सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का कथन
नई दिल्ली। Supreme Court ने कहा, बच्चों को उनके मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य (Mental Health) के हित में बहुत कम उम्र में स्कूलों में नहीं भेजा जाना चाहिए। माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे दो साल के होते ही स्कूल जाना शुरू कर दें, लेकिन इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा।
जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने इस पर टिप्पणी की है। पीठ आगामी शैक्षणिक सत्र (Academic session) के लिए केंद्रीय विद्यालय में कक्षा 1 में एंट्री के लिए छह साल की न्यूनतम आयु मानदंड (Minimum Age Criteria) को चुनौती देने वाले माता-पिता की अपील पर सुनवाई कर रही थी।
बच्चों को स्कूल भेजने में जबरदस्ती न करें : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)
माता-पिता ने दिल्ली उच्च न्यायालय (Supreme Court) के 11 अप्रैल के आदेश को चुनौती देते हुए दावा किया कि केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) ने मार्च 2022 में एडमिशन प्रोसेस शुरू होने से ठीक चार दिन पहले कक्षा 1 से छह साल के लिए अचानक प्रवेश मानदंड बदल दिया। पिछला मानदंड पांच साल था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आगे कहा, बच्चों को स्कूल भेजने की सही उम्र क्या है इसको लेकर अध्ययन किया गया है। बच्चों को स्कूल भेजने में जबरदस्ती न करें इससे उनके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
हाई कोर्ट(High Court) ने बच्चों की शिक्षा पर क्या कहा?
कोर्ट ने माता-पिता के समूह की ओर से पेश वकील को बताया, समस्या यह है कि हर माता-पिता को लगता है कि उनका बच्चा प्रतिभाशाली है जो किसी भी उम्र में पढ़ने बैठ सकता है। जिसके बाद सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने बताया कि 21 राज्यों ने एनईपी के तहत पहली कक्षा के लिए सिक्स प्लस व्यवस्था लागू की है, जो 2020 में आई थी और इस नीति को चुनौती नहीं दी गई थी। इसके बाद अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश की पुष्टि करते हुए अपील को खारिज कर दिया। इसी मामले में 11 अप्रैल के अपने आदेश में, HC ने माता-पिता की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्हें स्कूल में एडमिशन लेने से वंचित नहीं किया गया है।
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वहीं एडुकेशनिस्ट मीता सेनगुप्ता ने कहा, ‘शुरुआती शिक्षा स्कूल में उपलब्धि के लिए एक अच्छी नींव रखती है, लेकिन इसका नेतृत्व देखभाल के साथ किया जाना चाहिए।शुरुआती सालों में शिक्षा बच्चे की अन्य क्षमताओं का निर्माण करती हैं ये अच्छी बात है, लेकिन अन्य जो बच्चों को याद करने और बहुत जल्दी प्रदर्शन करने के लिए मजबूर करती हैं, वो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है।’