मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पिता द्वारा नाबालिग बच्चे की कस्टडी मांगने पर भी गोद देने के फैसले पर महाराष्ट्र बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) को फटकार लगाई। इसके साथ ही कोर्ट ने विभाग को 48 घंटे का समय भी दिया है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की बेंच ने कहा कि गोद लेने की बात तभी सामने आएगी, जब माता-पिता दोनों बच्चों को छोड़ दें। बेंच ने कहा कि सीडब्ल्यूसी मनमाने ढंग से काम कर रही है। अगर 48 घंटे में आपने अपनी गलती नहीं सुधारी तो कोर्ट आदेश पारित करने के लिए बाध्य होगी।
कोर्ट (Bombay High Court) ने कहा कि अगर मां ने अपने बच्चे को छोड़ दिया है तो क्या पिता को अपने बच्चे की कस्टडी पाने का अधिकार नहीं है। हमें समझ नहीं आता कि सीडब्ल्यूसी कैसे काम करती है। कैसे अपने मामलों को चला रही है। यह सिर्फ सीडब्ल्यूसी की मनमानी है, इसके अलावा कुछ और नहीं। क्या सीडब्ल्यूसी कानून के ऊपर है।
इस मामले में सुनवाई कर रही थी कोर्ट (Bombay High Court)
बता दें, कोर्ट एक पिता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दरअसल, कुछ समय पहले याचिकाकर्ता 16 साल की एक किशोरी के साथ भाग गया था। उन्होंने शादी की और कुछ समय बाद किशोरी ने एक बच्चे को जन्म दिया। इधर किशोरी के परिवार ने युवक के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया।
पुलिस ने मामले की जांच कर आरोपी को जेल भेज दिया और किशोरी को परिवार को सौंप दिया। किशोरी जब बालिग हुई तो परिवार ने दूसरे युवक के साथ उसकी शादी करा दी और बच्चे को साथ रखने से मना कर दिया। याचिकाकर्ता जब जेल से बाहर आया तो उसने बच्चे की कस्टडी की मांग की, जिसे सीडब्ल्यूसी ने खारिज कर गोद लेने के लिए रख दिया।
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याचिकाकर्ता के वकील आशीष दुबे का कहना है कि बच्चे को छोड़ा नहीं गया है। बच्चे अनाथ भी नहीं है, इसलिए सीडब्ल्यूसी बच्चे को किसी और को गोद नहीं दे सकती है। अतिरिक्त लोक अभियोजक प्राजक्ता शिंदे ने कहा कि सीडब्ल्यूसी आवेदन पर पुनर्विचार करेगी। हालांकि, शुक्रवार को अदालत ने अगली सुनवाई तय की है।