दिल्ली कोर्ट ने कांग्रेस दफ्तर के बाहर प्रदर्शन के मामले में दिल्ली सरकार में मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा (Manjinder Singh Sirsa) और 9 अन्य को बरी कर दिया है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार के खिलाफ 12 साल पुराने मामले में अपना फैसला सुनाया है, जिसमें इन लोगों पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के बाहर विरोध प्रदर्शन करने का आरोप था।
तुगलक रोड पुलिस स्टेशन में 2013 में गैरकानूनी रूप से जमा होने और धारा 144 का उल्लंघन करने को लेकर मुकदमा दर्ज किया गया था। कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
इन नौ लोगों को मिली राहत
राउज एवेन्यू कोर्ट के एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नेहा मित्तल ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाते हुए इस मामले से जुड़े सभी लोगों को बरी कर दिया। बरी किए गए लोगों में मनजीत सिंह जीके (तत्कालीन अध्यक्ष, शिरोमणि अकाली दल बादल, दिल्ली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी), मनजिंदर सिंह सिरसा (Manjinder Singh Sirsa) (तत्कालीन महासचिव, DSGMC), ओंकार सिंह थापर (तत्कालीन सदस्य, DSGMC), कुलदीप सिंह भोगल, मनदीप कौर बख्शी, अवतार सिंह हित (सदस्य), हरजीत सिंह (तत्कालीन उप महाप्रबंधक DSGMC), हरमीत सिंह कालका (तत्कालीन संयुक्त सचिव), तेजिंदर पाल सिंह गोल्डी (तत्कालीन सदस्य), और बलजीत कौर खालसा का नाम शामिल है।
यह था मामला
अभियोजन पक्ष ने कहा कि उन्हें कोठी नंबर 26, अकबर रोड के पास लगाए गए पहले बैरिकेड पर रोक दिया गया। वे हाथों में तख्तियां लिए हुए थे और जोर-जोर से नारे लगा रहे थे कि ‘सज्जन कुमार को फांसी दो,’ ‘कांग्रेस हाय-हाय,’ और ‘सोनिया गांधी हाय-हाय।’ पुलिस ने उन्हें समझाने की कोशिश की और बताया कि इस जगह पर धरना देना CrPC की धारा 144 के तहत प्रतिबंधित है। चेतावनी के बावजूद, आरोपी मंजीत सिंह, जीके प्रधान और मनजिंदर सिंह सिरसा अपने उपरोक्त साथियों और समर्थकों के साथ, पहला बैरिकेड गिराने के बाद, दूसरे बैरिकेड की ओर बढ़ गए और नारेबाजी और प्रदर्शन करते हुए अपनी गतिविधियां जारी रखीं। अभियोजन पक्ष ने आगे बताया कि प्रदर्शनकारियों के साथ हुई हाथापाई की वजह से मौके पर खड़ी सरकारी बस का शीशा भी टूट गया था और इसी के आधार पर धारा 147, 149, 188 और 427 IPC के तहत मामला दर्ज किया गया था।
ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नेहा मित्तल ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आरोपियों को IPC की धारा 147/188 और धारा 427 के तहत अपराधों के लिए संदेह का लाभ देती है और आरोपियों को इन अपराधों के लिए दोषी नहीं मानती है।