लाइफ़स्टाइल डेस्क। 50 से 60 साल की उम्र के बीच अकेले रहने से डिमेंशिया होने का खतरा 30 फीसदी तक बढ़ जाता है। एक हालिया शोध में यह खुलासा हुआ है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के अध्ययन के अनुसार अकेलेपन और सामाजिक अलगाव का मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। 55 साल की उम्र के ऊपर 21,666 लोगों के डाटा का अध्ययन करने से पता चला कि जो लोग अकेले रहते थे उनमें अल्जाइमर या विभिन्न प्रकार के डिमेंशिया होने का खतरा 30 फीसदी ज्यादा था। इसके लिए शारीरिक असक्रियता, मधुमेह, मोटापा और उच्च रक्तचाप को जिम्मेदार ठहराया गया है।
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अकेले रहने वाले बुजुर्गों की संख्या बढ़ने से डिमेंशिया के स्तर में बढ़ोतरी होगी और यह मौतों का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर रूपल देसाई ने कहा, जो लोग अकेले रहते हैं उनमें तनाव ज्यादा बढ़ जाता है। बुद्धि की असक्रियता के कारण भी डिमेंशिया होने का खतरा बढ़ जाता है।
यूरोप और एशिया में किए गए 12 पूर्व शोधों की समीक्षा करने पर शोधकर्ताओं को पता चला कि अगर सामाजिक अलगाव को पूरी तरह से खत्म किया जा सके तो डिमेंशिया के मामलों में 8.9 फीसदी की कमी देखी जा सकती है।
शोधकर्ता डॉक्टर जॉर्जिना चार्ल्सवार्थ ने कहा, डिमेंशिया के खतरे को कम करने के लिए मस्तिष्क के स्तर पर, सामाजिक और शारीरिक स्तर पर सक्रिय रहने की जरूरत है। पूर्व के शोधों में पाया गया है कि सामाजिक सक्रियता और दोस्तों व परिवार से रोज मिलने से डिमेंशिया होने का खतरा कम होता है। कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण सामाजिक मेल-मिलाप में कमी आई है और पृथकवास में लोगों में अकेलापन बढ़ रहा है।
अल्जाइमर सोसाइटी के फायोना काराघेर ने कहा, यह शोध महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि कौन से कदम उठाकर हम डिमेंशिया के खतरे को कम कर सकते हैं। इसके खतरे को कम करने के लिए सभी को शारीरिक,मानसिक और सामाजिक तौर पर सक्रिय रहना चाहिए। इसके अलावा स्वस्थ जीवनशैली, स्वस्थ आहार और धूम्रपान को त्यागकर भी डिमेंशिया के जोखिम को कम किया जा सकता है।