गोरखपुर। पिछले पांच वर्ष में गोरखपुर (Gorakhpur) के औद्योगिक विकास (Industrial Devlopment) को पंख लग गए हैं। हालांकि, कोरोना काल के दो वर्ष की धीमी गति ने इसे जरूर प्रभावित किया है। बावजूद इसके योगी सरकार की पांच वर्ष की कुछ उपलब्धियों से गोरखपुर ने औद्योगिक क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई है। यहां 300 से अधिक औद्योगिक इकाइयां या तो स्थापित हो चुकी हैं या उनकी स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इतना ही नहीं, पिछले डेढ़ वर्षों में 68 नई इकाइयों के लिए भूखंड भी आवंटित हो चुके हैं।
अनावश्यक राजनीतिक अड़ंगे, अराजकतत्वों के हस्तक्षेप से मुक्ति, यातायात के संसाधन, आधारभूत संरचना, बिजली में सुधार, सिंगल विंडो सिस्टम जैसी सुविधाओं का ”रेड कारपेट” बिछा तो इस क्षेत्र में निवेश खिंचा चला आया। खाद कारखाना के अलावा जिले में दो हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश से रोजगार के नए द्वार खुले हैं। एम्स की स्थापना और सड़कों का जाल यहां के विकास की गवाही देने को काफी हैं। आइए, डालते है एक नजर-
औद्योगिक क्षेत्र के लिए बना अनुकूल माहौल
वर्षों पहले गोरखपुर के औद्योगिक विकास के लिए गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) की स्थापना हुई थी। इस बीच यहां के कई इकाईयां स्थापित हुईं तो अनेक असफल भी। लेकिन पिछले पांच वर्षों में अनावश्यक राजनीतिक व अराजक दबाव के चलते गोरखपुर की बनी नकारात्मक छवि, बिजली की सुविधा के लिए उद्यमियों को होने वाली परेशानी, नई औद्योगिक इकाई लगाने के लिए जरूरी प्रमाण पत्र पाने में एक विभाग से दूसरे विभाग का चक्कर लगाने जैसी समस्याएं दूर हुई तो यहां के उद्यमियों की बात कौन करे। बाहरी उद्यमियों ने भी यहां रुचि दिखानी शुरू की। वर्ष 2017 के बाद उद्यमियों को बिजली पर्याप्त मिलने लगी और अनावश्यक दबाव भी खत्म हो गया और 300 से अधिक उद्यमों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया।
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सरकार ने नई इकाइयां लगाने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था की। अब एक जगह आनलाइन आवेदन करने से नियत समय में अनुमति मिल जाती है। सरकार आते ही ब्रेकिंग सेरेमनी हुई थी। इसमें एमओयू पर हस्ताक्षर करने वाली सात इकाइयां गीडा में स्थापित हैं। गीडा के भीतर भी आरसीसी सड़क व नाली बनने से समस्या का समाधान हुआ है। इतना ही नहीं, नियमों में बदलाव कर प्रापर्टी डीलिंग बंद कर दी गई है। पिछले डेढ़ वर्षों में 68 नई इकाइयों के लिए भूखंड आवंटित हो चुके हैं। एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) में रेडीमेड गारमेंट शामिल होने के बाद गारमेंट पार्क स्थापित हो रहा है। यहां भी 70 से अधिक नई इकाइयां जल्द स्थापित होंगी।
पांच साल में बदल गई सूरत
पिछले पांच साल में टेक्सटाइल, मेडिकल, स्टील सेक्टर में 50 से अधिक इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं। फ्लैटेड फैक्ट्री को मंजूरी मिल चुकी है। प्लास्टिक पार्क, आइटी पार्क व लाजिस्टिक पार्क भी जल्द स्थापित होंगे। लंबे समय से चली आ रही कामन एन्फ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) की स्थापना को भी मंजूरी मिल गई है। औद्योगिक गलियारे के चलते लैंड बैंक की समस्या भी समाप्त हो गई है।
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500 करोड़ रुपये की लागत से अंकुर सरिया फैक्ट्री की स्थापना का काम लगभग पूरा है। मई से जून महीने तक यहां उत्पादन शुरू हो जाएगा। गैलेंट समूह द्वारा सीमेंट फैक्ट्री की स्थापना की जा रही है, इसमें भी अप्रैल के बाद उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। स्थितियां बदलीं तो आदित्य बिड़ला समूह एवं कोका कोला की ओर से भी इकाई लगाने के लिए सम्पर्क किया गया है। गोरखपुर में बने उत्पादों का अब निर्यात भी बढ़ने लगा है।
बिछा सड़कों का जाल
जिले के चारों ओर सड़कों का जाल बिछ गया है। एक फोरलेन सड़क के साथ एक्सप्रेस वे भी बनकर तैयार है। उद्यमियों का कहना है कि सड़क और रेल मार्ग से बेहतर कनेक्टिविटी होने के कारण कच्चा माल मंगाने व उत्पाद बाहर भेजने में आसानी होती है। गोरखपुर से सिलीगुड़ी तक नए एक्सप्रेस वे व गोरखपुर से शामली तक एक्सप्रेस वे प्रस्तावित है।
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इसके बन जाने से गोरखपुर से देश के महत्वपूर्ण क्षेत्रों की दूरी कम हो जाएगी और यहां के उत्पादों को नया बाजार मिल सकेगा। गोरखपुर एयरपोर्ट पर विमान संख्या बढ़ने और कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट शुरू हाेने से बाहर से खरीदारों का आना आसान हो चुका है।
आक्सीजन के उत्पादन में भी आत्मनिर्भर
यह क्षेत्र मेडिकल एवं इंडस्ट्रियल आक्सीजन के उत्पादन में भी आत्मनिर्भर बन चुका है। कोविड संक्रमण काल में यहां की इकाइयों ने बहुत हद तक स्थिति को संभाले रखा। उसके बाद और भी इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं। यहां से अब बाहर भी आक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है।