दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की ओर से कोरोना की वजह से हर कॉलेज में बढ़ाई गई पांच सीटें प्राचार्यों के लिए मुसीबत बन गई हैं। क्योंकि, पांच में से तीन सीटों पर दाखिला प्राचार्यों को अपने विवेक के आधार पर देना है। इसे लेकर नियम कायदे स्पष्ट नहीं होने के कारण प्राचार्य दाखिला देने से बच रहे हैं। उनके पास रोजाना दाखिले के लिए सिफारिशें आ रही हैं। दबाव में आए प्राचार्यों ने डीयू के इस निर्णय पर ही सवाल उठाए हैं। बता दें कि, तीसरी विशेष कटऑफ के आधार पर 31 दिसंबर दाखिले का अंतिम दिन है।
लगातार सिफारिश से प्राचार्य दबाव में : रामजस कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. मनोज खन्ना का कहना है कि इतने बड़े निर्णय लेने से पूर्व इस पर बातचीत होनी चाहिए थी। कई कॉलेजों के प्रिंसिपल का यह भी कहना है कि उनका कॉलेज ट्रस्ट का कॉलेज है। ऐसे में उनके पास न केवल ट्रस्ट की बल्कि गवर्निंग बॉडी के सदस्य सहित तमाम लोगों की सिफारिशें आ रही हैं। डीयू को सीट बढ़ाने के साथ इसके दाखिला प्रारूप को भी ठीक से स्पष्ट करना चाहिए था। हालांकि, डीयू प्रिंसिपल एसोसिएशन के सचिव डॉ. मनोज सिन्हा का कहना है कि हम न तो इसका समर्थन करते हैं, न ही विरोध। हमें जो निर्देश मिलेगा वैसा करेंगे।
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एकेडमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलेपमेंट के पदाधिकारी और कार्यकारी समिति के सदस्य डॉ. राजेश झा का कहना है कि डीयू में इस तरह का कोटा रखना न केवल भेदभावपूर्ण है बल्कि सामाजिक न्याय के भी खिलाफ है। यह योग्यता के सिद्धांत के भी खिलाफ है। हम इसका विरोध करते हैं। इसे तुरंत वापस लेने की मांग करते हैं। विद्वत परिषद के एक सदस्य का कहना है कि इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले इस पर विचार किया जाना चाहिए था। ईसी और एसी सदस्यों की राय ली जानी चाहिए थी।
छात्र संगठन एबीवीपी ने भी इस निर्णय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है। डीयू प्रशासन को 30 दिसंबर तक इस निर्णय को वापस लेने की चेतावनी दी है। दिल्ली के प्रदेश मंत्री सिद्धार्थ यादव का कहना है कि यह निर्णय डीयू में दाखिले में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देगा। मेरिट से दाखिला लेने वाले छात्रों के साथ अन्याय होगा। डीयू के छात्र संघ अध्यक्ष ने भी इसे भेदभावपूर्ण निर्णय माना है।