वैश्विक महामारी कोरोना की वैसे तो एक निश्चित दवा उपलब्ध नहीं है, लेकिन रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना संक्रमित व्यक्ति पर काफी असरदार साबित हो रही है। इसको लेकर इस इंजेक्शन की कालाबाजारी का भी खेल पूरे देश में खेला जा रहा है और कानपुर भी इससे अछूता नहीं है। शुक्रवार को एक बार फिर रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वाले गिरोह का कमिश्नरेट की क्राइम ब्रांच की टीम ने पर्दाफाश कर दिया। टीम ने गिरोह में शामिल हैलट अस्पताल के दो कर्मचारियों सहित चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।
संक्रमण काल में मुनाफाखोरी और कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने अभियान चला रखा है। इसी के तहत पुलिस को सूचना मिली कि गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज से संबद्ध हैलट अस्पताल में कोरोना संक्रमण पर असरदार साबित होने वाला इंजेक्शन रेमडेसिविर की कालाबाजारी की जा रही है।
इस पर पुलिस कमिश्नर ने डीसीपी क्राइम सलमान ताज पाटिल की टीम के टॉस्क दिया। इसके बाद क्राइम ब्रांच का एक सिपाही स्टिंग ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए ग्राहक बनकर काकादेव थाना क्षेत्र के विजयनगर निवासी आयुष कमल से संपर्क किया। दोनों के बीच एक इंजेक्शन का सौदा 37 हजार में तय हुआ। पुलिस को जैसे ही इंजेक्शन हाथ लगा उसने आयुष कमल को गिरफ्तार कर लिया। आयुष के पकड़ में आते ही गिरोह का पर्दाफाश हो गया।
इस तरह जुड़ी कड़ी से कड़ी
आयुष ने पुलिस टीम को बताया कि मैं ग्राहक की तलाश करता था और इंजेक्शन मेडिकल कॉलेज कैंपस में रहने वाला अंशुल शर्मा पुत्र ब्रजकिशोर शर्मा उपलब्ध कराता था। अंशुल शर्मा रामकली हॉस्पिटल में ओपीडी देखता है और उसे इंजेक्शन बिजनौर के सादेपुर निवासी चेतांष चौहान पुत्र परमिंदर सिंह चौहान के माध्यम से मिलता था।
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चेतांष इस समय कल्याणपुर क्रासिंग के पास किराए का मकान लेकर रहता है। चेतांष ने बताया कि उसे इंजेक्शन हैलट अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ में काम करने वाले खपरा मोहाल निवासी विक्रम के जरिए मिलता है। इसके बाद पुलिस ने विक्रम को भी हिरासत में ले लिया। क्रमश: चारों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने कड़ी—कड़ी जोड़कर विक्रम से सख्ती से पूछताछ की तो उसने बताया कि अस्पताल से जो इंजेक्शन किसी मरीज को लगाने के लिए मिलता था उसको वह आधा ही लगाता था और आधा अपने पास रख लेता था।
10 हजार से शुरु होकर 40 हजार तक बिकता था इंजेक्शन
डीसीपी क्राइम सलमान ताज पाटिल ने बताया कि चारों आरोपितों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में सामने आया कि विक्रम 10 हजार रुपये में इंजेक्शन को बेचता था और आयुष तक पहुंचते—पहुंचते इसकी कीमत 35 से 40 हजार रुपये हो जाती थी। पुलिस ने चारों को गिरफ्तार कर लिया है। इनके खिलाफ विभिन्न धाराओं में अभियोग पंजीकृत कर कार्रवाई की जा रही है।