विश्व में शाश्वत शांति, स्थिरता तथा समरसता की कुंजी गीता में मौजूद है और भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों पर आधारित इस पवित्र ग्रंथ से विश्व समुदाय रक्तरंजित आतंकवाद तथा भेदभाव जैसी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकता है।
गीता प्रचारक अरूण चौबे ने रावर्टसगंज के जयप्रभा मंडपम में गीता जयंती समारोह समिति सोनभद्र द्वारा “ गीता में सामाजिक समरसता “ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में कहा कि समरसता भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है। सदियों से हमारे ऋषि-मुनियों ने सामंजस्यपूर्ण श्रेष्ठ संस्कृति से युक्त समता मूलक समाज के लिए सतत प्रयास किया है मगर किन्तु दुर्भाग्यवश अपने गौरवशाली अतीत तथा अपने धर्मशास्त्र को विस्मृत कर देने के कारण आज का समाज सबसे ज़्यादा बिखरा हुआ समाज है।
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उन्होने कहा “ हम जातियों को तथा मज़हबों को ही सत्य मानकर परस्पर द्वेष कर रहे हैं, जबकि आदि धर्मशास्त्र गीता के अनुसार सभी मनुष्य परमात्मा के विशुद्ध अंश हैं। प्रत्येक मानव उतना ही पावन है, जितना स्वयं भगवान, फिर कोई ऊँच, कोई नीच कैसे हो सकता है।”
इस मौके पर पूर्व नगरपालिका चेयरमैन अजय शेखर ने कहा कि गीता के अनुसार जीवनपथ पर चलने से ही समाज में समरसता आयेगी क्योंकि गीता किसी मज़हब, संप्रदाय का धर्मशास्त्र नहीं है यह मानवमात्र का धर्मशास्त्र है। गोष्ठी के संयोजक डा वी सिंह ने कहा कि गीता के अनुसार प्रत्येक मनुष्य परमात्मा का विशुद्ध अंश है।
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सभी मानव परमात्मा के जितना ही पावन हैं, यह विचार हम आचरण में लाकर समरस समाज बना सकते हैं। पारसनाथ मिश्र ने कहा कि गीता के अनुसार कर्मफल का त्याग करके जो कुछ भी है उसमें संतुष्ट होकर सुंदर समाज का निर्माण हो सकता है। कथाकार रामनाथ शिवेन्द्र ने कहा कि समाज में समानता लाकर ही समरस समाज बनाया जा सकता है।गोष्ठी को बालेश्वर यादव, प्रमोद मिश्रा, डा ओमप्रकाश त्रिपाठी, ने भी संबोधित किया।