जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, उसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, अगर किसी का अंतिम संस्कार पूरे रीति रिवाज के साथ नहीं होता है तो उसकी आत्मा तृप्त नहीं होती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसे मृत व्यक्ति की आत्मा आसपास ही भटकती रहती है। इसीलिए यह आवश्यक है कि अगर किसी की मृत्यु हो, तो उसके बाद उसका पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार भी किया जाए। इसके लिए दिन और तारीखों का भी बहुत महत्व होता है।
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद तेरहवीं करने की परंपरा है। इसी के साथ ही हिंदू धर्म में अस्थियों का विसर्जन (Immerse Bones) भी किया जाना चाहिए। लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें अस्थियों को कब विसर्जित किया जाए, और कब नहीं, इस बारे में जानकारी नहीं होती है। अंतिम संस्कार में मृत शरीर को अग्नि दी जाती है। अंतिम संस्कार की इस प्रक्रिया में देह के जो अंग होते हैं, उसमें से मात्र हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं। ये अवशेष भी काफी हद तक जल जाते हैं और इन्हीं को अस्थियों के रूप में रखा जाता है।
कब नहीं करना चाहिए अस्थि विसर्जन (Immerse Bones)
पंचक के दौरान अस्थि विसर्जन (Immerse Bones) नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पंचक में अस्थि विसर्जन करने से आस-पास पांच दिनों तक इसी तरह की खबरें सुनने को मिलती हैं। गरुड़ पुराण के मुताबिक, मृतक के अंतिम संस्कार के तीसरे, सातवें, और नौवें दिन अस्थियां इकट्ठा करनी चाहिए। अस्थियां इकट्ठा करने के बाद, दस दिनों के अंदर उन्हें गंगा नदी में विसर्जित करना चाहिए।
और कहां कर सकते हैं अस्थि विसर्जन (Immerse Bones)
गंगा नदी के अलावा, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में भी अस्थि विसर्जन किया जा सकता है। अस्थि विसर्जन के लिए, अस्थियों को दूध और गंगाजल से धोकर अस्थिकलश या पीतवस्त्र से बने थैले में रखा जाता है। अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार के हर की पौड़ी घाट काफी मशहूर है।
कौन कर सकता है अस्थि विसर्जन (Immerse Bones)
अस्थि का विसर्जन वैसे तो कोई भी कर सकता है, लेकिन जिस व्यक्ति ने मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया हो, उसी के द्वारा अस्थि विसर्जन भी किया जाना चाहिए। इसके लिए भी कुछ नियम हैं जिनका पालन किया जाना आवश्यक है। यदि अस्थि विसर्जन करने जा रहे हैं तो जो व्यक्ति अस्थियों का विसर्जन करे वो शुद्ध होना चाहिए। खाने पर भी कुछ प्रतिबंध होते हैं।