हिंदू धर्म में गंगा को नदी नहीं मां का द्रजा दिया जाता है। देखा जाये तो पूरे साल ही गंगा मैय्या भक्तों के पाप धोती हैं लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार कई तिथियां ऐसी आती हैं जो इस पवित्र नदी के स्नान को और भी फलकारी बना देती हैं। उसी में से एक तिथि है गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) । इस शुभ तिथि पर गंगा नदी में स्नान-ध्यान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सात्विकता की प्रधानता होती है। इस दिन मां गंगा के पवित्र जल में लगायी एक डुबकी आपके जन्मों के पापों को नष्ट कर देती हैं।
वैदिक पंचांग के अनुसार गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 5 जून को पड़ रही है और साथ कई शुभ संयोग भी बना रही है। इस तिथि पर इस बार रवि और सिद्धि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। जिसमें रवि योग दिन भर रहेगा लेकिन सिद्धि योग कुछ समय के लिए ही होगा। अगर आप गंगा दशहरे पर इन शुभ संयोगों के समय स्नान करेंगे तो ये आपके जीवन के लिए बेहद ही लाभकारी रहेगा। ऐसा करने से आपको जीवन में शुभ परिणाम तो मिलेंगे ही साथ ही पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। मान्यता है कि इस दिन स्नान और दान से जीवन संकट दूर होते हैं और व्यक्ति निरोगी होता है। तो चलिए जान लेते हैं गंगा दशहरा की तिथि, शुभ मुहूर्त और शुभ योग कब हैं।
गंगा दशहरे (Ganga Dussehra) की तिथि
04 जून को देर रात 11 बजकर 54 मिनट से ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत हो जायेगी। 05 जून को रात्रि लगभग 02 बजे ये तिथि समाप्त हो जायेगी लिहाजा 05 जून को उद्या तिथि के अनुसार ये गंगा दशहरा मनाया जाएगा।
गंगा दशहरे (Ganga Dussehra) का शुभ मुहूर्त
इस दिन स्नान करने का शुभ मुहूर्त 05 जून को सुबह 04 बजकर 02 मिनट से 04 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 02 मिनट- 04 बजकर 42 मिनट
विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 30 मिनट- 03 बजकर 22 मिनट
गोधूलि मुहूर्त – शाम 07 बजकर 15 मिनट- 07 बजकर 35 मिनट
निशिता मुहूर्त- रात 11 बजकर 59 मिनट- 12 बजकर 40 मिनट
गंगा दशहरे (Ganga Dussehra) का शुभ योग
रवि योग 05 जून को दिन भर रहेगा
सिद्धि योग 05 जून की सुबह 9 बजकर 15 मिनट तक रहेगा।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन शुभ मुहूर्त में स्नान और दान करने से मां गंगा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मां गंगा के मंत्र
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु
गंगा गंगेति योब्रूयाद् योजनानां शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोकं स गच्छति