धर्म डेस्क। पुरुषोत्तम मास की पूर्णिमा 1 अक्टूबर को है। धार्मिक रूप से यह पूर्णिमा तिथि बेहद ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन लक्ष्मीनारायण व्रत किया जाता है। मान्यता के अनुसार यह व्रत सांसारिक इच्छा पूर्ति के लिए रखा जाता है। इस व्रत को रखने से जीवन में धन संपत्ति, सुख समृद्धि आदि का आगमन होता है। इस व्रत को स्त्री-पुरुष कोई भी रख सकता है।
इस बार अधिकमास की पूर्णिमा के दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है। हिन्दू पंचांग की गणना के अनुसार, 1 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि अर्धरात्रि के बाद तक रहेगी। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में वृद्धि योग और सर्वार्थसिद्धि योग के साथ गुरुवार के दिन का संयोग बेहद प्रभावशाली है।
पूजन मुहूर्त लक्ष्मीनारायण व्रत का पूजन अभिजित मुहूर्त में करना सबसे शुभ होगा। यह मुहूर्त 1 अक्टूबर को प्रातः 11.52 से 12.40 बजे तक रहेगा।
व्रत विधि
प्रातःकाल सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें। पूजा स्थल की साफ-सफाई करें। पूजा के लिए एक चौकी पर आधा लाल और आधा पीला कपड़े का आसन बिछाएं। इसके बाद लाल कपड़े पर मां लक्ष्मी और पीले कपड़े पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। अब कुमकुम, हल्दी, अक्षत, रौली, चंदन, अष्टगंध से पूजन करें।
सुगंधित पीले और लाल पुष्पों से बनी माला पहनाएं। मां लक्ष्मी को कमल का पुष्प अर्पित करें। सुहाग की समस्त सामग्री भेंट करें। मखाने की खीर और शुद्ध घी से बने मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाएं। लक्ष्मीनारायण व्रत की कथा सुनें। इस पूरे दिन व्रत रखें।
व्रत के लाभ
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, अधिक मास के स्वामी भगवान विष्णु हैं और इस महीने उनकी आराधना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अधिकमास की पूर्णिमा का व्रत जीवन में समस्त प्रकार के सुख और सौभाग्य में वृद्धि करता है। यह व्रत यदि धन प्राप्ति की कामना से किया जाए तो यह अवश्य ही पूरा होता है। जबकि अविवाहित कन्या या युवक व्रत करें तो उन्हें योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है।