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भाजपा सरकार अपने किए वादे भी पूरे नहीं करना चाहती है : अखिलेश

akhilesh yadav

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समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर बुनियादी मुद्दों से भटकाने वाली राजनीति करने का आरोप लगाते हुये कहा कि देश के अन्नदाता किसान का इतना घोर अपमान इससे पहले कभी किसी सरकार में नहीं हुआ।

श्री यादव ने शनिवार को कहा कि भाजपा लम्बे समय से चल रहे किसान आंदोलन के प्रति पूर्ण उपेक्षाभाव अपनाए हुए है। झूठे दावों और वादों के साथ भाजपा ने किसानों के साथ धोखा ही किया है। दिल्ली के चारों तरफ सात माह से किसान आंदोलित है। खुले आसमान के नीचे पिछले साल से वह वर्षा-धूप सहते हुए दिनरात भाजपा सरकार के बहरे कानों तक अपनी आवाज पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन भाजपा उनकी पीड़ा और दुःख दर्द को सुनना ही नहीं चाहती है। उसका रवैया पूर्णतया संवेदनशून्य है। सैकड़ो किसान अपनी जाने गंवा चुके हैं। भाजपा सरकार ने उन्हें मौन श्रद्धांजलि तक नहीं दी।

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उन्होने कहा कि किसान कोई बड़ी मांग नहीं कर रहे हैं। उनकी एक मांग है कि उनकी फसल की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित हो और उसकी अनिवार्यता हो। उनकी दूसरी मांग थी कि जो तीन कृषि कानून जबरन थोपे गए हैं, उन्हें वापस लिया जाए। भाजपा सरकार अपने संरक्षकों-बड़े व्यापारी घरानों के दबाव में किसानों की मांगों को मानने से इंकार कर रही है। किसानों का कहना है कि भाजपा के कृषि कानूनों से खेती पर उनका स्वामित्व खत्म हो जाएगा, वे अपने खेतों में ही मजदूर हो जाएंगे। किसान बर्बादी के कगार पर पहुंच जाएगा।

सपा अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा सरकार अपने किए वादे भी पूरे नहीं करना चाहती है। किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में भाजपा ने एक कदम नहीं उठाया। किसानों को फसल की लागत का ड्योढ़ा मूल्य देने का वादा भी नहीं निभाया। किसानों को धान का 1888 रुपये और गेहूं की 1975 रुपये प्रति कुंतल एमएसपी मिली नहीं क्योंकि सरकारी क्रय केन्द्रों में खरीद ही नहीं हुई। गन्ना किसानों को न बकाया मिला, नहीं प्राकृतिक आपदाग्रस्त किसानों को मुआवजा बंटा।

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उन्होने कहा कि भाजपा सरकार लोकतंत्र में जनादेश की उपेक्षा का गम्भीर अपराध कर रही है। उसने लोकलाज भी त्याग दिया है। किसानों के हितों के साथ खिलवाड़ के दुष्परिणाम जल्द नज़र आएंगे क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का सर्वाधिक योगदान है। किसान और खेती की बर्बादी से भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। भाजपा किसान आंदोलन की मूकदर्शक बनकर रहेगी तो 2022 में सत्ता की देहरी तक वह नहीं पहुंच पाएगी।

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