हांगकांग दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले देशों में से है। हालत इतनी खराब हो चुकी है कि लोगों को दफनाने के लिए कब्रिस्तान भी बाकी नहीं। ऐसे में लोग शवों को दफनाने की बजाए उसे जलाकर अस्थियों को लॉकर में रख रहे हैं ताकि राख रखने जितनी ही जमीन मिल जाए।
पुरानी कब्रें खोदकर नई लाशें दफनाने का एलान
साल 1970 में ही प्रॉपर्टी की कीमतें हांगकांग में आसमान छूने लगीं। इसी दौरान लोगों के रहने के लिए जमीन के छोटे टुकड़े की अनुपलब्धता को देखते हुए वहां की सरकार ने तय किया कि देश में नए कब्रिस्तान नहीं बनाए जाएंगे। साथ ही आदेश दिया गया कि बनी-बनाई कब्रों को खोदकर हर 6 साल में शव निकालकर उन्हें जला दिया जाए ताकि नए आने वाले शवों के लिए जगह बन सके।
इस अजीबोगरीब नियम के बाद भी वहां मरने वालों के पास चैन से सोने की जगह नहीं बन सकी। मृतक का नंबर 6 साल में आएगा, उसके बाद भी जगह मिलेगी या नहीं, ये लॉटरी से तय होता है।
तुरंत पाने को देने होते हैं करोड़ों रुपए
अगर कोई मरने वाला काफी किस्मतवाला हो और किसी ऐसे चर्च का सदस्य हो, जहां मृतकों को दफनाने की जगह बाकी हो तो वो जगह पा सकता है। लेकिन इसके लिए भी कोई छोटी-मोटी रकम नहीं, बल्कि इसके लिए मृतक के परिजनों को 2 करोड़ 83 लाख रुपए खर्च करने होंगे। तो जाहिर है हांगकांग में न तो जीते-जी बड़ी आबादी के पास घर है और न मौत के बाद वे आराम कर सकते हैं।
अस्थियां जमा की जा रही हैं
यही कारण है कि बीते कुछ सालों से यहां एक अलग ही तरीका अपनाया जा रहा है। परिजन मृतक को दफनाने की बजाए सीधे जला देते हैं और अस्थियां जमा करके किसी सुरक्षित जगह या बैंक के लॉकर में रखवा देते हैं। वे इंतजार करते हैं कि अगर कभी वे जमीन खरीद सके या कब्रिस्तान खाली हुए तो वे अस्थियों को ही जमा करके सारी प्रक्रिया कर देंगे।
कब्रिस्तानों में अगले कई सालों के नंबर बुक हो चुका
यहां परिजन मृतकों की अस्थियां एक जार में जमा कर जाते हैं कि जब भी नंबर आए, उस राख को ही दफनाया जा सके। रॉयटर्स में इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट आई है, जिसमें बताया गया है कि कैसे यहां दफनाने के लिए भी लॉटरी सिस्टम काम करता है। अगर कोई अस्थियों को रखने का भी इंतजार न कर सके तो उसके लिए भी बंदोबस्त है। उसे ज्यादा नहीं, बस 94 लाख रुपए जमा कराने होंगे, जिसके बदले उसे A4 साइज (एक जूते के डिब्बे जितना बड़ा) की जमीन दी जाएगी, जिसमें केवल एक जार दफनाया जा सके।