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बाघम्बरी मठ में विवाद, बलबीर गिरि बोले- मैं मठ का उत्तराधिकारी हूं, वसीयत मेरे नाम

बाघम्बरी मठ के पूर्व महंत नरेंद्र गिरी की मौत के बाद नए महंत को विवादों के बाद भले ही गद्दी मिल गई हो लेकिन विवाद खत्म होते नहीं दिखता। सूत्रों के मुताबिक मठ के नए महंत बलबीर बाकी संतों से अनिवार्य सलाह मशविरे के लिए सुपर एडवाइजरी बोर्ड बनाने को राजी नहीं। उन्होंने चादर चढ़ाने यानी महंत बनाए जाने से एक दिन पहले सुपर एडवाइजरी बोर्ड के लिए बनाए गए कागज में हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। इसके घटना के बाद से मठ के पंच परमेश्वर और संतों के भीतर गुस्सा भर गया है। पहले नरेंद्र गिरी की रहस्यमय हालातों में आत्महत्या, फिर तीन वसीयतों का सामने आना, आखिरी वसीयत में बलबीर का नाम बतौर उत्तराधिकारी होने के साथ ही मठ की कुछ संपत्ति मठ के बाहर के लोगों को देने के जिक्र ने इस गुस्से को और हवा दे दी है।

मठ और अखाड़े के सूत्रों ने बताया, “मठ निरंजनी अखाड़े के तहत आता है। पंचपरमेश्वरों और मठ के अन्य संतों ने विवाद को और तूल न देते हुए आखिरी वसीयत के हिसाब से बलबीर गिरी को गद्दी सौंप दी। नरेंद्र गिरी की मृत्यु के बाद बलवीर गिरी को 5 अक्टूबर को बाघम्बरी मठ का महंत नियुक्त किया है। इस परंपरा को चादर चढ़ाना कहा जाता है। बलवीर का नाम नरेंद्र गिरी की कथित तीसरी वसीयत में नाम था।

नरेंद्र गिरी की मृत्यु के बाद बलवीर गिरी को 5 अक्टूबर को बाघम्बरी मठ का महंत नियुक्त किया है। इस परंपरा को चादर चढ़ाना कहा जाता है। बलवीर का नाम नरेंद्र गिरी की कथित तीसरी वसीयत में नाम था। बलवीर गिरी को चादर चढ़ाकर पद पर नियुक्त कर दिया गया, लेकिन मठ और अखाड़े के संतों के बीच इस बात पर एक राय बनी थी कि एक सुपर एडवाइजरी बोर्ड बने ताकि महंत किसी भी फैसले को करने से पहले मशविरा लें।

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बलबीर भी इसके लिए तैयार थे, लेकिन चादर चढ़ाने के एक दिन पहले वे मुकर गए। सुपर एडवाइजरी बोर्ड के लिए बनाए गए कागज में हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। दरअसल इस बोर्ड के लिए महंत की मंजूरी जरूरी है।” सूत्रों के मुताबिक बलवीर गिरी का कहना है कि वसीयत में उनका नाम था इसलिए उन्हें सलाह देने के लिए किसी तरह के बोर्ड की जरूरत नहीं।

सूत्रों के मुताबिक बलवीर गिरी का कहना है कि वसीयत में उनका नाम था इसलिए उन्हें सलाह देने के लिए किसी तरह के बोर्ड की जरूरत नहीं। अखाड़े के सूत्रों ने बताया कि मठ के नए महंत बलबीर ने दो टूक शब्दों में कहा कि ”मैं मठ का उत्तराधिकारी हूं, वसीयत मेरे नाम है। मैं बोर्ड बनने को लेकर सहमत नहीं। गुरु जी ने मुझे इस पद के योग्य समझा तभी तो वसीयत की।”

मठ के एक संत और निरंजनी अखाड़े के पदाधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया, “यह बात अभी भी गले नहीं उतरती की नरेंद्र गिरी ने सुसाइड किया। इसके बाद तीन-तीन वसीयतों का सामने आना भी समझ से परे है। यह भी समझ नहीं आता कि नरेंद्र गिरी ने किसी भी वसीयत में मठ के पदाधिकारियों और संतों से परामर्श नहीं किया, जबकि इससे पहले की वसीयतें जब भी लिखी गईं तत्कालीन महंत ने मठ के पदाधिकारियों से सलाह-मशविरा करने के बाद ही उत्तराधिकारी घोषित किया।’

अखाड़े के कई संतों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘ मठ की संपत्ति केवल महंत की नहीं। उस पर मठ और अखाड़े के अन्य संतों का भी अधिकार है। अभी हम यह देख रहे हैं कि आखिर बलबीर कैसे लोगों से नजदीकी बढ़ाते हैं? उनके चारों ओर किस किस्म के लोग जुटते हैं? मठ की संपत्ति का दुरुपयोग तो नहीं करते?

मठ के अनुकूल आचरण करते हैं या नहीं। हालांकि उनका सुपर एडवाइजरी बोर्ड को नकारना बताता है कि वे शायद ही आगे मठ और अखाड़े के अन्य संतों की सलाह पर कभी गौर करें। लिहाजा इस पर विचार विमर्श चल रहा है। हम मठ के पुराने कागजात निकलवाने की प्रक्रिया में हैं।

हम प्रमाण जुटा रहे हैं कि अगर मठ की संपत्ति का महंत दुरुपयोग करेंगे तो उसके खिलाफ प्रस्ताव लाया जा सकता है।’ मठ के पदाधिकारी कड़े शब्दों में कहते हैं, यह मठ हम सबका है। इस पर एकाधिकार को हम चुनौती देंगे।

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