उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर सदर सीट के विधानसभा उपचुनाव में सघन प्रचार अभियान के बावजूद मतदाताओं की खामोशी ने सभी उम्मीदवारों की नींद उड़ा रखी है।
भाजपा बसपा कांग्रेस सपा समर्थित रालोद के उम्मीदवार सहित 18 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं लेकिन मुख्य संघर्ष भाजपा की उषा सिरोही और बहुजन समाज पार्टी के हाजी एस के बीच नजर आ रहा है। सपा समर्थित रालोद के प्रत्याशी पीके सिंह और चंद्रशेखर की पार्टी आजाद समाज पार्टी के हाजी आमीन कांग्रेस के सुशील चौधरी, मुकाबले में आने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के विरेंद्र सिंह सिरोही बसपा के दो बार इसी सीट से जीते विधायक हाजी अलीम को लगभग 24000 वोट से हराकर विधायक चुने गये, गए थे।उनके निधन से रिक्त हुई सीट पर भाजपा ने उनकी पत्नी 68 वर्षीय उषा सिरोही को तो बसपा ने हाजी अलीम के छोटे भाई ब्लाक प्रमुख आज यूनुस को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस की ओर से सुशील चौधरी रालोद के टिकट पर पीके सिंह राष्ट्रवादी कांग्रेस की ओर से योगेंद्र शंकर शर्मा प्रत्याशी हैं।
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चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी ने हाजी यामीन शेर सिंह राणा की पार्टी राष्ट्रीय जन लोक ने ठाकुर पृथ्वीराज सिंह को मैदान में उतारा है। भाजपा से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरी डॉ उर्मिला राजपूत राष्ट्रीय क्रांति पार्टी की प्रत्याशी सीट पर अपना परचम फैलाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। प्रदेश सरकार के तीन तीनमंत्री भाजपा संगठन के के प्रमुख पदाधिकारी चुनाव तिथि घोषित करने के बाद से यही जमे है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने आ चुके हैं। भाजपा इस चुनाव को कितना अहम मान रही है। यह इससे, पता चलता है कि प्रांतीय संगठन महामंत्री सुनील बंसल दो बार यहां कर चुनाव कार्य में लगे मंत्री संगठन पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर तक सक्रिय करने व जीत के लिए क्या क्या करना है। यह बता चुके हैं। बुलंदशहर सीट भाजपा के लिए कभी आसान नहीं रही।
वर्ष 1974 में पहली बार जनसंघ के सत्यवीर यादव यहां से जीते थे उसके बाद 1996 2002 में भाजपा के टिकट पर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक रहे महेंद्र सिंह यादव ने जीत का परचम फहराया। 2017 के विजेता विरेंद्र सिंह सिरोही 2012 में इसी सीट से बसपा के हाजी है जिनसे हारे थे यदि 2017 का चुनाव परिणाम देखें तो पता चलता है कि बुलंदशहर सदर की सीट जिले की 7 सीट में से एकमात्र सीट थी जिस पर भाजपा प्रत्याशी सबसे कम मार्जिन से जीता था हार के बावजूद बसपा की बोट 2012 के चुनाव के मुकाबले ज्यादा आई थी।
भाजपा की ओर से यूं तो कई कार्यकर्ता उम्मीदवारी के इच्छुक थे लेकिन भाजपा ने सहानुभूति वोट की लालच में दिवंगत विधायक की पत्नी उषा सिरोही को मैदान में उतार दिया इससे कार्यकर्ताओं में असंतोष होना स्वाभाविक है परिवारवाद का भी आरोप है इसके चलते बीते 30 वर्ष से भाजपा से जुड़ी और पदाधिकारी डॉ उर्मिला राजपूत ने पार्टी बगावत कर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का झंडा थाम लिया वे दो बार जिला पंचायत की सदस्य नहीं है और भाजपा के वोट बैंक माने जाने वाले लोधी राजपूत समाज से है इस चुनाव में ना तो कोई लहर है और ना ही मतदाताओं की कोई दिलचस्पी है अलबत्ता कार्यकर्ता और यांत्रिक दलों के नेता चुनाव प्रचार अभियान में लगे हैं।
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सपा ने अपना प्रत्याशी न उतार कर रालोद के प्रवीण कुमार सिंह को अपना समर्थन दिया है जिनके पिता कई बार विधायक राज्यसभा के सदस्य और केंद्र में रक्षा जैसे विभाग में राज्यमंत्री रहे हैं। भाजपा रालोद और कांग्रेस के प्रत्याशी जाट जाति से हैं जबकि बसपा,आसपा और सांसद ओवैसी की पार्टी एआईएम के प्रत्याशी दिलशाद मुस्लिम हैं। डॉ उर्मिला राजपूत लोधी राजपूत तो पृथ्वीराज सिंह क्षत्रिय हैं। भाजपा इस चुनाव को राष्ट्रवाद मोदी योगी सरकार की उपलब्धियों के नाम पर लड़ रही है वही बाकी पार्टियां राष्ट्र प्रांतीय समस्याओं के साथ स्थानीय मुद्दों को भी जोर शोर से उठा रही है जबकि भाजपा स्थानीय मुद्दों से कन्नी काटती नजर आ रही है।
विपक्षी दल जहां किसानों की समस्याओं बढ़ती बेरोजगारी महंगाई और हाथरस कांड को को मुद्दा बना रही हैं वहीं भाजपा मोदी और योगी के नाम के सहारे चुनाव वैतरणी को पार करने की कोशिश में भाजपा का वोट बैंक कहे जाने वाला व्यापारी वर्ग अभी तक भाजपा से दूरी बनाए हैं जिसे मनाने के लिए भक्षक कोशिश की जा रही है जातिवाद भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका में हैं।
बीते चुनाव में इस सीट पर लगभग 65 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था इस सीट का एक बड़ा हिस्सा शहरी क्षेत्रका है बुलंदशहर नगर में पढ़ने वाले बूट सीट का परिणाम भी तय करते हैं इसलिए भाजपा का प्रयास है कि नगर क्षेत्र में वोटिंग प्रतिशत पिछले चुनाव की अपेक्षा ज्यादा हो बीते दो-तीन दिन भाजपा ने आक्रमक तरीके से चुनाव प्रचार अभियान चलाया है जिसका सुखद फल भी भाजपा को मिलता नजर आ रहा है जो व्यापारी वर्ग अभी तक भाजपा से नाराज था नेताओं के प्रयास से नाराजगी कुछ कम होती नजर आ रही है लेकिन भाजपा के परंपरागत लोधी राजपूत व वह क्षत्रिय वोटों में हो रही सेंधमारी जाट मतदाताओं में विभाजन भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है।