भारत में मदरसों की भूमिका पर निरंतर सवाल उठते रहे हैं। उनकी वास्तविक संख्या का ज्ञान न तो भारत सरकार को है और न ही राज्य सरकारों को। आए दिन मदरसे खुलते रहते हैं। यह सच है कि मदरसों से पढ़-लिखकर ढेर सारी विभूतियां भी निकली हैं, लेकिन इस सच को भी नकारा नहीं जा सकता कि मदरसों से कुछ गलत सोच के लोग भी निकले हैं। उन्हें मदरसों में पनाह भी मिलती रही है। गोरखपुर जिले से सटी नेपाल सीमा इन दिनों चर्चा के केंद्र में है।
नेपाल सीमा के नजदीक मदरसों की बढ़ती संख्या सरकार के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। गुप्तचर एजेंसियों ने इसे लेकर अलर्ट भी जारी कर दिया है। पुलिस अधिकारियों की मानें कि गोरखपुर जिले में नेपाल सीमा के नजदीक जितने मदरसे चल रहे हैं, उतने तो यहां विद्यार्थी भी नहीं हैं। फिर इन मदरसों को चलाने का क्या उद्देश्य है, इन्हें आर्थिक सहयोग कहां से मिल रहा है? क्या इन मदरसों के पीछे कोई आतंकी सहयोग है या अन्य देशों से फंडिंग हो रही है, इसे लेकर प्रशासनिक माथापच्ची तेज हो गई है। होनी भी चाहिए लेकिन उससे भी जरूरी सवाल यह है कि जब ये मदरसे बन रहे थे तब जिला और पुलिस प्रशासन क्या कर रहा था?
इन मदरसों के निर्माण पूर्व ही उन्हें जानकारी क्यों नहीं मिली? भारत-नेपाल सीमा खुली हुई है। इसलिए इस सीमा से अवैधानिक गतिविधियां मसलन मादक द्रव्यों की तस्करी और नकली नोटों का प्रवेश और आतंकियों की घुसपैठ होती रहती है। अनेक ऐसे अवसर आए हैं जब इस रास्ते पाकिस्तानी आतंकवादी घुसे भी हैं और भागे भी हैं। खुफिया एजेंसियां के अलर्ट को देखते हुए गोरखपुर में नेपाल सीमा पर संचालित 300 से अधिक मदरसों की जांच शुरू की गई है। इन मदरसों के अचानक वजूद में आने से सरकार भी परेशान है। जिला प्रशासन भी परेशान है। इनकी आय के स्रोत का पता लगाने में पुलिस विभाग और खुफिया एजेंसियां जुट गई हैं। उन्हें संदेह है कि इन मदरसों का इस्तेमाल राष्ट्र विरोधी ताकतें कर रही हैं।
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हाल ही में उत्तर प्रदेश में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के दो आतंकियों अब्दुल समद और ख्वाजा मोइनुद्दीन के घुसने के बाद कुशीनगर-महाराजगंज जिलों समेत नेपाल बॉर्डर पर हाई अलर्ट जारी किया गया है। आशंका है कि दोनों सिद्धार्थनगर, कुशीनगर व महाराजगंज के रास्ते नेपाल भाग सकते हैं। समद पर पुणे में 2010 में जर्मन बेकरी में विस्फोट के लिए आतंकियों को हवाला के जरिए रकम पहुंचाने का आरोप है। जबकि मोइनुद्दीन को सितंबर 2017 में एनआईए ने चेन्नई से पकड़ा था जबकि समद फरवरी 2018 में पकड़ा गया था। राम मंदिर पर आए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद से अयोध्या भी आतंकियों की हिट लिस्ट में है। वहां पहले भी आतंकी हमलों के प्रयास हो चुके हैं। बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादियों को भारत में पनाह कहां मिलती है? चूंकि अधिकांश मदरसों और कुछ मस्जिदों की फंडिंग अरब देशों से होती है। कुछ को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई धन मुहैया कराती है। ऐसे में इन मदरसों और मस्जिदों के लिए कुछ तो करना ही होगा।
एक कहावत है कि मुंह खाता है और आंखें लजाती हैं। सहयोग हमेशा एकतरफा तो नहीं होता। ताली बजाने के लिए दोनों हाथों की जरूरत होती है। अब्दुल और मोइनुद्दीन को आखिरी बार 16 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में देखा गया था। बताया तो यहां तक जा रहा है कि सीरिया से लौटने के बाद दोनों आतंकवादी दक्षिण भारत समेत अन्य राज्यों में युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें इस्लामिक स्टेट से जोड़ रहे हैं। दोनों पाक समर्थित आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के भी संपर्क में हैं। जाहिर है, कुछ आतंकवादी ऐसे भी हों जो येन-केन प्रकारेण भारत में घुस आए हों और यहां के वातावरण में जहर घोलने की फिराक में हों। इसलिए भी भारत-नेपाल सीमा पर अतिरिक्त सुरक्षा चौकसी की जरूरत है। मदरसे हिंदुस्तान ही नहीं, पाकिस्तान के लिए भी सिरदर्द बनते रहे हैं तभी तो इमरान सरकार की फौज ने मई, 2019 में 30 हज़ार मदरसों को सरकारी नियंत्रण में लेने ऐलान किया था।
भारत में फरवरी,2019 में ही आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की मस्जिदों और मदरसों की फंडिंग के आरोपितों के खिलाफ मनी लांडिंग का शिकंजा कस गया था। प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के तहत जांच शुरू की थी और ईडी की जांच शुरू होने के बाद आतंकी फंडिंग से बने मदरसों और मस्जिदों की संपत्ति को जब्त करने का रास्ता साफ हो गया था। यह और बात है कि सरकार से जिस तरह का कार्यवाही अपेक्षित थी, वैसा कुछ हो नहीं पाया। पिछले साल सितंबर में आतंकी फंडिंग के माड्यूल का भी पर्दाफाश हुआ था। गत वर्ष सितंबर में एनआइए ने देश की राजधानी दिल्ली में चल रहे लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी फंडिंग के माड्यूल का पर्दाफाश करते हुए तीन आरोपितों को गिरफ्तार किया था।
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गिरफ्तार आरोपितों से पूछताछ के दौरान पता चला था कि आतंकी फंडिंग का यह जाल सिर्फ कश्मीर में आतंकियों को धन मुहैया कराने तक सीमित नहीं है, बल्कि लश्कर-ए-तैयबा मस्जिदों और मदरसों के जरिए देश में कट्टरता फैलाने की भी साजिश कर रहा है। आतंकी फंडिंग मामले में हरियाणा के पलवल के एक गांव की मस्जिद का इमाम मुहम्मद सलमान भी गिरफ्तार किया था और उसने जो बताया था कि मदरसा और मस्जिद के निर्माण में उससे आतंकियों से प्राप्त धन का इस्तेमाल किया था। इस मदरसे और मस्जिद को लश्कर-ए-तैयबा सरगना और मुंबई हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद फलाह-ए-इंसानियत के माध्यम से आतंकी फंडिंग कर रहा था। एनआइए ने मुहम्मद सलमान के साथ सलाह-ए-इंसानियत की ओर पैसे मंगाने वाले हवाला ऑपरेटर दरियागंज के मुहम्मद सलीम उर्फ मामा और श्रीनगर के अब्दुल राशिद को भी गिरफ्तार किया था।
आरोपितों के ठिकानों पर मारे गए एनआईए के छापे में एक करोड़ 56 रुपये नकद, 43 हजार रुपये की नेपाली मुद्रा, 14 मोबाइल फोन और पांच पेन ड्राइव बरामद हुए थे। 12 जुलाई, 2019 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के शेरकोट मदरसे में भारी मात्रा में अवैध असलहे और कारतूस बरामद हुए थे। इन असलहों को दवा के डिब्बों में रखा गया था। पुलिस को चकमा देने के लिए हिन्दू प्रतीक चिन्हों वाली कार का इस्तेमाल किया जा रहा था। इसी कार से असलहों को एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजा जाता था।
एनएआई को अपनी जांच के दौरान यह भी ज्ञात हुआ था कि दस साल से यह मदरसा बिना किसी अनुमति के चल रहा था। पश्चिम बंगाल के मदरसों में आतंक की ट्रेनिंग देने के आरोपों को तब बल मिला जब वहां के एक मदरसे में हथियारों की फैक्ट्री पकड़ी गई थी। गौरतलब है कि 17 अक्टूबर 2017 तक उत्तर प्रदेश में मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त करीब 16,461 मदरसे थे। इनमें से 560 मदरसों को सरकार से अनुदान मिलता है जबकि 8,171 मदरसे मदरसा मॉर्डनाइजेशन स्कीम से जुड़े हैं। योगी सरकार की पहल के बाद बनाए गए पोर्टल में 16,416 मदरसों का रजिस्ट्रेशन हुआ था। तब योगी सरकार ने यह भी कहा था कि अब बिना रजिस्ट्रेशन वाले सभी मदरसे अवैध माने जाएंगे।
4 फरवरी, 2020 को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर बताया था कि देश में सर्वाधिक मदरसे उत्तर प्रदेश में हैं। देश में दो प्रकार की मदरसा शिक्षा प्रणाली के तहत संचालित मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 19132 है, जबकि 4878 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे भी संचालित हो रहे हैं। कश्मीर के शोपियां में मदरसों पर आतंकी पैदा करने के भी आरोप लगते रहे हैं। इसी आतंक की नर्सरी’ से सज्जाद भट्ट भी निकला था, जो फरवरी 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले में आरोपी था।
मदरसे पहले केवल धार्मिक शिक्षा दिया करते थे, केंद्र और राज्य सरकारों की पहल पर अब वहां अन्य विषय भी पढ़ाए जाने लगे हैं। सरकार की सोच यह है कि वहां से निकले बच्चे रोजगार के लिए दर-दर न भटकें। वे हर विषय में पारंगत हों और आत्मनिर्भर भारत अभियान की पूर्ति में सहायक बनें। टेर फंडिंग से संचालित मदरसा संचालकों को भी इस बात को समझना होगा। यह देश उनका भी है। वे ऐसे लोगों का साथ न दें, जो देश का अहित चाहते हैं। देश सुरक्षित रहेगा तभी वे भी सुरक्षित है। शिक्षा का अर्थ है कि वह देश को योग्य नागरिक प्रदान करे। उन्हें सोचना होगा कि जहरीली शिक्षा देकर वे कहीं अपनी ही जड़ तो नहीं खोद रहे।