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दोनों पक्ष अपने रवैये में लचरतालाएं, यही वक्त का तकाजा भी है

Farmer protest

Farmer protest

किसान संगठनों के साथ शुक्रवार को सरकार की वार्ता होनी है। सरकार को उम्मीद है कि वार्ता सकारात्मक होगी जबकि किसान नेताओं का कहना है कि वे सरकार से संवाद बनाए रखने के लिए वार्ता करेंगे। ऐसे में वार्ता का हस्र क्या होगा, यह किसी से भी छिपा नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने गतिरोध खत्म करने के लिए चार सदस्यीय समिति गठित की तो किसान नेताओं ने समिति के सदस्यों की भूमिका पर ही सवाल खड़ा कर दिया।  उन्हें सरकार समर्थक बता दिया और यहां तक कह दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट  द्वारा गठित समिति के सदस्यों से मिलने ही नहीं जाएंगे।

इस समिति की पहली बैठक 19 जनवरी को होनी है और इससे पहले ही  उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति से भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान अलग  हो गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि वे किसान हैं और किसानों के ही साथ रहेंगे। समिति में रहकर भी वे किसानों का साथ दे सकते थे। उनकी बात कर सकते थे।  उनके हित के बड़े सुझाव दे सकते थे लेकिन उन्हें लगा कि वे किसानों की भीड़ में कहीं अकेले न पड़ जाएं। कदाचित इसीलिए उन्होंने इस तरह का कदम उठाया है।  जिस क्षण उन्होंने कृषि कानून को किसानों के लिए हितकारी बताया था, खलनायक तासे वे उसी क्षण साबित हो गए थे। अब तो वे अपने किए धरे पर लीपापोती ही कर रहे हैं। यह और बात है कि प्रदर्शनकारी किसानों ने उनके इस्तीफे का स्वागत किया है। किसान नेताओं ने कहा कि वे कोई कमेटी नहीं चाहते हैं और तीनों कानूनों को रद्द किए जाने से कम उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं है।  किसान नेताओं  का तर्क है कि समिति के शेष तीन अन्य सदस्यों को भी इससे अलग हो जाना चाहिए। ऐसा इसलिए कि प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने नए कृषि कानूनों पर किसानों और केंद्र के बीच गतिरोध को सुलझाने के लिए किसी समिति के गठन की मांग ही नहीं की थी। कुछ नेताओं ने मान को कानूनों के खिलाफ आंदोलन में शामिल होने के लिए भी आमंत्रित किया।

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किसानों का मनना है कि मान का फैसला एक अच्छा कदम है क्योंकि किसान यूनियनों के लिए किसी भी समिति का कोई महत्व नहीं है क्योंकि संगठनों ने कभी इसकी मांग ही नहीं की थी। मान जानते हैं कि कोई भी किसान संगठन उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के सामने पेश नहीं होगा, इसलिए उन्होंने यह निर्णय किया है।  यह और बात है कि  किसान सरकार से बात करना चाहते हैं लेकिन मांग एक ही है कि सरकार अपने तीनों कानून समाप्त करे।  सरकार चाहती है कि कोट्र कोई निर्देश दे और कोर्ट ने गेंद किसानों के पाले में डाल दी है।

सरकार जानती है कि अदालत कानूनों को निरस्त नहीं कर सकती। किसानों को आंदोलन करते हुए 50 दिन बीत चुके हैं। किसान नेताओं का तर्क है कि सरकार अगर तीनों कानूनों को वापस ले ले तो वह किसी भी समिति को स्वीकार लेंगे। सवाल यह है कि जब मरीज ही मर जाए तो चिकित्सक की क्या जरूरत है। जब समस्या ही नहीं रहेगी तो समिति के होने या न होने का क्या औचित्य है?  आंदोलकारियों को न तो सरकार पर यकीन है और नही अदालत पर तो आखिर उन्हें भरोसा किस पर है? लगे हाथ उन्हें यह भी सुस्पष्ट कर देना चाहिए। सर्वोच्च न्यायलय की पीठ  ने इस समिति के लिये भूपिन्दर सिंह मान के अलावा शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट, दक्षिण एशिया के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ प्रमोद जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के नामों की घोषणा की थी। उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति अपनी पहली प्रत्यक्ष बैठक 19 जनवरी को यहां पूसा परिसर में कर सकती है।  समिति के सदस्य अनिल घनवट ने बृहस्पतिवार को यह बात कही और इस बात पर जोर दिया कि अगर समिति को किसानों से बातचीत करने के लिए उनके प्रदर्शन स्थल पर जाना पड़ा तो वह इसे  प्रतिष्ठा या अहम का मुद्दा  नहीं बनाएगी।

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समिति के सदस्यों को आज दिन में डिजिटल तरीके से वार्ता करनी थी, लेकिन पूर्व सांसद और किसान नेता भूपिंदर सिंह मान के समिति से अलग हो जाने के बाद बैठक नहीं हो सकी। समिति के मौजूदा सदस्य अपनी डिजिटल बैठक अब शुक्रवार को कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह तब तक समिति की सदस्यता नहीं छोड़ेंगे जब तक कि शीर्ष अदालत इसके लिए नहीं कहती। उन्हें नहीं लगता कि अन्य कोई सदस्य समिति से दूरी बनाएगा। यह तो एक पक्ष है लेकिन दूसरी ओर एक बड़ी खबर यह है कि  दक्षिण एशिया में और विशेष रूप से चिर प्रतिद्वंद्वी भारत और पाकिस्तान के बीच टिकाऊ शांति कायम करने पर विचार-विमर्श करने के लिए शनिवार से आयोजित होने जा रहे दो दिवसीय सम्मेलन में दुनिया भर से 40 से अधिक प्रख्यात महिलाएं हिस्सा  लेने वाली हैं। सिर्फ महिलाओं की हिस्सेदारी वाले इस वर्चुअल सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान की साझा धरोहरों, महिलाओं और युवाओं की ऊर्जा तथा नये रुख को एक मंच प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

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सम्मेलन के आयोजकों में शामिल ई-शी की संपादक एवं इसकी संस्थापक एकता कपूर ने कहा कि यह सम्मेलन राजनीतिक शक्तियां रखने वाले लोगों द्वारा खोखले वादे करने के लिए नहीं है। यह उन मेधावी लोगों के लिए है जो शांति कायम करने के लिए साथ आकर अपने क्षेत्रों में मूल्य का निर्माण करते हैं। सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के बीच साहित्य, कला, संस्कृति, डिजाइन, सिनेमा और युवा सक्रियता के माध्यम से शांति कायम करने के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाएगी।  किसानों को यह बात तो सोचनी चाहिए कि जो राजनीतिक दल उन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लाभ से वंचित कर सकते हैं, वे उनके हितैषी कैसे हो सकते हैं। जिन्होंने अपने कार्यकाल में किसानों का हित नहीं किया अगर वे अब किसानों की हिमायत कर रहे हैं तो इसके पीछे के राजनीतिक निहितार्थ को समझा जाना चाहिए। फिजूल वार्ता से अच्छा होगा कि दोनों पक्ष अपने रवैये में लचरतालाएं, यही वक्त का तकाजा भी है।

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