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हेपेटाइटिस-सी की दवा खाने वाले मरीजों पर कोरोना का असर नहीं!

हेपेटाइटिस सी दवा

हेपेटाइटिस सी दवा

लाइफस्टाइल डेस्क। कब तक आएगी कोरोना की वैक्सीन? यह सवाल पिछले कई महीनों से लोगों के जहन में घूम रहा है, लेकिन इसका सटीक और पुख्ता जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है। हालांकि दावे जरूर किए जा रहे हैं कि वैक्सीन जल्द ही बाजार में उपलब्ध हो जाएगी। रूस ने तो यहां तक कह दिया है कि वो इसी महीने सबसे पहले शिक्षकों और स्वास्थ्यकर्मियों को वैक्सीन की खुराक देगा और उसके बाद सितंबर में टीकाकरण अभियान चलाएगा। लेकिन रूस के इस दावे पर कई देशों ने शक जताया है। उनका मानना है कि शायद वैक्सीन बनाने के लिए जरूरी सभी मानकों को ध्यान में नहीं रखा गया है।

अब बात चाहे जो भी हो, लेकिन वैक्सीन बनाने का काम दुनियाभर में जोरों-शोरों से चल रहा है, यह बात तय है। हालांकि जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक अन्य बीमारियों के इलाज में काम आने वाली दवाओं पर ही रिसर्च चल रही है और कुछ दवाइयां तो कोरोना मरीजों को दी भी जा रही हैं। इस बीच यह दावा किया जा रहा है कि हेपेटाइटिस-सी यानी काला पीलिया की दवा खाने वाले मरीजों पर कोरोना वायरस का असर दिखाई नहीं दे रहा है। आइए जानते हैं इस दावे के बारे में विस्तार से…

हेपेटाइटिस-सी की दवा कोरोना मरीजों पर असर कर रही है या नहीं, इसको लेकर कई देशों में ट्रायल चल रहे हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। दावा किया जा रहा है कि रोहतक पीजीआई में 2000 ऐसे मरीजों को चिह्नित किया गया है, जो हेपेटाइटिस-सी की दवा ले रहे हैं और इनमें से किसी पर भी कोरोना का असर दिखाई नहीं दिया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रोहतक पीजीआई में हेपेटाइटिस-सी के स्टेट नोडल ट्रीटमेंट सेंटर के इंचार्ज डॉ प्रवीण मल्होत्रा का कहना है कि ब्राजील, ब्रिटेन, सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों में भी कोरोना मरीजों पर हेपेटाइटिस-सी की दवा के प्रभावी होने के सबूत मिले हैं। यह दवा खाने वाले मरीजों पर कोरोना का असर नजर नहीं आ रहा।

डॉ प्रवीण मल्होत्रा के मुताबिक, हरियाणा में करीब 5000 मरीज हेपेटाइटिस-सी की दवा ले रहे हैं, जिनमें से अब तक 2000 लोगों का डाटा तैयार किया जा चुका है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि शायद हेपेटाइटिस-सी की दवा कोरोना से लड़ने में सक्षम होगी।

दरअसल, कुछ देशों में हेपेटाइटिस-सी की दवा से कोरोना के मरीजों को ठीक करने के लिए ट्रायल किया गया था, जिसके परिणाम सकरात्मक रहे थे। इसके बाद रोहतक पीजीआई ने भी डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी से ट्रायल के लिए इजाजत मांगी थी, जिसकी मंजूरी मिल गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके लिए 86 लाख रुपये की राशि भी मंजूर की गई है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, हेपेटाइटिस-सी के इलाज के लिए लेडिपसविर और डसाबूविर के साथ सोफासबूबिर का कॉम्बिनेशन दिया जाता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोना के मरीजों का इलाज करने के लिए यह कॉम्बिनेशन रेमेडेसिविर की तुलना में ज्यादा बेहतर है। आपको बता दें कि रेमडेसिवीर को कोरोना के इलाज में इस्तेमाल की मंजूरी मिली हुई है।

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