नई दिल्ली. जमीन विवाद के मामले में इंसाफ के लिए 53 साल तक 108 साल का बुजुर्ग कोर्ट के चक्कर काटता रहा। सुप्रीम कोर्ट जब तक मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हुई, तब तक उसकी मौत हो गई। 1968 में दाखिल याचिका 27 साल तक पेंडिंग रहने के बाद बंबई हाई कोर्ट में खारिज हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जुलाई को सोपन नरसिंह गायकवाड़ की याचिका पर सुनवाई की सहमति दी। याचिकाकर्ता के वकील विराज कदम ने बताया कि दुर्भाग्य से जो व्यक्ति लोअर कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला लाया, वह सुनवाई पर सहमति की खबर सुनने के लिए जिंदा नहीं है। अब यह मामला उनके कानूनी उत्तराधिकारी देखेंगे।
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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने 23 अक्टूबर 2015 और 13 फरवरी 2019 को आए हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने में 1,467 दिनों और 267 दिनों की देरी को माफ करने के लिए दायर आवेदन पर नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादियों से भी आठ हफ्ते में जवाब तलब किया है। जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि हम इस फैक्ट का संज्ञान ले रहे हैं कि याचिकाकर्ता की उम्र 108 साल है और हाई कोर्ट ने इस मामले को मेरिट के आधार पर नहीं लिया। साथ ही मामले को वकील के न होने के आधार पर खारिज कर दिया।
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बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता ग्रामीण इलाके का है और हो सकता है कि वकील 2015 में मामला खारिज होने के बाद उससे संपर्क नहीं कर सका हो। कोर्ट ने याचिकार्ता की ओर से कदम द्वारा दी गई जानकारी को संज्ञान में लिखा कि लोअर कोर्ट के फैसले को पहली अपीलीय अदालत ने बदल दिया और दूसरी अपील बंबई हाई कोर्ट में 1988 से लंबित थी।
कदम ने बताया कि 19 अगस्त 2015 को दूसरी अपील टाल दी गई। इसके बाद 22 अगस्त 2015 को दोनों पक्षों के वकील हाई कोर्ट के हाजिर हुए और निर्देश मिलने के लिए मामले को टालने करने का अनुरोध किया। दूसरी अपील 3 सितंबर 2015 को टाल दी गई और इसके बाद 23 अक्टूबर 2015 को मामले को लिया गया और खारिज कर दिया गया।
बेंच ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता ने अपील को बहाल करने के लिए आवेदन किया, तब कदम ने बताया कि उन्होंने दूसरी अपील बहाल करने के लिए आवेदन करने में देरी माफ करने लिए अर्जी दी थी लेकिन उसे भी 13 फरवरी 2019 को खारिज कर दिया गया।
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पूरा मामला
गायकवाड़ और अन्य ने दूसरी अपील हाई कोर्ट में दाखिल की थी जिसमें 17 दिसंबर 1987 को पहली अपील के तहत लातूर की सुनवाई कोर्ट द्वारा दिए फैसले को चुनौती दी गई थी, जबकि पहला फैसला हियरिंग कोर्ट ने 10 सितंबर 1982 को दिया था। गायकवाड़ ने 1968 में पंजीकृत बिक्री करार के तहत जमीन खरीदी थी लेकिन बाद में पता चला कि उसके मूल मालिक ने जमीन के एवज में बैंक से कर्ज लिया है। जब मूल मालिक कर्ज नहीं चुका सका तो बैंक ने गायकवाड़ को संपत्ति कुर्क करने का नोटिस जारी किया।
इसके बाद गायकवाड़ मूल मालिक और बैंक के खिलाफ लोअर कोर्ट गए। उन्होंने कहा कि वह जमीन के प्रमाणिक खरीददार हैं और बैंक मूल मालिक की अन्य संपत्ति बेचकर कर्ज की राशि वसूल सकता है। कोर्ट ने गायकवाड़ के तर्क को स्वीकार किया और उनके पक्ष में 10 सितंबर 1982 को फैसला दिया जिसके खिलाफ मूल मालिक ने पहली अपील दायर की और 1987 में फैसला पलट गया। इसके खिलाफ गायकवाड़ ने 1988 में हाई कोर्ट में दूसरी अपील दाखिल की जिसे 2015 में खारिज कर दिया गया।