करीब 20 साल बाद प्लाईवुड फैक्ट्री के कार्मिक परिवारों में खुशी देखने को मिली है। दरअसल, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) राहुल सिंह-द्वितीय ने आरोपितों के विरुद्ध शहर कोतवाली पुलिस को मुकदमा लिखकर विवेचना करने के लिए कहा है। अग्रिम आदेश के लिए पत्रावली 31 अगस्त के दिन तलब कर ली है।
बताया जा रहा है कि प्लाईवुड फैक्ट्री के श्रमिकों की जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो उन लोगों ने सीजेएम कोर्ट में अर्जी दायर की थी। इस पर सुनवाई के बाद मुकदमा दर्ज करने के आदेश से श्रमिक परिवारों में न्याय पाने की उम्मीद बढ़ गई है।
शहर के बाहर एनएच-24 पर हुसैनगंज में प्लाईवुड फैक्ट्री 2001 से बंद है। 22 वर्ष हो गए हैं, 425 श्रमिकों का बकाया मेहनताना भुगतान नहीं हुआ। फैक्ट्री पर इनका करीब 35 करोड़ रुपये बकाया है। वादकारी आर्य बंधु आर्य का कहना है कि प्लाईवुड फैक्ट्री की प्रापर्टी 7000 करोड़ रुपये की है। यह प्रापर्टी अंग्रेजों के बाद सरकार की होनी चाहिए, पर अभी तक ऐसा हो नहीं पाया है। फैक्ट्री के कर्मचारियों के परिवार अपने हक के लिए आज भी लड़ रहे हैं।
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आर्य बंधु आर्य ने बताया, तत्कालीन डीएम शीतल वर्मा ने प्लाईवुड फैक्ट्री मामले की जांच एलआइयू से कराई थी। इस रिपोर्ट पर कार्रवाई अब तक शून्य रही है। वैसे इस रिपोर्ट पर कार्रवाई के लिए आर्य बंधु आर्य ने काफी पैरवी की। डीएम शीतल वर्मा के स्थानांतरण के बाद यह फाइल ठंडे बस्ते में पड़ी हैं।
सीतापुर की प्लाईवुड फैक्ट्री कभी देश-विदेश में विशेष पहचान रखती थी। वर्ष 1939 में 150 बीघे में स्थापित प्लाईवुड प्रोडक्ट्स सीतापुर 2001 से बंद है।
इंग्लैंड के मूल निवासी मो. इस्माइल, हेनरी थामसन, मिस्टर जीन ए थालमैसेंजर, जीडब्लूएम एलेक्सजेंडर व्लीटल के नाम प्लाईवुड फैक्ट्री थी। इसमें 25 प्रतिशत के हिस्सेदार भारतीय मूल के गोपाल कृष्ण सिघानिया, विजयपति सिघानिया व हरिशंकर सिघानिया निवासी कानपुर थे। वर्ष 1980 तक हेनरी थामसन को छोड़कर शेष दोनों फाउंडर पार्टनर भारत छोड़कर इंग्लैंड चले गए थे।
हुसैनगंज प्लाईवुड फैक्ट्री के संबंध में आरोपितों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किए जाने संबंधी कोर्ट का आदेश अभी प्राप्त नहीं हुआ है। इसलिए मुकदमा नहीं लिखा जा सका है। आदेश पत्र मिलते ही आरोपितों पर मुकदमा लिखा जाएगा।
-पीयूष कुमार सिंह, सीओ सिटी