कोरोना जैसी महामारी के बीच डॉक्टरों की भूमिका वाकई नायकों की तरह है। कहते हैं डॉक्टर्स भगवान का दूसरा रूप होते हैं। कोरोना संकट के दौर में जिस तरह देशभर के डॉक्टर्स दिन-रात मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं, यह बात उनके लिए सटीक बैठती है। कोरोना संकट के इस दौरान में ना सिर्फ पुरूष बल्कि कई महिला डॉक्टर्स भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है।
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मगर एक समय ऐसा भी था जब महिलाओं को डॉक्टरी तो क्या स्कूली पढ़ाई करने भी नहीं दिया था। ऐसे में महिलाओं के लिए रोशनी बनकर उभरी थी देश की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी।
जब आनंदीबाई 14 साल की थीं तब वह मां बनीं। लेकिन केवल 10 दिनों में उन्होंने अपनी नवजात संतान को खो दिया। यह उनकी जिंदगी का बहुत बड़ा झटका था। तब उन्होंने यह प्रण किया कि वह एक दिन डॉक्टर बनेंगी। ऐसी असमय मौत को रोकने की कोशिश करेंगी।