सियाराम पांडे ‘शांत’
कोरोना से यूं तो दुनिया के अधिकांश देश प्रभावित हैं लेकिन भारत भी उससे कम प्रभावित नहीं है। एक दिन में अगर कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 90 हजार के पासपहुंच जाए तो इससे अधिक चिंता की बात भला और क्या हो सकता है। कोरोना की दूसरी लहर को लेकर जिस तरह के अध्ययन आ रहे हैं, वह न केवल विस्मयकारी हैं, अपितु डरावने भी है। वैसे भी कोविड -19 की दूसरी लहर पहले की अपेक्षा अधिक संक्रामक, गंभीर और खतरनाक लहर से रू-ब-रू है। इसके लिए आत्म मुग्धता में हमेशा डूबा शासक वर्ग और कोरोना की पहली लहर में पस्त हो चुकी लापरवाह जनता ही पूरी तरह से जिम्मेदार है।
जिन देशों ने गंभीरता से रोकने की कोशिश की, वहां कोरोना नियंत्रण में है। जिन्होंने कोरोना को मजाक बनाया, बीमारी के बजाय भ्रम साबित करने में लगे रहे, वे एक बार फिर संकट से दो-चार हैं। अब लापरवाही कीमत हर हाल में चुकानी पड़ेगी। कोरोना की दूसरी लहर में कितनी मौतें होंगी, संक्रमण का रिकॉर्ड कहां तक पहुंचेगा और कुल कितने लोग संक्रमित होंगे इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन इतना अवश्य है कि पहली लहर में अधिकतम संक्रमण के मामले करीब 98 हजार केस प्रतिदिन तक पहुंचे थे और पीक आने में साढ़े आठ महीने का समय लगा था। इस बार ऐसा नहीं है।
कोरोना संक्रमण के मामले फरवरी में बढ़ने लगे और केवल 52 दिन में नए संक्रमितों की संख्या पांच गुना हो जाना अतीव चिंताजनक है। स्पष्ट है कि यह संख्या लगातार बढ़ रही है और जैसे-जैसे दूसरी लहर का दायरा बढ़ा रहा है उसी गति से राज्यों में कोरोना संक्रमण का नया रिकार्ड भी बन रहा है। जब पूरे देश में दूसरी लहर तेजी से बढ़ रही होगी तो संक्रमण का आंकड़ा प्रतिदिन लाखों में पहुंच सकता है और ऐसी स्थिति में गंभीर मरीजों का इलाज करना अपने-आप में बड़ी चुनौती होगी। अब दूसरी लहर को थामने के साथ ही बड़ी संख्या में संक्रमित गंभीर मरीजों के इलाज की चुनौती भी है। सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि समाज में कोरोना को लेकर डर पूरी तरह खत्म हो गया है और लोग बहुत लापरवाह व्यवहार कर रहे हैं।
राजधानी में कोरोना की दूसरी लहर का कहर, एक बार फिर हुआ आंकड़ा हजार के पार
कोरोना की लहर के बीच देश में कुंभ चल रहा है, चुनाव आयोजित हो रहे हैं और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव जिसकी कोई उपयोगिता एवं उत्पादकता नहीं है, लेकिन संविधान, लोकतंत्र के पाखंड के नाम पर पंचायत चुनावों का तमाशा भी चल रहा है। हां स्कूल बड़ी आसानी से बंद दिये जाते हैं क्योंकि सरकार को इसमें कुछ लगाना नहीं पड़ता है। देश में जरूरत से ज्यादा राजनीति और लोकतंत्र के पाखंड के कारण भी संक्रमण बढ़ रहा है और इसका शिकार आम जनमानस होगा। वैसे भी इस संकट को बढ़ाने में सरकार के साथ ही हमारी लापरवाही भी जिम्मेदार है इसलिए अगर कोरोना के कारण बड़े पैमाने पर संक्रमण बढ़ता है, मौतें होती हैं, रोजगार चला जाता है और अर्थव्यवस्था फिर लड़खड़ाती है तो इसके लिए हमारी लापरवाही और गलतियां जिम्मेदार हैं इसलिए सजा भी हमको ही मिलेगी। अगर हम कोरोना से नुकसान को कम करना चाहते हैं तो हर हाल में कठोरता के साथ कोरोना की रोकथाम के उपायों का पालन करना होगा और सरकार को करवाना होगा।
बिना मॉस्क के घर से निकलने पर जुर्माना, भीड़ जुटाने पर मुकदमा दर्ज करने के साथ बड़ा अर्थदंड लगाने, पूरे देश में धारा 144 लगाने, रात में कर्फ्यू और सप्ताहांत शनिवार व रविवार को कठोर लॉकडाउन लगाने जैसे उपायों को तत्काल लागू करना होगा। सरकार सख्ती नहीं करेगी तो लोग अनुनय-विनय से समझने वाले नहीं है।
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किसी विद्वान ने ठीक कहा है कि मनुष्य दूसरों की गलतियों से सीख नहीं लेता है, उसे सुधरने के लिए स्वतंत्र रूप से ठोकर लगने की जरूरत पड़ती है। यह समय अब गया है। सरकार को आत्ममुग्धता को छोड़कर कोरोना रोकने के लिए कठोरता से नियमों का पालन कराना चाहिए। राजनीतिक भीड़ को नियंत्रित करने की दिशा में उसे सोचना होगा। जिस तरह के अध्ययन आ रहे हैं, वह सभी को संयमित और मर्यादित रहने के सबक हैं। एक भी व्यक्ति ऐसा न छूटे जिसे कोरोना का टीका न लगा हो और यह सब सकारी खर्च पर होना चाहिए।