो जाते हैं, लेकिन बाद में उन्हें यह जानकारी हो गई कि उनके सिपाही बंधू सिंह का शिकार हो रहे हैं। इसके बाद अंग्रेज उनकी तलाश शुरू कर दी, लेकिन वो अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। बाद में एक व्यापारी के मुखबिरी से वह उनके हाथ लग गए।

सातवीं बार मिली फांसी

अंग्रेज सरकार ने बंधू सिंह को फांसी की सजा दी। बंधू सिंह को छह बार अंग्रेजों ने फांसी दी और वह कामयाब नहीं हुए सातवीं बार बंधू सिंह को अलीपुर चौराहे पर सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई। बताया जाता है कि सातवीं बार उन्होंने मां का ध्यान करते हुए उन्हें फांसी हो जाने का आग्रह किया। इसके बाद उन्हें फांसी हुई।

यह भी माना जाता हैं कि जब बाबू बंधू सिंह को अंग्रेजों ने फांसी दी तो तरकुल के पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट गया और खून के फव्वारे निकलने लगे। इस घटना के बाद, स्थानीय लोगों ने उस स्थान पर देवी मां की पूजा करनी शुरू कर दी और बाद में मंदिर का निर्माण करवाया।

चैत्र रामनवमी का मेला लगता है

चैत्र रामनवमी से एक माह का मेला तरकुलहा माता मंदिर (Tarkulha Devi Temple) पर लगता है। दूर दराज से लोग यहां मां का दर्शन करने आते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो इसके लिए मंदिर समिति द्वारा विशेष व्यवस्था की जाती है। प्रशासन द्वारा पुलिस की यहां अच्छी व्यवस्था की जाती है, जिससे श्रद्धालुओं को दर्शन करने में कोई परेशानी न हो। मंदिर के पुजारी ने बताया कि मां तरकुलहा माता की मान्यता तरकुल के पेड़ से है। यहां काफी दूर दराज से लोग आते हैं। श्रद्धालु यहां फल फूल नारियल चढ़ाते हैं। इससे खुश होकर मां उनकी सारी मुरादें पूरी करती हैं।

Tags: Tarkulha Devi Temple
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