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कंप्यूटर आधारित परीक्षा का संकट

विजय गर्ग

कोरोना काल में आनलाइन शिक्षा की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन आनलाइन परीक्षाओं (कंप्यूटर आधारित परीक्षा) का आयोजन इससे भी पहले से होता आ रहा है। ये तकनीक प्रदत्त सुविधाएं हैं जिनका उपयोग शिक्षा व्यवस्था की सुगमता के रूप में देखने को मिलता है। इस दौर में प्रवेश, पात्रता और भर्ती से जुड़ी परीक्षाओं का आनलाइन काफी समय से हो रहा है।

आनलाइन परीक्षाओं से तात्पर्य परीक्षा केंद्र पर कंप्यूटर के माध्यम से परीक्षाओं के आयोजन से है जिसमें कागज और कलम का स्थान कंप्यूटर स्क्रीन और माउस ले लेते हैं। आनलाइन परीक्षाएं बहुवैकल्पिक प्रश्नों के चयन के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं। वर्तमान में चिकित्सा, अभियांत्रिकी से लेकर प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाएं भी इसी माध्यम से आयोजित हो रही हैं। राज्यों में भर्ती परीक्षाओं का आयोजन भी इसी तर्ज पर किया जा रहा है।

आनलाइन परीक्षा आयोजन में जहां तकनीक ने हमें सुविधाएं मुहैया करवाई हैं, वहीं अनेक समस्याओं का पिटारा भी खोल दिया है। हाल में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) जो कि उच्च शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण हेतु पात्रता एवं शोध अध्येतावृत्ति के लिए प्रतिवर्ष दो बार आयोजित की जाती है, के आयोजन में अभ्यर्थियों को अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ऐसे में आनलाइन परीक्षाओं को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हुए हैं। आनलाइन परीक्षाओं से संबंधित समस्याओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

कंप्यूटर आधारित परीक्षाओं के साथ जो समस्याएं अनुभव की जा रही हैं, उनमें तकनीकी बाधा, परीक्षा केंद्रों की सीमित संख्या, प्रशिक्षित परीक्षकों की कमी, कंप्यूटर उपकरणों की सीमित संख्या जैसी समस्याएं प्रमुख हैं जो आनलाइन परीक्षाओं के सफल आयोजन में रुकावट बनती हैं। बीस नवंबर से पांच दिसंबर तक आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा में पंजीकृत अभ्यर्थियों की संख्या लगभग तेरह लाख थी। इस संख्या से इस परीक्षा के व्यापक आयोजन का अनुमान लगाया जा सकता है। विगत वर्ष (2020 ) आयोजित यूजीसी नेट परीक्षा में साढ़े आठ लाख अभ्यर्थियों ने पंजीयन किया था।

वर्ष 2021: शिक्षा और कोविड-19

राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के आयोजन की जिम्मेदारी एनटीए (नेशनल टेस्टिंग एजेंसी) की होती है। यह एजेंसी देश की कई प्रमुख परीक्षाओं का आयोजन करवाती है, जिनमें नीट और जेईई जैसी प्रमुख परीक्षाएं भी हैं। ऐसे में अगर आनलाइन परीक्षाओं को लेकर अभ्यर्थियों को मुश्किलों का सामना करना पड़े तो ऐसे विशाल आयोजन कराने वाली संस्था की कार्य प्रणाली का असर परीक्षार्थियों के मनोबल पर पड़ना लाजिमी है।

राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के संदर्भ में चर्चा की जाए तो इस परीक्षा का आयोजन प्रतिवर्ष दो बार यानी जून और दिसंबर में किया जाता है। किंतु कोरोना के चलते दिसंबर, 2020 और जून, 2021 की परीक्षा को समायोजित करते हुए नवंबर-दिसंबर में परीक्षाएं करवाई गर्इं। पहले दिसंबर, 2020 सत्र की यूजीसी नेट परीक्षा दो मई से 17 मई 2021 के बीच होनी थी, लेकिन दिसंबर, 2020 सत्र की परीक्षा के आयोजन और जून, 2021 की आवेदन प्रक्रिया में देरी होने के कारण दोनों सत्रों की परीक्षा को एक साथ करवाने का फैसला किया गया।

दोनों सत्रों की परीक्षाओं की तारीख छह अक्तूबर से 11 अक्तूबर तय की गई। लेकिन ऐन मौके पर इसमें बदलाव करते हुए इसे छह से आठ अक्तूबर और 17 से 19 अक्तूबर कर दिया गया। फिर इसमें भी और बदलाव करते हुए इसे 17 से 25 अक्तूबर 2021 तक बढ़ा दिया गया। पर हैरानी की बात यह है कि 17 से 25 अक्तूबर को भी परीक्षा का आयोजन नहीं किया गया। इसे फिर एक बार स्थगित कर दिया गया। एनटीए ने इससे पूर्व चार बार परीक्षा की तारीखों में परिवर्तन किया था जो अब एक क्रम का रूप धारण कर चुका था। कभी कोरोना के हवाले, तो कभी कई अन्य परीक्षाओं की तिथि टकराने का कारण बता कर परीक्षा स्थगित कर दी जाती थी।

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देश में जब छोटे-बड़े चुनावों से लेकर, बड़े-बड़े आयोजन हो सकते हैं तो परीक्षाओं को हर बार आगे बढ़ाना आयोजन कराने वाली परीक्षा एजेंसी की व्यवस्थागत खामियों पर सवाल खड़े करता है। वैसे भी अब कोरोना को आए लगभग दो वर्ष बीतने को हैं, तब तो परीक्षाओं की तैयारी में किसी प्रकार की परेशानी नहीं आनी चाहिए थी। किंतु ऐसा नहीं हुआ। परीक्षाओं के हर बार स्थगित होने का सीधा असर इसकी तैयारी करने वालों के मनोबल पर हुआ। एक प्रतिष्ठित संस्था का ऐसा रवैया सचमुच हैरान करने वाला है। एनटीए की कार्यप्रणाली देख कर तो लगता नहीं है कि हम वाकई में परीक्षाओं के आयोजन के लिए गंभीर हैं भी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने जब विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक के लिए पीएचडी की अनिवार्यता में जुलाई, 2023 तक छूट दी हो तब विश्वविद्यालय में नियुक्ति के लिए नेट की पात्रता का महत्त्व अधिक हो जाता है।

इस छूट का लाभ तब ही मिल सकेगा, जब समय पर परीक्षाओं का आयोजन होगा। अब जब विगत दो सत्रों की परीक्षाओं का आयोजन नवंबर-दिसंबर 2021 में किया गया है तो दिसंबर 2021 की परीक्षा के समय पर आयोजन पर भी संशय है। जब तक हाल में आयोजित परीक्षा के परिणाम जारी नहीं होंगे, तब तक नई परीक्षा के आवेदन शुरू नहीं किए जा सकते। ऐसे में वर्ष 2022 में भी एक बार पुन: दिसंबर 2021 और जून 2022 सत्र की परीक्षा एक साथ आयोजित करवाने जैसी स्थिति बनती दिख रही है।

देशभर में दो सौ तेरह शहरों में चार सौ उनहत्तर परीक्षा केंद्रों पर आयोजित नेट परीक्षा में निजी शिक्षण संस्थाओं वाले परीक्षा केंद्रों में अव्यवस्था का आलम ज्यादा पाया गया। अभ्यर्थियों के लिए परीक्षा कक्ष में एकाग्रता के लिए शांति का होना सबसे जरूरी है। जब कंप्यूटर पर समय अपनी रफ्तार से चल रहा हो और परीक्षक आपसी चर्चा से व्यवधान उत्पन्न करें, तब उनके आगे अभ्यर्थी बेबस नजर आते हैं। एक ओर परीक्षा केंद्रों पर तकनीकी बधाएं, तो दूसरी ओर प्रश्न पत्र में त्रुटियों का सामने आना लापरवाही की ओर इशारा करता है।

एनटीए जैसी जिम्मेदार परीक्षा एजेंसी से ऐसी गलती की उम्मीद नहीं की जा सकती। अभ्यर्थियों को पहले हर बार स्थगित होती परीक्षा का तनाव झेलना पड़ा, जब परीक्षाएं आयोजित हुर्इं तब समय पर प्रवेश पत्र जारी न होने की दिक्कतों का सामना करना पड़ा और जब परीक्षा देने पहुंचे तो तकनीकी बाधाएं और परीक्षा केंद्रों की अव्यस्थाओं से दो-चार होना पड़ा। अब ऐसे में कंप्यूटर आधारित परीक्षा अभ्यर्थियों के लिए सुविधा की श्रेणी में गिनी जाएगी या दुविधा वाली मानी जाएगी? इस बात का जवाब देना कठिन है।

परीक्षाओं के ऐसे आयोजनों से एनटीए को सबक सीखने की जरूरत है। सबसे जरूरी यह है कि परीक्षा केंद्र केवल शासकीय संस्थाओं को ही बनाया जाना चाहिए जहां कंप्यूटर उपकरणों की समुचित व्यवस्था हो। परीक्षा के पूर्व परीक्षकों के तकनीकी प्रशिक्षण पर ध्यान देने की जरूरत है। जब हम नई शिक्षा नीति, डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों की चर्चा करते हैं तब इन सब में सबसे महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं के समय पर आयोजन और उनके परिणाम पर भी बात की जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश में यूपी टेट परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक का मामले को अभी कोई भूला नहीं है।

राजस्थान में आयोजित रीट परीक्षा में चप्पल के भीतर ब्लूटूथ डिवाइस मिलने की घटना भी ज्यादा पुरानी नहीं है। परीक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे यह सुनिश्चित करें कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। आनलाइन परीक्षा व्यवस्था की खामियों पर विचार करके इन्हें तकनीकी की खूबियों में शामिल करने के प्रयास किए जाने चाहिए, तब ही डिजिटल इंडिया का सपना साकार होगा।

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