हिन्दू धर्म में पूजा (Worship) में क्या सही है और क्या गलत है। इसकी जानकारी होना लोगों के लिए बहुत ही आवश्यक है। ताकि आपकी भक्ति स्वीकार हो और आपको उसका पूर्ण फल मिले। कई बार अनजाने में पूजा के समय हम ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जिनका हमें पता भी नहीं चलता। यहां कुछ सामान्य गलतियां दी गई हैं जो अक्सर पूजा के दौरान हो जाती है। प्रत्येक देवी-देवता और पूजा के लिए एक निश्चित समय होता है। उदाहरण के लिए, संध्याकाल में कुछ विशेष पूजाएं वर्जित होती हैं। ब्रह्म मुहूर्त (सूर्य उदय से लगभग डेढ़ घंटा पहले) को पूजा के लिए उत्तम माना जाता है।
वास्तु विशेषज्ञ एवं ज्योतिषी के रिसर्च स्कॉलर आचार्य राकेश मोहन गौतम के अनुसार, वास्तु में पूर्व जिधर सूर्य का उदय होता है, उत्तर एवं उत्तर पूर्व यह एक ऐसी दिशा है, जहां देवताओं का वास होता है। देवता का यहां अभिप्राय है शुभ देवता और इन दिशाओं में भी उत्तर पूर्व जिसको ईशान कोण कहते हैं। ये पूजा के स्थान के लिए सबसे उत्तम दिशा मानी जाती है।
पूजा (Worship) करते वक्त दिशा का ध्यान जरूरी
पूजा (Worship) करते समय कहा जाता है कि आपका मुंह पूर्व दिशा की तरफ हो या उत्तर की तरफ हो। दिशा निर्धारित करते समय यह भूल जाएं कि ईश्वर का मुंह किस तरफ है। जातक पूर्व दिशा की तरफ या उत्तर दिशा की तरफ फेस करके ही पूजा करने बैठें। यह एक सामान्य नियम है लेकिन किसी जातक को किस दिशा में बैठकर पूजा करनी चाहिए कौन सी दिशा उसकी जन्म कुंडली के अनुसार सबसे उत्तम है। वह गणना ज्योतिष में अष्टक वर्ग के सिद्धांत के अनुसार की जाती है। इसी प्रकार अन्य नियम में से एक है मंदिर में दक्षिण दिशा में उग्र देवी देवता रखे जाते हैं।
क्या करें, क्या न करें
– देवताओं को या मंदिर को कभी भी रसोई के स्लैब में नहीं रखना चाहिए। न ही घर के बेडरूम में या ऐसी दीवार पर जो टॉयलेट से मिलती हो।
– पूजा के कमरे का दरवाजा एवं टॉयलेट का दरवाजा एक दूसरे को फेस नहीं करते रहना चाहिए।
– मूर्तियों की ऊंचाई 2 इंच एवं 10 इंच के भीतर ही होनी चाहिए।
– पूजा करते वक्त जातक की छाती पर ईश्वर के पैर आने चाहिए। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि छाती के नीचे मानव शरीर गंदा होता है।
– पूजा के मंदिर में सामग्री के अलावा कुछ और नहीं रखना चाहिए।
– पूजा के लिए यथासंभव तांबे का पात्र रखें और संभव न हो तब स्टील का रख लें।
– मंदिर में कभी त्रिभुजाकार मूर्ति न रखें खंडित मूर्ति न रखें।
– कहीं मंदिर से उठाकर लाई मूर्ति भी कभी न रखें।
– दीवाल का रंग हल्का नीला या हल्का पीला होना चाहिए। पत्थर का रंग सफेद होना चाहिए।
– मंदिर में बिना स्नान के नहीं जाना चाहिए और यदि स्नान संभव न हो तो कम से कम पर पैर अवश्य धोकर जाने चाहिए।
– पैर धोने के लिए सीधे हाथ से जल डालें बाएं हाथ से पैर धोए पहले पैर का पिछला हिस्सा धोएं फिर आगे का धोए।
– अंत में जल का छिड़काव सर पर अवश्य करें ताकि पूर्ण पूरा शरीर पवित्र हो जाए।
– मंदिर में अलमारी हमेशा दक्षिण पश्चिम में रखें।
– मूर्तियां एक दूसरे के सामने न रखें। दीवार पर भगवान की मूर्तियां या कैलेंडर आमने-सामने हो सकते हैं।
एक भगवान की दो मूर्तियां मंदिर में न रखें।
– घर के सामने दो मुंह वाली गणेश जी की मूर्ति लगाएं। गणेश जी की पीठ पाताल लोक इंगित करती है मुंह से सकारात्मकता निकलती है।
– गणेश जी की पीठ घर की तरफ नहीं होनी चाहिए इसीलिए एंट्रेंस गेट पर बैक टू बैक गणेश जी की मूर्ति लगाएं।
– अपने पूर्वजों की फोटो घर के दक्षिण पश्चिम में लटका सकते हैं और यदि घर का दक्षिण पश्चिम संभव न हो तो दक्षिण में।
– पुस्तक यदि पूजा रूम में रखी हों तो उन्हें भी ईशान कोण में ही रखें।