नई दिल्ली। कोरोना वायरस ने दुनिया भर में कहर मचा रखा है। अब तक 1.5 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। इस वायरस का तोड़ निकालने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं। लेकिन अभी तक कोरोना का इलाज ढूंढने में कोई भी देश कामयाब नहीं हो सका है।
शोधकर्ता इस वायरस बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच एक चौंकाने वाला नया अध्ययन सामने आया है। इस नए अध्ययन से पता चला है कि खांसने और छींकने से ही नहीं बल्कि सामान्य तौर पर बोलने और सांस लेने से भी कोरोना वायरस फैल सकता है। इतना ही नहीं ये संक्रामक 6 फीट की दूरी से ज्यादा में भी फैल सकता है।
सहारनपुर बनेगा स्मार्ट सिटी, समस्या और शिकायतों का 30 मिनट में होगा निस्तारण
इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने SARS-CoV-2 के माइक्रोड्रॉपलेट्स को पांच माइक्रोन के जरिए परिभाषित किया है। वैज्ञानिकों की एक टीम ने मार्च के महीने में आर्टिकल छापा था। जिसमें कहा गया था कि कोरोना वायरस अस्पताल में Covid-19 के मरीजों के कमरों में हवा में फैल रहा था और जल्द ही इसे प्रकाशित किया जाएगा। इस अध्ययन को अब medrxiv.org वेबसाइट ने पोस्ट किया है।
कोरोना संक्रमित मरीजों के कमरों के लिए सैंपल
अध्ययन से जुड़े असोसिएट प्रोफेसर जोशुआ संतारपिया ने कहा कि अनुसंधान के लिए नमूनों को इकट्ठा करना बहुत मुश्किल काम रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के बारे में जानकारी जुटाने के लिए मोबाइल फोन के आकार वाले एक उपकरण का इस्तेमाल किया गया। ऐसे मामलों में किसी माइक्रो वायरस पर फोकस रहने की आपकी संभावना बहुत कम होती है और कोई गड़बड़ होने पर उसे दोबारा पूर्व परिस्थिति में भी नहीं लाया जा सकता है। इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने कोरोना पॉजिटिव मरीजों के 5 कमरों से हवा के नमूना लिए हैं। ये नमूना बेड पर लेटे मरीजों के पैरों से लगभग एक फीट की ऊंचाई से लिए गए थे।
वैज्ञानिकों कहा कि बड़े ड्रॉपलेट्स की तुलना में माइक्रोड्रॉपलेट्स ज्यादा दूर तक फैलने और लोगों को संक्रमित करने में सक्षम
अध्ययन के मुताबिक, रिसर्च के दौरान कुछ मरीज बात कर रहे थे और खांस रहे थे उनके मुंह से निकलने वाले माइक्रोड्रॉपलेट्स हवा में कई घंटो तक रहते हैं। इन्हें एरोसोल भी कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इन माइक्रोड्रॉपलेट्स को इकट्ठा किया और सुरक्षित तरीके से एक जगह रख दिया। इसके बाद पाया गया कि 18 में से तीन नमूने ऐसे थे जो प्रतिकृति बनाने में सक्षम थे यानी जो एक से दो में बदल सकते थे। प्रोफेसर संतारपिया का कहना है कि इससे इस बात के सबूत मिलते हैं कि बड़े ड्रॉपलेट्स की तुलना में माइक्रोड्रॉपलेट्स ज्यादा दूर तक फैलने और लोगों को संक्रमित करने में सक्षम हैं। हालांकि इसको लेकर अभी गहनता से अध्ययन किया जा रहा है।