प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व नदी दिवस के मौके पर नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि नदियों के संरक्षण और स्वच्छता के मद्देनजर देश भर के लोगों का साल में कम से कम एक बार ‘नदी उत्सव’ मनाना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 81वें संस्करण को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे लिये नदियां एक भौतिक वस्तु नहीं बल्कि एक जीवंत इकाई है। उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्रों में तो नदियों में जरा सा प्रदूषण करने को भी गलत बताया गया है। उन्होंने कहा कि हम नदियों की सफाई और उन्हें प्रदूषण से मुक्त करने का काम सबके प्रयास और सबके सहयोग से कर ही सकते हैं।
उन्होंने कहा कि ‘नमामि गंगे मिशन’ भी आज आगे बढ़ रहा है तो इसमें सभी लोगों के प्रयास, एक प्रकार से जन-जागृति, जन-आंदोलन, उसकी बहुत बड़ी भूमिका है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजकल एक विशेष ई-नीलामी चल रही है। ये इलेक्ट्रॉनिक नीलामी उन उपहारों की हो रही है, जो मुझे लोगों द्वारा दिए गये हैं। इस नीलामी से जो पैसा आएगा, वो ‘नमामि गंगे’ अभियान के लिए ही समर्पित किया जाएगा।
Speaking on a wide range of topics in #MannKiBaat. Tune in. https://t.co/FNJDiv7Tvc
— Narendra Modi (@narendramodi) September 26, 2021
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम बहुत से दिन मनाते हैं, लेकिन एक और दिन है जिसे हमें मनाना चाहिए। यह ‘विश्व नदी दिवस’ है। उन्होंने कहा कि यह भारत की परम्पराओं से बहुत सुसंगत है। हम सदियों से जिस परम्पराओं से हम जुड़े हैं उससे यह जोड़ने वाला है। उन्होंने कहा कि माघ मास के आगमन के साथ ही हमारे देश में बहुत से लोग पूरे एक महीने तक गंगा या अन्य नदियों के तट पर कल्पवास करते हैं। नदियों का स्मरण करने की परंपरा आज भले लुप्त हो गई हो या कहीं बहुत अल्पमात्रा में बची हो लेकिन पहले के समय में घरों में नहाते समय नदियों को याद करने की प्रथा थी।
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उन्होंने कहा कि हमारे यहां कहा गया है, “पिबन्ति नद्यः, स्वय-मेव नाम्भः अर्थात् नदियां अपना जल खुद नहीं पीती, बल्कि परोपकार के लिये देती हैं।” गुजरात और पश्चिमी राजस्थान में पानी की कमी का उल्लेख करते हुए जल संचयन के जुड़े पर्वों का उल्लेख किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी बात को छोटी बात मानने की गलती नहीं करनी चाहिए। छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े-बड़े परिवर्तन आते हैं और अगर हम महात्मा गांधी के जीवन की तरफ देखेंगे तो महसूस करेंगे कि छोटी-छोटी बातों की उनके जीवन में कितनी बड़ी अहमियत थी। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने स्वच्छता को जन-आन्दोलन बनाने का काम किया था। महात्मा गांधी ने स्वच्छता को स्वाधीनता के सपने के साथ जोड़ा। आज इतने दशकों बाद, स्वच्छता आन्दोलन ने एक बार फिर देश को नए भारत के सपने के साथ जोड़ने का काम किया है।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में साबरमती तट पर महात्मा गांधी द्वारा बनाए गये साबरमती आश्रम के पास साबरमती नदी सूख गयी थी। साल के 6-8 महीने पानी नजर ही नहीं आता था लेकिन अब नर्मदा नदी और साबरमती नदी को जोड़ दिया गया है।