सनातन धर्म में अमावस्या का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। दर्श अमावस्या (Darsh Amavasya) , हर महीने के शुक्ल पक्ष की आखिरी अमावस्या को कहते हैं। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होती है जो पितृ दोष निवारण (Removal of Pitra Dosh) या पितरों की शांति और विशेष पूजा-पाठ के लिए यह दिन चुनते हैं। दर्श अमावस्या के दिन चंद्र देव की पूजा करने का विधान है। इस शुभ दिन ध्यान, पूजा,जप-तप और दान करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इसे दर्श इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन ध्यान और आत्मनिरीक्षण करने का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व और पूजा विधि।
इस बार 30 नवंबर 2024 दिन शनिवार को यह पर्व (Darsh Amavasya) मनाया जाएगा। अमावस्या तिथि पर पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह के 10:29 बजे से लेकर अगले दिन 1 दिसम्बर को 11:50 तक रहेगा।
पितरों की तृप्ति के लिए खीर, पूरी और मिठाई
पितरों की शांति के लिए करें पूजा
दर्श अमावस्या (Darsh Amavasya) के दिन पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल और फूल अर्पित करें। इसके साथ ही ॐ पितृभ्य: नम: मंत्र का जाप करें। इस शुभ अवसर पर पितृसूक्त का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा पितरों की तृप्ति के लिए खीर, पूरी और मिठाई बनाकर दक्षिण दिशा में रखकर दीप जलाने से पितृ संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
दीपदान करना शुभ
इस दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी या घर पर ही गंगाजल युक्त जल से स्नान करें। स्नान के बाद गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं, वस्त्र और अन्न दान करें। पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाना और पितरों के नाम से दीपदान करना शुभ होता है।