नई दिल्ली. कोरोना के समय जब पूरा देश लगभग थम सा गया था तब 40 साल के दानिश सिद्दीकी के कैमरे ने ऐसी तस्वीरें खींची जिन्होंने देश ही नहीं दुनिया को हिला कर रख दिया। लेकिन 16 जुलाई को दानिश की मौत की खबर ने सबको हैरान कर दिया।
दानिश को याद करते हुये उनके दोस्त शम्स रजा ने कहा कि दानिश कहते थे, ‘देखना जब मैं तस्वीरें खीचूंगा और उन पर लिखूंगा तो दुनिया उन्हें इग्नोर नहीं कर पाएगी, लोग भले मुझे न पहचाने पर तस्वीरें भूल नहीं पाएंगे।’
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वार जोन में रेपोर्टिंग की खबर से तरोताजा हो जाते थे दानिश
दानिश के दोस्त शम्स रजा कहते हैं, ‘पूरी दुनिया में कहीं किसी संकट की आहट भी दानिश को लगती तो वे वहां जाने के लिए पूरा जोर लगा देते। खासतौर पर संकटग्रस्त इलाकों जैसे कॉन्फ्लिक्ट जोन, वॉर जोन में जाने की खबर उनके जुनून को और तरोताजा कर देती थी। जब वे जोखिम भरी रिपोर्टिंग कर रहे होते थे तो हम लोग उन्हें संभलकर रहने की हिदायत देते थे।
मौत का वीजा था
शम्स कहते हैं कि तकरीबन दो हफ्ते पहले दानिश से मुलाकात हुई थी। दानिश को अफगानिस्तान जाना था पर तब तक वीजा नहीं मिल पाया था। उन्हें वीजा का बेकरारी से इंतजार था, वे परेशान थे कि कहीं वीजा अटक न जाए। उन्हें जिस दिन अफगानिस्तान के लिए निकलना था उसी दिन उनका वीजा क्लीयर हुआ। लेकिन हमें क्या पता था कि यह मौत का वीजा साबित होगा।
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रेपोर्टिंग के साथ वर एरिया में रहने की मिली थी ट्रेनिंग
उनके घरवाले और हम सभी दोस्त उनके लिए फिक्रमंद रहते थे, वे हमें उलटा समझाते थे कि केवल फोटो ही नहीं खींचता मैं, मुझे यह भी पता है कि इन इलाकों में कैसे खुद को बचाना है। इसलिए डरने की कोई जरूरत नहीं है। दरअसल, रॉयटर्स में दानिश को ऐसी रिपोर्टिंग के लिए बहुत अच्छी ट्रेनिंग मिली थी। उन्हें इन इलाकों में बचने के सारे तरीके बताए गए थे। अफगानिस्तान से पहले भी दानिश इराक जैसे देश में युद्ध की रिपोर्टिंग कर चुके हैं।
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जर्नलिस्ट से फोटो जर्नलिस्ट कैसे बने दानिश
दानिश का जर्नलिज्म का सफर न्यूज एक्स से शुरू हुआ था। 2007 में दोस्त शम्स और दानिश ने एक साथ न्यूज एक्स से अपने करियर की शुरुआत की थी। एक डेढ़ साल बाद दानिश इंडिया टुडे के टीवी चैनल में चले गए। 2010 में दानिश को जर्नलिज्म का वो प्लेटफार्म मिला जिसका सपना वे जर्नलिज्म की पढ़ाई करते वक्त देखा करते थे।
उन्हें रॉयटर्स की तरफ से फोटो जर्नलिज्म का ऑफर मिला। दोस्त शम्स कहते हैं, ‘दरअसल, वे टीवी जर्नलिस्ट नहीं बल्कि शुरू से ही फोटो जर्नलिस्ट बनना चाहते थे। लेकिन पढ़ाई के तुरंत बात कैंपस सेलेक्शन हुआ तो उन्होंने सोचा कि शुरुआत तो करते हैं फिर देखा जाएगा अपना ख्वाब कैसे पूरा करना है।
दानिश की तरक्की बहुत तेज हुई थी। उन्होंने रॉयटर्स में बतौर ट्रेनी ज्वॉइन किया था। लेकिन बाद में वे मुंबई के चीफ फोटोग्राफर बनकर गए। इस वक्त वे इंडिया के चीफ फोटोग्राफर थे। मुंबई में धारावी झुग्गियों की तस्वीरों ने उन्हें रॉयटर्स के टॉप अधिकारियों की नजर में ला दिया था।’
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दोस्त, पति, बेटा और पिता हर भूमिका में परफेक्ट
शम्स बताते हैं कि दानिश ने लव मैरिज की थी। उन दोनों की मुलाकात जर्मनी में हुई थी। दानिश वहां अपने किसी ऑफिसियल प्रोजेक्ट के तहत ही गए थे। दानिश ने एक ही बार प्रेम किया और उसी से विवाह भी किया। एक बेटे के तौर पर मैं जब उन्हें देखता हूं तो वे हमेशा अपने पिता और मां के लिए फिक्रमंद रहते थे। उनकी जोखिम भरी यात्राओं से हमेशा डरने वाली अपनी पत्नी को वे बहुत चतुराई से समझा देते थे।
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2018 में मिला था पुलित्जर
रोहिंग्या शरणार्थी संकट की कवरेज के लिए फीचर फोटोग्राफी कैटेगरी में दानिश की टीम को साल 2018 का पुलित्जर सम्मान मिला था। उन्होंने अफगानिस्तान और इराक की जंग के अलावा कोरोना महामारी, नेपाल भूकंप और हॉन्ग-कॉन्ग के विरोध प्रदर्शनों को भी कवर किया था।
अभी यह नहीं बता सकते कब आएगा दानिश का शव – विदेश मंत्रालय
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बताया, ‘डेड बॉडी को लाने के लिए अफगानिस्तान सरकार से बातचीत हो चुकी है। हम जल्द ही शव लाएंगे। लेकिन अभी समय नहीं बता सकते की कब तक डेड बॉडी इंडिया आएगी।