आगरा। अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठें पुलवामा शहीद के परिवार से धरना स्थल पर मुलाक़ात कर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष उपेन्द्र सिंह ने शहीद के परिवार का दर्द सांझा किया।
इस संदर्भ में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष उपेन्द्र सिंह ने शहीद के परिवार का दर्द सांझा कर पत्रकार वार्ता में अपने वक्तव्य में बताया कि बिडम्बना देखिए देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले फ़र्ज़ी देश भक्तों के पास अब धरने पर बैठे शहीद के परिवार से मिलने तक का समय नही है। जबकि सरकार द्वारा शहीद की शहादत पर जो घोषणाये की गई थी वह अभी तक पूरी नहीं हुई। बीजेपी सरकार 2 साल से पुलवामा शहीद की शहादत का अपनी ग़लत कार्य शैली से लगातार मज़ाक बना रही हैं। पुलवामा हमले में शहीद हुए कौशल रावत की पत्नी अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठी है। कल उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा आगरा के दो दिवसीय दौरे पर थे।
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डॉ दिनेश शर्मा शहीद की पत्नी के धरना स्थल से मात्र 300 मीटर की दूरी पर अपनी पार्टी से नवनिर्वाचित जिला पंचायत अध्यक्ष के घर पर भोज के लिये आने के बाद भी शहीद की विरांगना व परिवार से नही मिलने पहुंचे। बड़े दुःख की बात हैं कि उप मुख्यमंत्री अपनी पार्टी के नेता के यहां खाना खाने जा सकते हैं लेकिन शहीद के परिवार से मिलने के लिये नहीं जा सकते। क्या शहीद के परिवार से मिलने का किसी के पास समय नहीं हैं..?
वहीं, शिक्षकों का एक दिन का वेतन करीब 65 लाख रुपये को मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा है। जो ढाई साल बीत जाने के बाद भी शहीद के परिवार को अभी तक नहीं मिला है और नाहीं शहीद की प्रतिमा का अनावरण हुआ, नाहीं स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखा गया और नाहीं गांव में द्वार बनवाया गया।
नाहीं अब तक कही जमीन दी गईं। सरकार द्वारा शहीद की शहादत पर तमाम बड़े बड़े दिखावटी वायदे हुए लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त ये हैं कि 2 साल बाद भी अब तक कोई काम होता हुआ नज़र नहीं आया। इन झूठे देश भक्तों ने शहीद की शहादत का मजाक बना कर रख दिया हैं। इस कारण दुःखी होकर शहीद का परिवार धरने पर बैठने को मजबूर हैं।
वही, पुलवामा शहीद कौशल कुमार रावत की पत्नी ममता रावत का कहना है कि जब तक शहीद की शहादत पर जो घोषणाये की गई थी वह पूरी नही होती है तब तक वह अपना धरना समाप्त नही करेंगी। सरकार द्वारा पति की शहादत के बाद तमाम वायदे हुए पर दो साल में कोई काम नहीं हुआ। डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा आगरा में आते जाते रहैं। उनके पास तमाम काम हैं पर शहीद के परिवार के आने का समय उनके पास नहीं है। शिक्षकों का एक दिन का वेतन उन्हें न देना शहीद की शहादत का मजाक है,क्योंकि शिक्षकों के हिसाब से तो उन्होंने परिवार की मदद कर दी है पर मदद नहीं मिली है। वीडियो वायरल कर मांग करने के बाद भी किसी ने सुध नहीं ली तो अब मजबूरन धरने पर बैठी हूँ। मांग पूरी न होने तक बैठी रहूंगी।