प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) अध्यक्ष शिवपाल यादव ने आरोप लगाया कि नए अध्यादेशों के तहत सरकार मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है जो अन्नदाताओं की आजादी पर सबसे बड़ा हमला है।
उन्होने कहा कि अधिकांश छोटे जोत के किसानों के पास न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपने उत्पाद का सौदा कर सकते हैं। इससे तो किसान बस अपनी जमीन पर मजदूर बन के रह जाएगा। उन्होने कहा “ किसान संगठनों के आह्वान पर 25 सितंबर को आयोजित होने वाले ‘भारत बंद’ को हमारा सम्पूर्ण समर्थन है और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) किसानों के संघर्ष में सहभागी है। ”
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शिवपाल ने कहा कि इन अध्यादेशों के जरिये सरकार ने देश के अन्नदाताओं पर आजादी के बाद का सबसे बड़ा हमला किया है। सरकार के इन तथाकथित सुधारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई चर्चा नहीं है। उन्होने कहा कि आज अगर चौधरी चरण सिंह, लोहिया और समाजवादियों की विरासत सत्ता में होती तो अन्नदाताओं के साथ इतना बड़ा छल नहीं हो सकता था।
उन्होने कहा कि केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है। सरकार जिसे सुधार कह रही है वह अमेरिका, यूरोप जैसे कई देशों में पहले से ही लागू बावजूद इसके वहां के किसानों की आय में कमी आई है।
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प्रसपा अध्यक्ष ने कहा कि 1960 के दशक से किसानों की आय में गिरावट आई है। इन वर्षों में यहां पर अगर खेती बची है तो उसकी वजह बड़े पैमाने पर सब्सिडी के माध्यम से दी गई आर्थिक सहायता है।
ज्ञातव्य है कि अभी हाल में ही लोकसभा व राज्य सभा में दो बिल कृषक उपज व्याखपार और वाणिज्यं (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 और कृषक (सशक्तिंकरण व संरक्षण) कीमत आश्वा्सन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 हुआ है, जबकि एक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक पहले ही लोकसभा में पारित हो चुका है।
शिवपाल ने कहा कि इस अध्यादेश के तहत बड़े कारोबारी सीधे किसानों से उपज खरीद कर सकेंगे, लेकिन इस देश में 80 फ़ीसदी छोटे जोत वाले किसान हैं, जिनके पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं है, वे इसका लाभ कैसे उठाऐंगे। एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात करने वाली सरकार को यह नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा।
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उन्होने कहा कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव करके निजी हाथों में खाद्यान्न जमा होने की इजाजत दे दी है। अब सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होगा। कोरोना संकट के बीच यह नियंत्रण सरकार के हाथ में इसलिए लोगों को कम से कम अनाज को लेकर दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। इससे धीरे-धीरे कृषि से जुड़ी पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था चौपट हो जायेगी। पूंजीपति सप्लाई चेन को अपने हिसाब से तय करेंगे और मार्केट को चलाएंगे, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा। अब पूंजीपति इस जरिए फसलों की जमाखोरी करेंगे। इससे बाजार में अस्थिरता उत्पन्न होगी और महंगाई बढ़ेगी। ऐसें में इन्हें नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है।