आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) इसलिए कहते हैं, क्योंकि इस दिन से चार माह के लिए श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा में सो जाते हैं। इसीलिए इसे हरिशयनी और पद्मनाभ एकादशी भी कहते हैं। इस बार यह व्रत 10 जुलाई को कई प्रकार के दुर्लभ योगों में पड़ रहा है। जिससे इसका महत्व बढ़ जाता है। रवि योग, शुभ योग, शुक्ल योग, हंस योग, बुधादित्य योग आदि कई प्रकार के शुभ योग निर्मित होंगे।
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य एवं वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी ने गुरुवार को उक्त जानकारी देते हुए बताया कि भगवान विष्णु ही प्रकृति के पालनहार हैं और उनकी कृपा से ही सृष्टि चल रही है। देवशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। इस समयावधि में सभी धाम ब्रज में आ जाते हैं। इसलिए इस समय ब्रज की यात्रा बहुत शुभकारी होती है। देवशयनी एकादशी व्रत करने और इस दिन भगवान श्रीहरि के पद्मनाभ रूप की विधिवत पूजन से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। देवशयनी एकादशी का व्रत रखने से सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं।
डॉ. तिवारी ने कहा कि स्कंद पुराण में वर्णित है कि एक राजा के राज्य में बरसात नहीं हो रही थी। सारे लोग बहुत परेशान थे और अपनी परेशानी लेकर राजा के पास पहुंचे। हर तरफ अकाल था। ऐसी दशा में राजा ने भगवान विष्णु की पूजा की। देवशयनी एकादशी का व्रत रखा। इसके फलस्वरूप भगवान विष्णु और राजा इंद्र ने बरसात की और राजा के साथ-साथ सभी लोगों के कष्ट दूर हो गए।
ज्योतिषार्य के अनुसार, देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) का व्रत रखने से मन शुद्ध होता है, सभी मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सिद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है और जीवन में खुशियों को भर देते हैं। एकादशी के विधिवत व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और कथा सुनने से सभी तरह के संकट कट जाते हैं। इस व्रत को करने से शरीरिक कष्ट समाप्त हो जाते हैं और स्वास्थ्य संबंधी लाभ मिलता है और व्यक्ति निरोगी होता है। इस दिन विधिवत व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्त होती है।
उन्होंने कहा कि इस दिन तुलसी और शालिग्राम की विधिवत रूप से पूजा और अर्चना करना चाहिए। देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है। इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। यदि धनलाभ की इच्छा है तो श्रीहरि विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा करें।