वाशिंगटन। अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने पेटेंट को लेकर भारतवंशी प्रोफेसर अशिम मित्रा के खिलाफ ढाई साल पहले दर्ज मुकदमे में समझौता कर लिया है। उनके पूर्व छात्र कामेश कुचिमांची ने बताया था कि उन्होंने विश्वविद्यालय में अपने जीवन को आधुनिक गुलामी से ज्यादा कुछ नहीं माना। प्रोफेसर मित्रा के पूर्व सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने छात्रों को कैंपस के बाहर नौकर की तरह काम करते देखा या उनकी शिकायतों को सुना।
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विश्वविद्यालय का कहना था कि पेटेंट पर छात्र या प्रोफेसर का नहीं विश्वविद्यालय का अधिकार होता है। विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि उसने प्रोफेसर अशिम मित्रा के साथ ढाई साल पुराने दावे को सुलझा लिया है। विश्वविद्यालय ने अपने पेटेंट के दावे को वापस ले लिया है।
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समझौते की शर्तो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। उस पर उनको 10 मिलियन डॉलर रॉयल्टी भी प्राप्त हुई थी। मिसौरी-कंसास सिटी विश्वविद्यालय में 26 साल से काम कर रहे प्रोफेसर अशीम मित्रा पर उनके छात्रों ने सामाजिक कार्यक्रमों में उपकरण और टेबल को ढोने का आरोप लगाया है। उनके सहयोगियों ने उनसे बार-बार कहा कि उनके कार्य अनुचित हैं, फिर भी कोई बदलाव नहीं आया।
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ज्ञात हो कि प्रोफेसर मित्रा पर पूर्व में छात्रों से घर पर नौकरों की तरह काम कराने के आरोप भी लगे थे। आरोप था कि उन्होंने दवा कंपनी को डेढ़ मिलियन डॉलर में रिसर्च को बेच दिया था। प्रोफेसर मित्रा पर एक छात्र की रिसर्च को चुराने और उसको एक दवा कंपनी को बेचने का आरोप था। प्रोफेसर मित्रा अमेरिका के मिसौरी विश्वविद्यालय के कंसास कैम्पस में प्रोफेसर थे।