राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में वीर सावरकर के विचार आज अधिक प्रासंगिक हैं। इसलिए वीर सावरकर के सर्वांगीण स्वीकार्य का दिन आ गया है। डॉ. भागवत ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के बाद से ही वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चली।
सूचना आयुक्त उदय महुरकर और चिरायु पंडित की हालिया लिखी पुस्तक ‘वीर सावरकर हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन’ के परिप्रेक्ष्य में एक निजी चैनल पर बातचीत के दौरान सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि वीर सावरकर ने राष्ट्रीय एकता का सूत्र दिया। वे देश की एकता और अखंडता के प्रतीक थे। उन्होंने देश के विभाजन का जिक्र करते हुए कहा कि वीर सावरकर ने इस विभाजन को रोकने की कोशिश की। विभाजन का विचार भारतीयता के बिल्कुल उलट है। भारतीयता कहती है कि हम एक हैं, हमें एक ही रहना है। अलग-अलग हैं, ऐसा नहीं है। बंटवारे के समय भी साफ-साफ यही कहना चाहिए था। वीर सावरकर उस समय यही कहते रहे। लेकिन सावरकर जी को बदनाम करने की कोशिश की गयी।
अंग्रेजों की विभाजनकारी नीति के तहत शोध और पाठ्यक्रमों के जरिये ऐसा किया गया। कई महापुरुषों के योगदान का उल्लेख सिरे से नदारत है। डॉ. हेडगेवार भी स्वतंत्रता आंदोलन से निकले लेकिन यह पाठ्यक्रम में नहीं दिखता। इसलिए पाठ्यक्रम को भी बदलने की जरूरत है। डॉ. भागवत ने कहा कि सावरकर जी के राष्ट्रवाद में सबको समान अधिकार का चिंतन है। उसमें कोई सौदा नहीं कि देश हमें सबकुछ देता है तो हमें भी देना है, वह नहीं देता है तब भी हमें देना ही है- इस हद तक त्याग की तैयारी है सावरकर जी के राष्ट्रवाद में।आज खुशी है कि सरकार को ऐसी नीतियों को समाज का समर्थन मिल रहा है।
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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व पर लगातार हुए हमलों को लेकर कहा कि अंग्रेजों की तोड़ो और राज करो की नीति ने समाज को जोड़ने वालों को दबाकर उसे खलनायक बनाने का प्रयास किया। लेकिन हमारा विचार सत्यमेव जयते का है और सत्य हमेशा उजागर होकर रहता है। परिस्थिति ही सत्य को उजागर करती है।
उन्होंने कहा कि महापुरुषों को भी बांटने की साजिश हुई। जबकि हमारे देश के महापुरुष बड़े उदार और प्रजातांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले व्यक्तित्व रहे। बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और वीर सावरकर के बीच भी इसी तरह के टकराव की बेबुनियाद बात कही गयी। जो सच नहीं है।मतों में भेद हो सकता है लेकिन एक-दूसरे से नफरत नहीं थी। हमारे यहां सभी ने स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया। तब अंग्रेजी राज में जिले के अधिकारियों ने संघ की शाखाओं का जिक्र करते हुए लिखा कि ये बड़े खतरनाक दिखते हैं। सच यह है कि ऐसा संघ की राष्ट्रभक्ति के चलते कहा गया। वीर सावरकर पहले ही संग्राम में शामिल थे। डॉ. हेडगेवार तो इसी शाखा से निकलकर स्वाधीनता आंदोलन में गए। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का गुरु जी से सम्पर्क था। आंबेडकर जी शाखा में भी आया, गुरुजी के साथ भोजन भी किया।
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सरसंघचालक ने कहा कि आज भी बांटो और राज करो के तहत इतिहास को गलत तरीके से रखने की साजिश जारी है। इसे ठीक करने के लिए पाठ्य पुस्तकों में बदलाव बहुत जरूरी है। डॉ. भागवत ने कहा कि सरकार के साथ समाजिक दायित्व भी हुआ करते हैं। उदाहरण के लिए उन्होंने संविधान से अनु्च्छेद 370 की समाप्ति और रामजन्मभूमि निर्माण का रास्ता साफ होने के उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि 370 की समाप्ति सरकार और राममंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त करने में सर्वोच्च न्यालय की भूमिका है। साथ-साथ समाज को देखना होगा कि उसे बांटने की साजिश का खुलासा होता रहे।