आचार्य चाणक्य (Chanakya) की नीतियां और अनुमोल वचनों को जिसने जिंदगी में उतारा वो खुशहाल जीवन (happy life) जी रहा है। अगर आप भी अपने जीवन में सुख चाहते हैं तो इन वचनों और नीतियों को जीवन में ऐसे उतारिए जैसे पानी के साथ चीनी घुल जाती है।
चीनी जिस तरह पानी में घुलकर पानी को मीठा बना देती है उसी तरह से विचार आपके जीवन को आनंदित कर देंगे। आचार्य चाणक्य के इन अनुमोल विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार इस बात पर आधारित है कि दुष्ट व्यक्ति और सांप की प्रवृत्ति में क्या अंतर होता है।
‘एक दुष्ट व्यक्ति और सांप में अंतर है…सांप तभी डसेगा जब उसकी जान को आपसे खतरा महसूस हो। लेकिन दुष्ट व्यक्ति आपका हर कदम पर नुकसान करने की फिराक में रहेगा।’ आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि सांप (snake) और दुष्ट व्यक्ति दोनों ही जहरीलें होते हैं। लेकिन दोनों में जो अंतर है वो काफी गहरा है। सांप को सबसे ज्यादा जहरीना कहा जाता है। लेकिन आचार्य का कहना है कि सांप (Snake) से भी जहरीला अगर कोई है वो दुष्ट व्यक्ति है।
उदाहरण के तौर पर सांप के फन में भले ही जहर होता है लेकिन वो उसका इस्तेमाल मुसीबत आने पर करता है। यानी कि जब उसे ये लगे कि उसकी जान खतरे में है।
ऐसे में वो खुद को बचाने के लिए अपने एक मात्र हथियार जहर का इस्तेमाल करता है। सांप कभी भी बिना किसी वजह से किसी को डंसता नहीं है।