देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। ये एकादशी सबसे बड़ी मानी जाती है, क्योंकि इस एकादशी पर जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं। भगवान के जागने के साथ ही चातुर्मास का समापन हो जाता है। इसके बाद वो शुभ काम शुरू हो जाते हैं, जो भगवान के योगनिद्रा में लीन होने के बाद बंद कर दिए जाते हैं। जैसे-विवाह, मुंडन और गृह प्रवेश आदि।
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रत और पूजन करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है। देवउठनी एकादशी का व्रत बेहद सात्विक और कठोर होता है। व्रत के दौरान खान-पान के मामले में बहुत सावधानी रखी जाती है। ऐसे में आइए जानते इस व्रत में क्या खाना और क्या नहीं खाना चाहिए? साथ ही जानते हैं व्रत के सभी नियम।
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) कब है?
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 1 नवंबर को यानी कल सुबह में 9 बजकर 11 मिनट पर होगी। वहीं इस तिथि का समापन 2 नवंबर को सुबह में 7 बजकर 31 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में सूर्योदय के अनुसार, देवउठनी एकादशी का व्रत 1 नवंबर को रखा जाएगा।
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) व्रत में क्या खाएं?
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) के दिन व्रत में सभी प्रकार के फल और सूखे मेवे का सेवन करना चाहिए। आलू, शकरकंद, अरबी, और साबूदाने का सेवन करना चाहिए। सिंघाड़े का आटा, कुट्टू का आटा, और राजगीरे के आटे से बनी पूड़ी, पराठा या पकौड़ी का सेवन करना चाहिए। दूध, दही, छाछ, पनीर और घी का सेवन करना चाहिए। सिर्फ सेंधा नमक और काली मिर्च, हरी मिर्च, अदरक, जीरा पाउडर आदि सात्विक मसालों का उपयोग करना चाहिए।
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) व्रत में क्या नहीं खाएं?
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) के दिन व्रत में गेहूं, जौ, बाजरा, मक्का और सभी प्रकार की दालों का सेवन नहीं करना चाहिए। लहसुन, प्याज, मांस, मछली, और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। सामान्य नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। गोभी, गाजर, पालक, बैंगन और शलजम जैसी सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए।
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) व्रत नियम
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) के दिन स्नान के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए। मन, वचन और कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए। किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। झूठ नहीं बोलना चाहिए। किसी से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। सोना नहीं चाहिए। व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि को शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। पारण के प्रसाद में चावल और तामसिक चीजों को शामिल नहीं करना चाहिए।







