कानपुर के बिकरु कांड और गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर मामले की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग ने पुलिस टीम को क्लीनचिट दे दी है।
आयोग के अनुसार इस मुठभेड़ के फर्जी होने के सबूत नहीं मिले हैं। इस न्यायिक आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस डॉ. बीएस चौहान कर रहे थे। वहीं, हाईकोर्ट से रिटायर्ड जज शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता कमेटी के सदस्य थे। जांच आयोग की रिपोर्ट यूपी सरकार ने गुरुवार को विधानसभा में पेश की।
132 पृष्ठों की रिपोर्ट के अनुसार, जांच में पता चला कि विकास दुबे और उसके गैंग को कानपुर में स्थानीय पुलिस के साथ ही राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण हासिल था। घर पर पुलिस रेड की जानकारी विकास दुबे को पहले से ही मिल गई थी। इसी संरक्षण के कारण ही विकास दुबे का नाम सर्किल के टॉप 10 अपराधियों की सूची में शामिल नहीं था, जबकि उस पर 64 आपराधिक मुकदमे चल रहे थे। इसके अलावा उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों की कभी निष्पक्ष जांच भी नहीं हुई।
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आयोग ने जांच रिपोर्ट में कहा है कि पुलिस पक्ष और घटना से संबंधित साक्ष्यों का खंडन करने के लिए जनता या मीडिया की तरफ से कोई भी आगे नहीं आया। यहां तक कि विकास दुबे की पत्नी भी आयोग के सामने नहीं आईं।
आयोग ने 132 पृष्ठों की अपनी जांच रिपोर्ट में पुलिस और न्यायिक सुधारों के संबंध में कई अहम सिफारिशें भी की हैं. इनमें प्रयागराज, आगरा और मेरठ जैसे प्रदेश के बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू करने की सिफारिश है। साथ ही पुलिस पर दबाव कम करने, आधुनिकीकरण पर जोर देने, मैन पावर बढ़ाने और कानून व्यवस्था व जांच को अलग किए जाने का सुझाव दिया गया है।
साथ ही आयोग ने कुख्यात अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की रेड को लेकर भी विस्तृत गाइडलाइन बनाने की सिफारिश की है। इस गाइडलाइन में साफ बताया जाए कि रेड से पहले पुलिस को क्या-क्या तैयारी करनी है।