देहारादून। संघ के कार्यक्रमों में गीत और कविताओं का विशेष महत्व रहता है। उत्तर प्रदेश में ‘ताऊ जी’ के नाम से प्रसिद्ध गिरिराज प्रसाद (Giriraj Prasad) के मुख से ‘‘वन दीप जले ऐसा, सब जग को ज्योति मिले’’ तथा ‘‘पथ भूल न जाना पथिक कहीं’’ जैसे गीत सुनकर सब लोग भावविभोर हो जाते थे।
गिरिराज प्रसाद (Giriraj Prasad) का जन्म मथुरा जिले में मेरी पितृसत्ता पण्डित वाराम उपाध्याय के सगे भाई एवम् भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती भारतीय-जनसंघ के स्थापन एवम् प्रेरणा-पुरुष पण्डित दीनदयाल के पितामह पण्डित हरीराम उपाध्याय के ग्राम नगला चंद्रभान (फरह) के निकट परखम ग्राम में हुआ था। उनके पिता गेंदालाल तथा माता पार्वती देवी थीं। बचपन से ही उन्हें कुश्ती का बहुत शौक था। संघ के सम्पर्क में आकर वे 1958 में प्रचारक बन गये। यद्यपि वे गृहस्थ थे; पर उन्होंने गृहस्थी की अपेक्षा भारत माता की सेवा को अधिक महत्व दिया।
गिरिराज प्रसाद (Giriraj Prasad) अत्यधिक सादगी पसंद व्यक्ति थे। वे बरेली, आगरा, मथुरा, सीतापुर आदि स्थानों पर जिला प्रचारक रहे। एक बार उन्होंने निश्चय किया कि वे धन को नहीं छुएंगे। यह बड़ा कठिन व्रत था; पर लम्बे समय तक उन्होंने इसे निभाया। पूरे जिले में वे साइकिल से प्रवास करते थे।
एक बार बरेली में बाढ़ के समय उन्हें साइकिल सहित नाव में बैठकर नदी पार करनी पड़ी। नाविक यह देखकर हैरान रह गया कि उनकी जेब में एक भी पैसा नहीं था; पर गिरिराज प्रसाद (Giriraj Prasad) ने अगले दिन एक कार्यकर्ता को भेजकर उसका पैसा चुका दिया। जब वरिष्ठ अधिकारियों को यह पता लगा, तो उन्होंने इसके लिए मना किया। गिरिराज प्रसाद (Giriraj Prasad) ने आदेश का पालन करते हुए हनुमान को एक रुपये का प्रसाद चढ़ाया और यह निश्चय वापस ले लिया।
गिरिराज प्रसाद (Giriraj Prasad) काम का प्रारम्भ स्वयं से ही करते थे। उन्होंने ‘जम्मू-कश्मीर सत्याग्रह’ में अपने परिवार को तथा ‘गोरक्षा सत्याग्रह’ में अपने गांव के निकटवर्ती 22 गांवों के लोगों को भेजा। एक बार उनके छोटे भाई ने प्रधान का चुनाव लड़ा। उसने कहा कि आप भी एक दिन के लिए गांव आ जाएं। इस पर उन्होंने कहा कि प्रचारक का काम शाखा चलाना है, वोट मांगना नहीं।
आपातकाल में वे आगरा में जिला प्रचारक थे। पुलिस ने उन पर मीसा लगा दिया; पर वे पकड़ में नहीं आये। इस पर पुलिस ने सामान सहित उनके घर को ही अपने कब्जे में कर लिया; लेकिन गिरिराज प्रसाद (Giriraj Prasad) डिगे नहीं। 1976 में रक्षाबंधन वाले दिन किसी की मुखबिरी पर पुलिस ने इन्हें पकड़कर जेल में भेज दिया, जहां से वे आपातकाल की समाप्ति पर ही बाहर आ सके। मेरे पापा प्रोफेसर पण्डित के.सी.उपाध्याय, एडवोकेट भी मीसा-बन्दी के रूप में जेल में थे, हमारा पूरा घर सील था । बड़े भाई एडवोकेट पण्डित राजेश्वर दयाल उपाध्याय ने आगरा के छत्ता-बाजार थाने के सामने ‘जो सरकार निकम्मी है, इन्दिरा उसकी मम्मी है’ ,यह नारा लगाते हुए ‘सत्याग्रह ‘ किया, नौ घण्टे की पुलिस-प्रताड़ना के बाद उन्हें छोड़ा गया ।भाई एडवोकेट पण्डित राजेश्वर दयाल उपाध्याय आपातकाल में सबसे कम उम्र के बाल-सत्याग्रही थे । मां पुष्पलता उपाध्याय भूमिगत रहकर आपातकाल का विरोध कर रही थीं, सब्जी की टोकरी में बुलेटिन छिपाकर बांटती हुई पकड़ी गयी थीं । आपातकाल में पापा को जेल में ‘धीमा-जहर ‘दिया गया था जो अल्पायु में उनकी मृत्यु का कारण बना ।
1978 में ताऊ को पश्चिमी उ.प्र. में ‘भारतीय किसान संघ’ का संगठन मंत्री बनाया गया। इस कार्य को उन्होंने दीर्घकाल तक निष्ठापूर्वक किया। दीनदयाल उपाध्याय के प्रति उनके मन में अतिशय श्रद्धा थी। इसलिए जब उनके पुरखों के गाँव नगला चंद्रभान में उनके जन्मदिवस पर प्रतिवर्ष मेला करने की योजना बनी, तो वे उस प्रकल्प से जुड़ गये।
आज तो उस मेले का स्वरूप बहुत व्यापक हो गया है। उसमें स्वस्थ पशु, स्वस्थ बालक जैसी प्रतियोगिताओं के साथ ही किसान सम्मेलन, कवि सम्मेलन, कुश्ती और रसिया दंगल जैसे समाजोपयोगी कार्यक्रम होते हैं। उस गांव को केन्द्र बनाकर ग्राम्य विकास के अनेक प्रकल्प भी चलाये जा रहे हैं। स्वदेशी तथा गो आधारित उत्पादों का भी वहां निर्माण हो रहा है। इसके पीछे गिरिराज प्रसाद (Giriraj Prasad) की तपस्या सर्वत्र दिखाई देती है।
वृद्धावस्था में कार्य से विश्राम लेकर वे अपने गांव में ही रहने लगे। अपने मधुर व्यवहार के कारण वे पूरे क्षेत्र के ‘ताऊ ’ बन गये। छोटे भाई जगनप्रसाद की असमय मृत्यु से उनके मस्तिष्क पर तीव्र आघात हुआ। 21 मई, 2008 को 84 वर्ष की आयु में उनका वन दीप भी सदा के लिए भगवान कृष्ण के चरणों में विसर्जित हो गया।