सियाराम पांडे ‘शांत’
महाराष्ट्र के हटाए गए पुलिस महानिदेशक परमवीर सिंह का गृह मंत्री अनिल देशमुख पर गुंडे-पहलवान की तरह वसूली का आरोप एक नासूर के समूचे शारीरिक तंत्र में फैल जाने का प्रमाण है। ऐसा कुछ नहीं है कि उन्होंने कोई बेहद बड़ा राजफाश किया है। ऐसा भी नहीं है कि राजनीतिक, प्रशासनिक हलकों में इससे कोई सनसनी मच गई होगी। बस इतना भर है कि एक नौकरीशुदा अधिकारी ने खम ठोंककर वह बात कह दी है, जो अरसे से कभी टेबल के नीचे, कभी टेबल के ऊपर तो कभी परदे के पीछे चल रही थी। यह बेडरूम सीन के सड़क पर मंचित हो जाने जैसा ही है, जिसके बारे में पता तो सबको रहता है, लेकिन वह चारदीवारी के भीतर, अंधेरे में होता है, यह तो सब जानते और करते हैं, किंतु उसके सार्वजनिक मंचन की स्वीकार्यता किसी कीमत पर नहीं हो सकती। संभवत: आजाद भारत की यह पहली घटना होगी, जिसमें किसी नौकरशाह ने मंत्री पर संगठित वसूली के अभियान की सारी परतें उघाड़ दीं। क्या यह व्यवस्था की संड़ाध को कम करने में किसी तरह मददगार साबित हो सकती है?
इस समूचे कांड के अनेक पहलू हैं, जो ध्यान तो खींचते हैं, लेकिन उससे इसकी मूल भावना पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मसलन, राष्टवादी कांग्रेस के नेता शरद पवार ने भी जैसा कहा कि परमवीर ने मुंबई पुलिस कमिश्नर रहते हुए यह बात क्यों नहीं की, हटाने के बाद क्यों की? बावजूद इसके आरोपों की गंभीरता पर इससे असर नहीं पड़ता। इससे पहले भी तमाम राज्यों में अनेक खास ओहदों से अधिकारी को हटाकर कमतर को बिठाया जाता रहा है या वरिष्ठता के बावजूद कमतर पद दिये गये। जिसकी थोड़ी बहुत खदबदाहट तो रही, लेकिन इस तरह के संगीन आरोप किसी अधिकारी ने सरकार पर नहीं लगाये।
मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है : सचिन वाजे
हां, सेवा निवृत्त होने के बाद अनेक बातें कही जाती रहीं हैं, लेकिन वे असर पैदा करने में विफल रहती हैं। पद पर रहकर सरकार के मंत्री पर विभाग के जरिये वसूली के दमदार आरोप लगाना तो पहली बार हो रहा है। इससे भी बढ़कर एक बात हुई है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। परमवीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खट-खटाकर कहा है कि उनके आरोपों की सीबीईआई जांच करवाई जाये। यह तो और भी संगीन, लेकिन जिम्मेदारी भरी बात है। साफ है कि परमवीर इस मसले को अनिल देशमुख पर खत्म करना नहीं चाहते। यह तो तय है कि इस तरह की संगठित वसूली का बंटवारा सरकार में ए से जेड तक होता है। यह चिंगारी नहीं जंगल की आग है, जो पेड़-पौधे ही नहीं, जमीन पर बिखरी पत्तियां, पेड़ पर बसेरा किये पक्षी,उन पर लटूमे फल-फूलों, उस जंगल से होकर बह रही हवा, वहां की नदियों,झरनों को भी प्रभावित करेगी। मतलब, शिव सेना नेतृत्व,कांग्रेस और राष्टÑवादी कांग्रेस आलाकमान भी इसकी आंच में झुलसेंगे।
किसी भी तरह की जांच के लिए मैं हूं तैयार: अनिल देशमुख
यह सवाल भी उठता है कि क्या महज कमिश्नर पद से हटाने भर से परमवीर सिंह इतने खफा हो गये कि कॅरियर ही दांव पर लगा दिया या कहें कि सरकार से सीधा पंगा ले लिया, जिसे सिद्घांतत: किसी भी अधिकारी के तबादले का अधिकार है। उम्मीद करें कि ऐसा न हो। परम वीर अपने आचरण से भी वीर और गंभीर साबित हों तो यकीनन उनके दुस्साहस के सकारात्मक नतीजे आ सकते हैं। जिस राष्टवादी कांग्रेस के कोटे से अनिल देशमुख गृहमंत्री हैं,उन्हें अभी तक न तो शिव सेना सुप्रीमो,मुख्यमंत्री उद्घव ठाकरे ने हटाया, न शरद पवार ने उन्हें हटाने की पैरवी की।
पवार ने तो डंके की चोट कह दिया कि ऐसी कोई बात ही नहीं, जिससे देशमुख से इस्तीफा लिया जाये। है न हैरत की बात? जिस राजनीति में किसी छोटे-मोटे घपले के आरोपों पर हटा दिया जाता है। जब किसी कांड या दुर्घटना तक पर संबंधित मंत्री से इस्तीफा मांग लिया जाता हो, सदन नहीं चलने दिये जाते रहे हों। जहां किसी ऊलजलूल बयान पर ही संबंधित को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है, वहां प्रतिमाह सौ करोड़ रुपये अवैध वसूली का लक्ष्य देने का आरोप लगाया जाता है, तब भी इसे गंभीर मसला ही नहीं समझा जाता हो तो क्या समझना चाहिये?
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर पहुंचे हाईकोर्ट, अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग
इस मसले का एक जबरदस्त पेंच तो यह भी है कि मुख्यमंत्री उद्घव ठाकरे ने तो लगभग चुप्पी सी ओढ़ ली है। बेटे को कोरोना संक्रमित होने की आड़ में वे भी अंतर्ध्यान हो गये। जबकि उनके सामने शरद पवार की पावर कम करने का स्वर्णिम अवसर था। महाराष्ट्र की राजनीति में जिसतरह बेहयायी काप्रवेशहुआहै,उसे बहुत उचित नहीं कहाजासकता और यह लोकतंत्र की मजबूती कामाध्यम भी नहीं है।